Independence Day: आजादी का जश्न मनाने दिल्ली में जुटे थे देश के हर छोटे-बड़े नेता, लेकिन काफी दूर थे महात्मा गांधी; क्या थी वजह?
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Independence Day: आजादी का जश्न मनाने दिल्ली में जुटे थे देश के हर छोटे-बड़े नेता, लेकिन काफी दूर थे महात्मा गांधी; क्या थी वजह?

15 August 1947: देश भर में 78वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न मनाए जाने के बीच हर साल की तरह महात्मा गांधी सबसे ज्यादा याद किए जा रहे हैं. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से आजादी के लड़ाई में देश का नेतृत्व करने वाले बापू 15 अगस्त, 1947 को राजधानी दिल्ली में नहीं बल्कि काफी दूर थे. आइए, जानते हैं कि आजादी के नायक उस समय कहां थे और क्या कर रहे थे?

Independence Day: आजादी का जश्न मनाने दिल्ली में जुटे थे देश के हर छोटे-बड़े नेता, लेकिन काफी दूर थे महात्मा गांधी; क्या थी वजह?

Mahatama Gandhi on Independence Day: 15 अगस्त 1947 को आजादी हासिल करने का जश्न मनाने के लिए तमाम छोटे-बड़े नेता राजधानी दिल्ली में इकट्ठा हो चुके थे. पूरा देश दिल्ली में जुट रहा था. जो लोग दिल्ली नहीं पहुंच सकते थे वो देश के बाकी महानगरों या अपने प्रांतों का राजधानी में जमा हो रहे थे. इस सब के बीच देश की आजादी की जंग के सबसे बड़े नायक महात्मा गांधी इस सबसे दूर थे. वह दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर थे. इसके अलावा वह जश्न की जगह दुखों से घिरे लोगों के बीच मौजूद थे.

पहले स्वतंत्रता दिवस समारोह की जगह महात्मा गांधी का अनशन

राजधानी दिल्ली में देश के पहले स्वतंत्रता दिवस के जश्न से भरे आधिकारिक आयोजन में शामिल होने से उलट देश के सबसे बड़े नेता महात्मा गांधी अनशन कर रहे थे. दरअसल, 15 अगस्त 1947 को बापू बंगाल के नोआखली (अब पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश का जिला) में फैली मुस्लिम-हिंदू सांप्रदायिक हिंसा को खत्म कराकर शांति बहाल करने की मुहिम में जुटे थे. 

देश को आजादी मिलने वाले दिन से लगभग एक सप्ताह पहले 9 अगस्त 1947 को ही बापू कोलकाता पहुंचे थे. उन्होंने पहले वहां की बस्तियों में सांप्रदायिक हिंसा को खत्म कर शांति स्थापित करने की कोशिश की. इसके बाद उन्होंने नोआखली में खून-खराबा रोकने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया था. संयोग देखिए कि आजादी के 78वें साल में एक बार फिर बांग्लादेश बुरी तरह से हिंसा और अस्थिरता से ग्रस्त है.

बंगाल में आजादी जश्न की जगह जारी था बंटवारे का खूनी जंग

आजादी के समय देश की आबादी 32 करोड़ से कुछ ज्यादा थी. देश के बंटवारे और आजादी के छह साल पहले साल 1941 की जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से गणना के मुताबिक आजादी के समय पंजाब की जनसंख्या 3,43,09,861 और बंगाल की कुल आबादी 6,14,60,377 थी. स्वतंत्रता के अमृत के साथ ही निकली विभाजन की वीभिषिका से देश के यही दो प्रांत सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए थे. 

धर्म के आधार पर मानव इतिहास का सबसे भयानक विस्थापन

उस दौरान एक ही रात में 10 करोड़ से ज्यादा लोगों का सामान्य जीवन पटरी से उतर गया था. धर्म के आधार पर मानवीय इतिहास के सबसे बड़े पलायन और विस्थापन की दर्दनाक घटना से देश लहूलुहान हो गया था. देश में बुरी तरह बदले सांप्रदायिक हालात को ठीक करने के लिए महात्मा गांधी तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के नजदीक पहुंचकर लोगों को समझाने-मनाने में जुट गए थे. नोआखली अब बांग्लादेश का एक तटीय शहर और बंदरगाह है. दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश में चटगांव डिवीजन के अंतर्गत नोआखली बंगाल की खाड़ी में मिलने वाले और मेघना नदी के मुहाने के पास बने नोआखली जलमार्ग पर स्थित है.

दिल्ली में जश्न की जगह कलकत्ता में जनजागरण कर रहे थे बापू

डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस की किताब 'फ्रीडम एट मिडनाइट' के हिंदी अनुवाद 'आधी रात को आजादी" के मुताबिक 15 अगस्त, 1947 की शुरुआत दिल्ली में संविधान सभा के बाहर शंखनाद से हुई थी. दिल्ली से पहले ब्रिटिश शासन की राजधानी रहे कलकत्ता महानगर में भयानक सांप्रदायिक हिंसक घटनाओं के बीच खुद महात्मा गांधी लोगों को शांति का संदेश देते हुए कह रहे थे, 'यदि विवेक और भाईचारे की रक्षा कलकत्ता में हो गई तो समझ लीजिए कि सारे देश में हो गई। कलकत्ता के उदाहरण से सारे देश की मानवता जाग जाएगी.'

तत्कालीन बॉम्बे और मद्रास में 15 अगस्त 1947 को क्या हो रहा था

इसके अलावा, तत्कालीन बॉम्बे में अंग्रेजों की अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए विकसित किया गया 'बाम्बे यॉट क्लब' के गेट पर पुलिस वाले ने क्लोज यानी बंद का बोर्ड लगा दिया था. क्योंकि इसके पहले वहां गोरों यानी ब्रिटिशर्स के अलावा किसी और की एंट्री नहीं हो सकती थी. वहीं, मद्रास के नटराज मंदिर से पीतांबर और दूसरी पवित्र वस्तुएं लेकर साधुओं का समूह दिल्ली पहुंच रहा था. दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश की प्रगति के लिए विशेष प्रार्थनाएं हो रही थीं. 

महात्मा गांधी ने किया था भारत विभाजन का कड़ा विरोध

गांधी सम्पूर्ण वांग्मय के मुताबिक, लॉर्ड माउंटबैटन की भारत विभाजन की योजना को स्वीकार करने की कांग्रेस की तैयारियों का महात्मा गांधी ने भी कड़ा विरोध किया था. उन्होंने इस बारे में 1 जून 1947 को मनु गांधी से अपने दिल की बात कह था, “आज मैं अपने को अकेला पाता हूं... आजादी के कदम उलटे पड़ रहे हैं, ऐसा मुझे लगता है. हो सकता है आज इसके परिणाम तत्काल दिखाई न दे, लेकिन हिन्दुस्तान का भविष्य मुझे अच्छा नहीं दिखाई देता. हिन्दुस्तान की भावी पीढ़ी की आह मुझे न लगे कि हिंदुस्तान के विभाजन में गांधी ने भी साथ दिया था."

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क्या विभाजन की वजह से दिल्ली से दूर बंगाल में थे महात्मा गांधी?

महात्मा गांधी ने इसके बाद, 2 जून 1947 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक को संबोधित करने के दौरान कहा था, “मैं भारत विभाजन के संबंध में कार्यसमिति के निर्णयों से सहमत नहीं हूं.” महात्मा गांधी ने उसी दिन एक पत्र लिखकर भी अपना विरोध प्रकट किया था. उन्होंने पत्र में लिखा था, “भारत के भावी विभाजन से शायद मुझसे अधिक दुखी कोई और न होगा. मैं इस विभाजन को गलत समझता हूं, और इसलिए मैं इसका भागीदार कभी नहीं हो सकता.” कई विद्वानों के मुताबिक, महात्मा गांधी शायद इसी वजह से दिल्ली से दूर बंगाल में आम लोगों की समस्या दूर करने में जुटे हुए थे.

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