DNA with Sudhir Chaudhary: सेना को क्यों चलाना पड़ा था 'ऑपरेशन ब्लू स्टार'? 87 सैनिक हुए थे शहीद
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DNA with Sudhir Chaudhary: सेना को क्यों चलाना पड़ा था 'ऑपरेशन ब्लू स्टार'? 87 सैनिक हुए थे शहीद

DNA on Operation Blue Star: पंजाब के स्वर्ण मंदिर में 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार को सोमवार को 38 साल पूरे हो गए. इस दौरान सोमवार को स्वर्ण मंदिर में चिंताजनक तस्वीरें देखने को मिलीं, जब खालिस्तानियों ने पुलिस सुरक्षा में रैली निकाली.

DNA with Sudhir Chaudhary: सेना को क्यों चलाना पड़ा था 'ऑपरेशन ब्लू स्टार'? 87 सैनिक हुए थे शहीद

DNA on Operation Blue Star: सोमवार यानी 6 जून को पंजाब में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी थी. इस दिन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर खालिस्तान समर्थकों ने नारेबाजी की और जुलूस निकाला. उन तस्वीरों को देखकर गुरुद्वारे के दर्शनों के लिए आए लोगों को ऐसा लगा कि जैसे वे 1980 के पंजाब में आ गए हैं. उस दौरान खालिस्तान के नाम पर पूरे पंजाब में आतंक फैला हुआ था. 

सोमवार को स्वर्ण मन्दिर पर हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) के 38 वर्ष पूरे हो गए थे. इस मौके पर अमृतसर में बाकायदा पुलिस की सुरक्षा के बीच कट्टर खालिस्तानियों ने खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए और आज़ादी की मांग करते हुए शहर में जुलूस भी निकाला. पूरा भारत ये सब होते हुए देख रहा था. 

देश को अलगाववादी ताकतों ने घेर लिया?

हमारे देश की अलगाववादी ताकतों ने भारत को अब कई मोर्चों पर घेर लिया है. चाहे कश्मीर हो, पंजाब हो, उत्तर पूर्व के राज्य हों या पश्चिम बंगाल हो. अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र का ऐसा दुरुपयोग आपको दुनिया के किसी और देश में देखने को नहीं मिलेगा. इस बात को उन तस्वीरों से समझ सकते हैं. जब सोमवार को सैकड़ों लोगों की भीड़ अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में पहुंच गई, जहां लोगों के हाथों में खालिस्तानी आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरांवाले (Jarnail Singh Bhindranwala) के पोस्टर थे. इनमें एक पोस्टर पर  लिखा था, 
भिंडरांवाले का क्या पैगाम..
राजेंद्र सिंह का क्या पैगाम..
सिख कौम का क्या अरमान..
पंजाब बनेगा खालिस्तान..

उन तस्वीरों से आप समझ सकते हैं कि पंजाब में एक बार फिर से खालिस्तानी ताकतें सक्रिय हो गई हैं और इन लोगों की हिम्मत देखिए कि ये पंजाब पुलिस की सुरक्षा में पंजाब को भारत से तोड़ने के नारे लगा रहे थे. हैरानी की बात ये थी कि पंजाब पुलिस इन लोगों को सुरक्षा दे रही थी. इससे बड़ा और भद्दा मजाक इस देश के साथ कुछ नहीं हो सकता.

अमृतसर में खालिस्तानी समर्थकों ने लगाए नारे

इससे पहले 5 जून को भी अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर तक एक मार्च निकाला गया था, जिसमें ना सिर्फ़ खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए बल्कि ये भी कहा गया कि पंजाब की आजादी इन लोगों का हक है और अगर इन लोगों को उनका खालिस्तान नहीं मिला तो वो इसे भारत सरकार से छीन लेंगे. भारत शायद दुनिया का अकेला ऐसा देश होगा, जहां इस तरह के जुलूस और प्रदर्शनों को रोकने के बजाय उन्हें पुलिस की सुरक्षा दी जाती है.

इस जुलूस का आयोजन जिस सिख संगठन की तरफ़ से किया गया था, उसका नाम है दल खालसा. इस संगठन पर खालिस्तान मुहिम चलाने के गम्भीर आरोप लगते रहे हैं. महत्वपूर्ण बात ये है कि ये सब जानते हुए पुलिस ने इस संगठन को ये प्रदर्शन निकालने की अनुमति दी. इस मार्च में खालिस्तानी आतंकवादी जनरैल सिंह भिंडरांवाले (Jarnail Singh Bhindranwala) का बेटा ईशर सिंह भी शामिल हुआ और उसने भी खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए. बड़ी बात ये है कि, जिस वक्त अमृतसर में ये सब हो रहा था, उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद अमृतसर आए हुए थे.

38 साल पहले भी लहूलुहान हुआ था पंजाब

आज से 38 साल पहले खालिस्तानी ताकतों ने पंजाब का क्या हाल किया था, ये सब जानते हैं और हमें लगता है कि एक बार फिर से पंजाब में खालिस्तान की मुहिम मजबूत हो रही है और ये हमारे देश के लिए अच्छी ख़बर नहीं है.

पिछले 38 वर्षों में अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर की स्थिति ज्यादा नहीं बदली है. बस फर्क इतना है कि, उस समय जनरैल सिंह भिंडरांवाले स्वर्ण मन्दिर में छिपा हुआ था. और सोमवार को उसके पोस्टर वहां लहराए गए. यानी स्वर्ण मन्दिर में उसकी मौजूदगी आज भी है. ये बहुत चिंताजनक बात है.

भारतीय सेना को चलाना पड़ा था ऑपरेशन ब्लू स्टार

खालिस्तान आन्दोलन को कमज़ोर करने में आज का दिन बहुत निर्णायक माना जाता है क्योंकि वर्ष 1984 में 6 जून को ही देश की सेना ने खालिस्तानी आतंकवादियों पर बहुत बड़ी कार्रवाई की थी. 6 जून को ही सेना ने खालिस्तान के सबसे बड़े समर्थक जरनैल सिंह भिंडरांवाले (Jarnail Singh Bhindranwala) को मार दिया था. इस कार्रवाई में भारत की सेना को एक दुर्भाग्यपूर्ण कदम भी उठाना पड़ा था. वो कदम ये था कि स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को हटाने के लिए सेना को अपने टैंकों के साथ वहां घुसना पड़ा था.

हालांकि 38 वर्ष बीत जाने के बाद भी ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) के बारे में भारत के लोगों को पूरी जानकारी नहीं है. इस ऑपरेशन से ठीक पहले तब पंजाब पुलिस ने अमृतसर में मौजूद सभी पत्रकारों को जबरदस्ती पकड़कर अंबाला भेज दिया था. ऐसा कहा जाता है कि सिर्फ एक अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी के पत्रकार ही गलती से वहां छूट गया था. स्वर्ण मंदिर के परिसर में 6 जून को क्या हुआ था? ये सिर्फ वहां मौजूद भारतीय सेना को ही पता था.

मेजर जनरल केएस बरार ने किया था नेतृत्व

हम पूरे देश को इस घटना की पूरी और प्रामाणिक जानकारी देना चाहते हैं. इसके लिए हमने लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बरार की एक पुस्तक.. Operation Blue Star: The True Story का अध्ययन किया है. जनरल बरार ने ही ऑपरेशन ब्लू स्टार का नेतृत्व किया था, इसलिए उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक इस संदर्भ में सबसे ज़्यादा विश्वसनीय मानी जा सकती है. 

ऑपरेशन ब्लू स्टार की कहानी शुरू होती है खालिस्तान की मुहिम से.. जिसका अर्थ होता है, The Land Of Khalsa. यानी खालसा के लिए एक अलग राष्ट्र या सिखों के लिए अलग राष्ट्र. खालसा की स्थापना सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने वर्ष 1699 में की थी. खालसा का अर्थ होता है Pure यानी शुद्ध. लेकिन समय के साथ इस विचार के उद्देश्य बदल गए और इसका राजनीतिकरण हो गया. 1980 के दशक में जरनैल सिंह भिंडरांवाले खालिस्तानी मुहिम का सबसे बड़ा Posterboy बन गया. भिंडरावाले (Jarnail Singh Bhindranwala) खुद को संत बताता था लेकिन उसने पंजाब के सिखों को भारत से अलग होने के लिए काफा भड़काया और खालिस्तान नाम से एक आन्दोलन भी चलाया.

खालिस्तानियों ने बेरहमी से की थी हिंदुओं की हत्या

पंजाब में परिस्थितियां उस वक्त नियंत्रण से बाहर हो गईं, जब वर्ष 1984 में खालिस्तानी आतंकवादियों ने पुलिस अधिकारियों और हिंदू नागरिकों की हत्या करनी शुरू दी. इन हत्याओं के ज़रिए आतंकवादियों ने भारत सरकार के खिलाफ एक युद्ध छेड़ दिया था. आतंकवादी इस युद्ध को लंबे समय तक खींचना चाहते थे इसलिए उन्होंने स्वर्ण मंदिर में एक महीने तक का राशन पानी इकट्ठा कर लिया था. इसकी जानकारी जैसे ही तत्कालीन भारत सरकार को मिली तो ये निर्णय लिया गया कि भारत सरकार आतंकवादियों को खदेड़ने के लिए सेना की मदद लेगी. 31 मई 1984 को उस वक्त मेजर जनरल रहे कुलदीप सिंह बरार को स्वर्ण मंदिर को मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.

कुलदीप सिंह बरार अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि भारत सरकार ने ये अभियान सिर्फ 48 घंटे में खत्म करने का निर्देश दिया था. इस पुस्तक में लिखा है कि, एक जून को ये अभियान शुरू हुआ और 2 जून को इंदिरा गांधी ने All India Radio पर भाषण दिया और पंजाब के सभी लोगों से नफरत खत्म करने की अपील की. 3 जून को रेल, सड़क और टेलीफोन से पंजाब का संपर्क काट दिया गया. 4 जून को लाउड स्पीकर पर सेना ने सभी श्रद्धालुओं से स्वर्ण मंदिर से बाहर निकलने की अपील की. फिर 5 जून की रात को सेना ने आतंकवादियों पर हमला शुरू कर दिया.

स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर बैठ गए थे खालिस्तानी

भारतीय सेना को लगा था कि वो कुछ ही घंटों में आतंकवादियों से स्वर्ण मंदिर को खाली करवा लेगी. लेकिन ये तमाम अनुमान गलत साबित हुए. असल में स्वर्ण मंदिर के पास मौजूद अकाल तख्त में आतंकवादियों ने जबरदस्त मोर्चेबंदी की हुई थी. इस दौरान कई तरफ से गोलीबारी की जा रही थी, जिसकी वजह से सेना के जवान अकाल तख्त के करीब नहीं जा पा रहे थे. जिसके बाद आखिर में सेना ने सरकार से टैंकों के इस्तेमाल की इजाज़त मांगी और सरकार ने इस मांग को मंज़ूर कर लिया. उस समय टैंकों से अकाल तख्त की तरफ करीब 80 गोले दागे गए थे. इस ऑपरेशन में जनरैल सिंह भिंडरांवाले (Jarnail Singh Bhindranwala) समेत 493 लोग मारे गए थे.

सेना के 87 जवान हुए थे शहीद

इसके अलावा इस ऑपरेशन के दौरान सेना के 87 जवान शहीद हुए थे. नोट करने वाली बात ये है कि उस समय इस ऑपरेशन की वजह से भारतीय सेना के कुछ सिख जवानों ने भी सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. इन सिख जवानों ने तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन किए थे. 

इस पुस्तक में ये भी लिखा है कि अगर उस दिन अगली सुबह तक इस ऑपरेशन को खत्म नहीं किया जाता तो आस पास के इलाकों में मौजूद भिंडरांवाले (Jarnail Singh Bhindranwala) के समर्थकों की भीड़ सेना को घेर लेती. इस स्थिति को काबू करना बहुत मुश्किल होता. इसके अलावा इस पुस्तक में ये भी बताया गया है कि इंदिरा गांधी भिंडरांवाले के मारे जाने से कुछ मिनट पहले तक बातचीत के लिए तैयार थीं. वो चाहती थीं कि भिंडरांवाले सरेंडर कर दे और स्वर्ण मन्दिर को छोड़ दे. लेकिन जब भिंडरांवाले ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो सेना ने अपनी कार्रवाई की.

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