Freebies: 'EC की मंजूरी के बाद ही पार्टियों को मिले मुफ्त सुविधाओं की घोषणाओं का हक', Supreme Court से हुई मांग
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Freebies: 'EC की मंजूरी के बाद ही पार्टियों को मिले मुफ्त सुविधाओं की घोषणाओं का हक', Supreme Court से हुई मांग

Supreme Court News: याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से एडवोकेट विकास सिंह ने जनप्रतिनिधित्व कानून में संसोधन करके नीचे लिखे कुछ  प्रावधान जोड़े जाने की मांग सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से की है.

Freebies: 'EC की मंजूरी के बाद ही पार्टियों को मिले मुफ्त सुविधाओं की घोषणाओं का हक', Supreme Court से हुई मांग

Freebies case Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट (SC) में मुफ्त सुविधाओं का मामले पर याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने लिखित जवाब दाखिल किया है. इस जवाब में मांग की गई है कि चुनाव आयोग (EC) की ओर से राजनीति दलों के घोषणपत्रों की मंजूरी के बाद ही राजनीतिक दलों को मुफ़्त सुविधाओं की घोषणाओ की इजाज़त होनी चाहिए. इसके लिए चुनाव आयोग के पास एक स्वतंत्र आर्थिक जानकारों की कमेटी होनी चाहिए

SC में आम आदमी पार्टी, DMK और YSR कांग्रेस का रुख 

सुप्रीम कोर्ट में इस मसले को लेकर आम आदमी पार्टी, डीएमके, आंध्रप्रदेश की सत्तारूढ़ वाई एस आर कांग्रेस और मध्यप्रदेश की महिला कांग्रेस नेता जया ठाकुर  ने भी याचिका दाखिल कर पक्षकार बनाये जाने की मांग की है है. इन सब का कहना है कि समाज जके वंचित तबके की भलाई के लिए लाए जाने वाली योजनाओं को मुफ्तखोरी नहीं कहा जा सकता बल्कि ये एक समतामूलक समाज को बनाने के लिए एक सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है.

याचिकाकर्ता ने राजनीति दलों पर मुद्दे को भटकाने का आरोप लगाया

विकास सिंह की ओर से दाखिल जवाब में कहा गया है कि इस मामले में पक्षकार बनने के लिए अर्जी दाखिल करने वाली तमाम राजनीति पार्टियां बेवजह इस अहम मसले को लटकाने की कोशिश कर रही है, मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश में है.याचिकाकर्ता का एतराज समाज के वंचित, ज़रूरत मंद तबके के लिये लाई जाने वाली जनकल्याणकारी योजनाओं को लेकर नहीं है, बल्कि उनका जोर ऐसी सुविधाओ की घोषणा के वक़्त 'आर्थिक अनुशासन' को लेकर है, ताकि बेलगाम घोषणाओं पर रोक लगाई जा सके.

याचिकाकर्ता के सुझाव-

याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से एडवोकेट विकास सिंह ने जनप्रतिनिधित्व कानून में संसोधन करके नीचे लिखे कुछ  प्रावधान जोड़े जाने की मांग सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से की है.

A. सभी राजनीतिक दल अपना घोषणापत्र चुनाव आयोग को जमा कराए ताकि आयोग घोषणापत्र में किये गए वायदों के चलते होने वाले आर्थिक नुकसान की समीक्षा कर सके.

B. राजनीतिक दल आयोग को ये साफ साफ बताए कि पहले से कर्ज़ में डूबे राज्यों का कर्ज वो कैसे हटाएगी, साथ ही मुफ्त घोषणाओं पर अमल के लिए अतिरिक्त पैसा किन संसाधनों से हासिल करेगी.

C. चुनाव आयोग के पास  स्वतंत्र आर्थिक जानकारों की कमेटी होनी चाहिए जो पार्टियों की ओर से हुई घोषणाओ से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर की समीक्षा करके एक निश्चित समयसीमा में घोषणापत्रों पर फैसला ले.

D. राजनीतिक दलों को आयोग की ओर से मंजूर किये गए घोषणापत्रों से अलावा  चुनाव रैलियों में कोई और घोषणा करने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए.

E. जो राजनीतिक दल इस पूरी प्रकिया का पालन न करें, उनकी मान्यता रद्द कर दी जाए.

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