पारंपरिक खेती छोड़ कैथल के किसान कर रहे हरित क्रांति, कमा रहे लाखों का मुनाफा
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पारंपरिक खेती छोड़ कैथल के किसान कर रहे हरित क्रांति, कमा रहे लाखों का मुनाफा

घीया, करेले, तोरी व खीरे की खेती किसान के लिए बनी वरदान. पारंपरिक खेती छोड़ सब्जियों की खेती से लाखों का मुनाफा कमा रहे है हरियाणा के किसान. किसानों का कहना है कि मंडियों में भाव अच्छा मिल जाए तो गेहूं और धान की खेती कहीं नहीं ठहरती.

पारंपरिक खेती छोड़ कैथल के किसान कर रहे हरित क्रांति, कमा रहे लाखों का मुनाफा

विपिन शर्मा/कैथलः घीया, करेले, तोरी व खीरे की खेती किसान के लिए वरदान सिद्ध हो रही है. यदि मौसम की मार से बचे रहे तो सब्जियों की खेती फायदे का सौदा है. ये सब्जियां निरोगी और गुणकारी होती है. गेहूं और धान की खेती सब्जियों की खेती के आगे आय के मामले में कहीं नहीं ठहरती. यह कहना है करीब 15 साल से सब्जियों की खेती कर रहे जडौला का किसान श्याम लाल का. किसान ने कहा कि अच्छी मुर्राह नस्ल की भैंस भी राखी, पैसा भी खूब कमाया, पर सब्जी की खेती बरगा मजा नहीं आया. बस ईब तो यौहे धंधा मेरे मन नै भाया.

शुक्रवार को किसान के खेत पर जाकर उनसे बात करने का मौका मिला तो किसान श्याम लाल ने बताया कि वह कई सालों से सब्जियों की खेती कर रहा है, इससे पहले वह पशुपालन के व्यवसाय में भी जुड़ा रहा. किसान बताता है कि उनके पास सिर्फ अढ़ाई एकड़ अपनी जमीन है और लगभग 25 एकड़ जमीन ठेके पर लेकर कार्य कर रहे हैं. इनमें से लगभग 7-8 एकड़ में सब्जी की खेती कर रहे हैं.

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किसान ने पूछने पर बताया कि यदि मौसम अच्छा रहे और बाजार में भाव अच्छा मिल जाए तो एक एकड़ में एक बार की फसल में 2 से 2.5 लाख रुपये तक खर्च निकालकर बच जाते हैं, जबकि एक एकड़ में उगाई गई घीया की फसल पर करीब एक लाख रुपये खर्चा आता है. इसी प्रकार एकड़ में यदि खीरे की फसल लगाई जाती है तो मौसम के अनुसार खर्चा तो करीब लाख ही आता है, लेकिन यह तीन-चार महीने की फसल होती है, इसलिए भाव अच्छा मिल जाए तो एक से डेढ़ लाख रुपये शुद्ध लाभ मिल जाता है.

किसान ने अपने खेत में फसलों का पूरा ब्योरा देते हुए कहा कि तोरी और करेले की फसल भी अच्छा मुनाफा दे देती है. फरवरी से अप्रैल महीनें में करेले की फसल लगाई जाती है और करीब 6 महीने तक चल जाती है. इस फसल से भी किसान गेहूं और धान के मुकाबले अच्छा लाभ कमा सकता है. जहां तक तोरी का जिक्र है नवंबर व दिसंबर में लगा दी जाती है और फरवरी से फसल देना शुरू कर देती है. सब्जियों के उत्पादन में मजदूरी, बांस लगाना, रस्सी और दवाई इत्यादि भी खर्चों में शामिल हैं. एक एकड़ में लगभग 600 बांस लग जाते हैं, जिन पर घीया की बेल चढ़ाई जाती है.

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धान की खेती को करो कम और सब्जियों की खेती में है पूरा दम।

किसान श्याम लाल का कहना है कि धान की खेती की बजायपा सब्जियों की खेती में पूरा दम है. फसल अच्छी लग जाए तो किसान मालामाल हो जाता है. मैं करीब 15 साल से सब्जियों की खेती कर रहा हूं. मुझे सब्जियों की खेती प्रेरणा मेरी अंतर आत्मा ने दी है. मैं अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित करता हूं. सब्जी की खेती के गुर सीखने के लिए अन्य जिलों जैसे करनाल, पानीपत व अन्य स्थानों पर भी गया. बागवानी विभाग भी अच्छा सहयोग करता है.

उन्होंने बताया कि बीज, बांस, इत्यादि मुहैया करवाने में मदद करता है. किसान श्याम लाल पुत्र अमर सिंह ने कहा कि सब्जी की खेती कोई घाटे का सौदा नहीं है, बल्कि हम यदि मेहनत करके यह कार्य करेंगे तो अच्छी कमाई कर सकते हैं. इसी के साथ जिला बागवानी अधिकारी प्रमोद कुमार ने बताया कि फसल विविधिकरण के लिए विभिन्न योजनाएं बागवानी विभाग द्वारा चलाई जा रही है, जिला के किसान बढ़चढ़ कर योजनाओं का लाभ ले रहे हैं.

उन्होंने आगे बताया कि बागों की अनुदान राशि को बढ़ाया गया है. तीन साल में 50 हजार रुपये प्रति एकड़ दिया जा रहा है. सीसीडीपी क्रॉप के तहत 15 हजार प्रति एकड़ सब्जी उत्पादन, मल्चींग 6400 रुपये प्रति एकड़ दिया जा रहा है,   जिला में किसानों द्वारा 8 से 10 हजार हैक्टैयर में बागवानी अपनाई हुई है. प्राकृतिक आपदा से नुकसान होने पर 30 हजार रुपये मुआवजा राशि दी जा रही है. मुख्यमंत्री बागवानी पोर्टल (Chief Minister Horticulture Portal) पर पंजीकरण करवाना होता है.