IAS Chhavi Ranjan Arrested: छवि रंजन साल 2011 बैच के आईएस अधिकारी हैं और जब ये जमीन घोटाला (Land deal case) हुआ था, तब वो रांची में DM के पद पर तैनात थे.
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ED arrested IAS Chhavi Ranjan: प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने झारखंड के आईएएस अफसर छवि रंजन को गिरफ्तार कर लिया है. एजेंसी ने छवि रंजन को झारखंड के जमीन को अवैध तरीके से कब्जा करने और आरोपियों की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. छवि रंजन 2011 बैच के आईएस अधिकारी हैं और जब ये जमीन घोटाला हुआ था, तब वो रांची में DM के पद पर तैनात थे. एजेंसी ने इससे पहले 24 अप्रैल को भी आरोपी से लंबी पूछताछ की थी.
14 अप्रैल को ईडी ने 7 आरोपियों को किया था गिरफ्तार
इससे पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 14 अप्रैल को झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार में 22 ठिकानों पर छापेमारी के बाद सात आरोपियों को गिरफ्तार किया था. पहले गिरफ्तार आरोपियों के नाम अफसर अली, इम्तियाज अहमद, प्रदीप बागची, मोहम्मद सद्दाम हुसैन, तल्हा खान, भानू प्रताप प्रसाद और फैयाज खान है. आईएएस अधिकारी के अलावा सभी गिरफ्तार आरोपी बिचौलिए हैं और जमीनों पर कब्जा कर फर्जी दस्तावेज बना बेच दिया करते थे. इस काम में इनकी मदद सरकारी अधिकारी भी कर रहे थे, जिसमें छवि रंजन भी शामिल थे.
1932 के दस्तावेज बना जमीन पर करते थे कब्जा
हैरानी की बात ये है कि ये आरोपी साल 1932 के जमीन के दस्तावेज बना लोगों की जमीनों को कब्जा लिया करते थे और पीड़ितों को कहते थे उनकी जमीने तों उनके पिता या दादा बेच के जा चुके हैं. प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इनके पास से सैकड़ों की तादाद में फर्जी डीड बरामद किए हैं. इस मामले में IAS छवि रंजन पर भी इनकी मदद करने के आरोप है और इसलिए ED ने उन पर छापेमारी की थी.
बिहार और कोलकाता से भी जुड़े हैं तार
ये मामला झारखंड का है, लेकिन इसके तार बिहार और कोलकाता तक जुड़े हैं. दरअसल, आरोपी जमीन कब्जाने के लिए आजादी से पहले के दस्तावेजों का हवाला दे और 1932 के दस्तावेज बना जमीन कब्जा करते थे और कहते थे कि जब पूरा पश्चिम बंगाल था, जिसमें बिहार और झारखंड का हिस्सा था तब से जमीन उनके पास है, जिसमें प्राइवेट और सरकारी दोनों तरह की जमीनें शामिल हैं.
छोटी गलती से पकड़े गए आरोपी
एजेंसी ने इनके पास से बरामद दस्तावेजों की फॉरेंसिक जांच करवाई तो पता चला कि सभी दस्तावेज फर्जी हैं. जिन जिलों के नाम आजादी से पहले नहीं होते थे उस पते पर आजादी से पहले के दस्तावेज, पिन नंबर 1970 के दशक में आया, लेकिन पुराने दस्तावेजों में पिन नंबर लिखा जाना. इस तरह कीं छोटी छोटी गलतियों के बाद इन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया.