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DNA on Prithvi Raj Chauhan and Muhammad Ghori: कश्मीर में इस्लामिक कट्टरपंथ के नाम पर एक बार फिर हिन्दुओं को चुन चुन कर मारा जा रहा है. लेकिन क्या आपको पता है, एक जमाने में कश्मीर हिन्दू संस्कृति का सबसे बड़ा केन्द्र हुआ करता था और 7वीं से 8वीं शताब्दी के मध्य, जब कश्मीर में कार्कोट राजवंश के हिन्दू कायस्थ सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड का शासन था. तब कश्मीर में बड़े स्तर पर मन्दिरों का निर्माण हुआ था और प्राचीन मन्दिरों की रूपरेखा भी बदली गई थी. ये वो दौर था, जब कश्मीर में हिन्दू संस्कृति का प्रभाव था.
हमारे देश के इतिहास में भारत का वैभव बढ़ाने वाले हिन्दू राजाओं के साथ कभी न्याय नहीं हुआ. इसलिए आज हम आपको ये बताएंगे कि हमारे देश के इतिहास की किताबों में मुस्लिम आक्रमणकारी बादशाहों का इतना ज्यादा ज़िक्र क्यों है और हमारे हिन्दू वीर योद्धाओं और सम्राटों के बारे में इतना कम क्यों लिखा गया है? गुरुवार को महाराणा प्रताप की जयंती थी और आजकल हमारे देश में पृथ्वीराज चौहान की भी काफ़ी चर्चा है.
हम इस बात का भी विश्लेषण करेंगे कि हमारे देश के इतिहास में मुस्लिम आक्रमणकारियों का इतना महिमामंडन क्यों हुआ और उन्हें हराने वाले ऐसे वीर योद्धाओं के बारे में इतना कम क्यों लिखा गया? सच्चाई ये है कि ये तमाम मुस्लिम बादशाह असल में लुटेरे थे और इन्होंने भारत पर सैकड़ों वर्षों तक अत्याचार किए. फिर भी हमारे देश में आज भी बड़ी बड़ी इमारतों और सड़कों के नाम इन्हीं लुटेरों के नाम पर रखे गए हैं.
हमारे इतिहास में यही पढ़ाया जाता है कि मोहम्मद गौरी ने चौहान वंश के राजा, पृथ्वीराज चौहान (Prithvi Raj Chauhan) को तराइन की दूसरी लड़ाई में हरा दिया था. यह भी बताया जाता है कि गौरी बहुत कुशल रणनीतिकार और महान योद्धा था. जबकि ये पूरा सच नहीं है. सच ये है कि, वर्ष 1191 में मोहम्मद गौरी (Muhammad Ghori) तराइन की पहली लड़ाई में हार गया था. उस समय पृथ्वीराज चौहान ने उसे जान से नहीं मारा बल्कि मोहम्मद गौरी को अपनी सेना के साथ वापस अफगानिस्तान लौटने का मौका दिया. लेकिन इतिहास की किताबों में इस लड़ाई का इतना जिक्र नहीं होता, क्योंकि इसमें पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई थी. ये वो समय था, जब भारत के पास काफी धन दौलत थी और मोहम्मद गौरी किसी भी कीमत पर भारत को लूट कर उसे अपने नियंत्रण में लेना चाहता था. इसीलिए तराइन की पहली लड़ाई के एक वर्ष बाद 1192 में उसने फिर से अपनी विशाल सेना के साथ पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ़ युद्ध लड़ा और इस युद्ध में जीत हासिल की. लेकिन क्या आप जानते हैं, ये युद्ध मोहम्मद गौरी धोखे से जीता था.
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— Zee News (@ZeeNews) June 2, 2022
उस समय कन्नौज के राजा जयचंद ने दिल्ली की सत्ता के लालच में पृथ्वी राज चौहान (Prithvi Raj Chauhan) के खिलाफ मोहम्मद गौरी का साथ दिया था. वर्ष 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में मोहम्मद गौरी को अपनी सेना देकर पृथ्वीराज को हरा दिया था. जयचंद को लगता था कि उसने मोहम्मद गौरी की मदद करके दिल्ली की सत्ता में अपनी कील ठोक दी है, लेकिन उसकी ये सोच गलत साबित हुई. युद्ध जीतने के बाद मोहम्मद गौरी (Muhammad Ghori) ने राजा जयचंद को भी मार दिया था. यानी ये जो मुस्लिम आक्रमणकारी भारत आए थे, इनका मकसद सिर्फ़ भारत को लूटकर उसे बर्बाद करना था.
ये बात और भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि, पृथ्वीराज चौहान (Prithvi Raj Chauhan) ने 800 वर्ष पहले दिल्ली में जिस किला राय पिथौरा का निर्माण कराया था, आज की तारीख में उसके सिर्फ अवशेष ही बचे हुए हैं. जबकि इस किले से कुछ ही दूरी पर कुतुब मीनार है, जिसे मोहम्मद गौरी के गुलाम सेनापति कुतुब-उद्दीन ऐबक ने 27 हिन्दू और जैन मन्दिरों को तोड़कर बनवाया था. आज इस मीनार की स्थिति इस किले से कहीं बेहतर है. इसे एक UNESCO World Heritage Site घोषित किया गया है. यानी भारत के इतिहास में मन्दिरों को तोड़ने वाला कुतुब-उद्दीन ऐबक तो महान बन गया लेकिन मन्दिरों की रक्षा करने वाले पृथ्वी राज चौहान को सिर्फ एक हारे हुए राजा के तौर पर पेश किया गया. ये सिर्फ़ पृथ्वी राज चौहान के साथ नहीं हुआ.
आज अगर हम आपसे ये पूछें कि इब्राहिम लोदी कौन था, तो बहुत सारे लोग आसानी से बता देंगे कि वो लोदी वंश का मुस्लिम बादशाह था. लेकिन अगर हम आपसे ये पूछें कि कृष्ण देव राय कौन थे, तो आप शायद उनके बारे में नहीं बता पाएंगे. ये इसलिए दुखद है क्योंकि 15वीं शताब्दी में जब दिल्ली में लोदी वंश का शासन था, उस समय भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य लोदी नहीं बल्कि दक्षिण का विजयनगर साम्राज्य था, जिसके राजा कृष्ण देव राय थे. लेकिन उनके बारे में कोई नहीं जानता.
पिछले साल Public Policy Research Centre नाम के Think Tank ने NCERT की इतिहास की किताबों को अध्ययन किया था. और इस अध्ययन में ये बात पता चली थी कि NCERT की किताबों में जितना महत्व मुस्लिम आक्रमणकारियों को दिया गया है, उतना महत्व हिन्दू वीर योद्धाओं को नहीं दिया. तब इसमें बताया गया था कि NCERT की किताबों में अकबर का जिक्र 97 बार आता है, शाहजहां का जिक्र 30 बार आता है और इतनी ही बार औरंगजेब का भी जिक्र किया गया है. लेकिन इन आक्रमणकारियों की तुलना में छत्रपति शिवाजी महाराज का जिक्र सिर्फ आठ बार है और राजपूत राजा राणा-सांगा और महाराणा प्रताप का जिक्र एक से दो बार ही किया गया है.
मेवाड़ के महान राजपूत शासक महाराणा प्रताप ने वर्षों तक मुगल बादशाह अकबर के साथ संघर्ष किया था. महाराणा प्रताप को उनकी वीरता, युद्ध कौशल और Guerrilla युद्धनीति के लिए याद किया जाता है. लेकिन इसके बावजूद आज देश में कई स्थानों का नाम अकबर के नाम पर हैं. जबकि महाराणा प्रताप के लिए ये कहा जाता है कि वो हल्दी घाटी की लड़ाई में अकबर से हार गए थे. लेकिन हाल ही हुई कुछ रिसर्च में ये पता चला है कि इस लड़ाई में असल में महाराणा प्रताप हारे नहीं थे बल्कि अकबर को अपनी सेना पीछे हटानी पड़ी थी.
राजस्थान के शिक्षा बोर्ड ने तो हाल ही में इतिहास में हुई इस त्रुटि को सुधारा है. लेकिन सोचिए, जो लोग बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि महाराणा प्रताप इस लड़ाई को हार गए थे और अकबर बहुत बहादुर था, वो क्या इस बात को अब स्वीकार करेंगे. दरअसल उनके दिमाग में ये बात बैठा दी गई. मेवाड़ के लोकगीतों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि हल्दी घाटी के युद्ध में अकबर के पास 80 हजार सैनिक थे. जबकि महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20 हजार सैनिक थे.
हमारे हिन्दू राजा कैसे थे, ये बात हमारा इतिहास कभी सही से नहीं बता पाया. लेकिन हम आपको एक छोटी सी कहानी बताते हैं. 250 ईसा पूर्व चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र को श्रीलंका भेजा था. उनके पुत्र श्रीलंका सेना के साथ नहीं गए थे बल्कि उनके साथ सिर्फ़ चार बौद्ध भिक्षु थे. जिनका मकसद श्रीलंका में ज्ञान का प्रचार प्रसार करना था. जबकि मुस्लिम आक्रमणकारी जहां भी जाते थे, वहां सेना उनके साथ होती थी और वो उस देश को लूट कर अपने अधीन कर लेते थे. जबकि चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने उस युग में भी ऐसा नहीं किया. अब सोचिए, ग्रेट कौन हुआ, ग्रेट अकबर है, जिसने भारत को लूटा या ग्रेट सम्राट अशोक हैं, जिन्होंने तमाम शक्तियां होते हुए भी श्रीलंका को अपने अधीन नहीं किया.
इसे आप एक और उदाहरण से समझ सकते हैं. 11वीं शताब्दी में दक्षिणा भारत के चोल वंश का इंडोनेशिया, मलेशिया, जावा और कम्बोडिया जैसे देशों में काफी प्रभाव था. इसके बावजूद चोल वंश के राजाओं ने इन देशों के धार्मिक स्थल नहीं तोड़े और ना ही इन देशों को लूट कर वहां के लोगों को बर्बाद किया.
लेकिन क्या आपने इतिहास की किताबों में ये बातें पढ़ी हैं? ये तमाम बातें हम तथ्यों के आधार पर कह रहे हैं. इसके लिए हमने NCERT की किताबों का भी अध्ययन किया है. जैसे आज जब हम 7वीं कक्षा की NCERT की इतिहास की किताब पढ़ रहे थे तो हमें पता चला कि इसमें एक चैप्टर दिल्ली सल्तनत और मुगल शासकों पर है. इसी किताब में ये भी बताया गया है कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण कराया था और इस मस्जिद का विस्तार इल्तुत-मिश और अलाउद्दीन खिलजी के शासन में हुआ था. लेकिन ये किताब ये नहीं बताती कि ये मस्जिद 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ कर उनके मलबे से बनाई गई थी.
एक और बात, आज देश की राजधानी दिल्ली में अकबर के नाम से रोड है. लोदी वंश के नाम पर एक पूरे इलाके का नाम है, लोदी कॉलोनी. लोदी रोड भी इसी इलाक़े में है. इसी नाम से यहां एक होटेल भी है. औरंगज़ेब के नाम से औरंगजेब लेन भी दिल्ली में है. हुमायूं के नाम से हुमायूं लेन है. शाहजहां के नाम पर शाहजहां रोड है. सोचिए, ऐसा कैसा हुआ कि पिछले 75 वर्षों में हमारे देश की सरकारों और लोगों ने भारत का दमन करने वाले मुस्लिम आक्रमणकियों के नाम की सड़कें इस्तेमाल कीं?