Sarhul 2023: झारखंड में यूं तो प्रकृति की पूजा करनेवाला प्रदेश है. यहां का आदिवासी समाज हमेशा से प्रकृति पूजक रहा है. वह नदी, पहाड़, पेड़, पौधे, जीव-जंतू से लेकर सूर्य और धरती की उपासना करता रहा है. प्रकृति का एक ऐसा ही पर्व झारखंड के आदिवासियों ने पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया. आपको बता दें कि इस त्योहार सरहुल को झारखंड का हर आदिवासी समाज मनाता है लेकिन इसको मनाने का समय और तरीका अलग-अलग होता है.
सरहुल के त्योहार पर क्या आम क्या खास सभी झूमते नाचते नजर आते हैं, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भी इस मौके पर झूमते-नाचते नजर आए.
सरहुल पर घड़े में पानी रखी जाती है जिसकी विशेष पूजा अर्चना होती है और कहा जाता है इसके जरिए ही वर्षा की भविष्यवाणी की जाती है.
सरहुल के दिन कुंवारी धरती की शादी सूरज से होनी होती है. क्योंकि यहां से सूरज का तपना शुरू होता है. उसकी ऊष्मा बढ़ती है.
झारखंड के आदिवासी होली के साथ ही अपने कटहल, कनेर, केले, आम, ढाक, पाकड़ और खास तौर पर साल के पेड़ को सजाने में लग जाते हैं.
आदिवासियों के प्रकृति प्रेम का यह त्योहार सरहुल होली के ठीक कुछ दिन बाद होता है. इस समय पूरी की पूरी धरा मानो नई नवेली दुल्हन की तरह सजी होती है.
झारखंड में सरहुल के त्योहार से पहले यहां की पहाड़ियां साल के नए बौर के साथ पलाश के लाल फूलों से आच्छादित नजर आने लगता है.
झारखंड की संस्कृति के वाहक और रक्षक आदिवासी को ही माना जाता है. इनका प्रकृति प्रेम किसी से छुपा नहीं है.
झारखंड के आदिवासियों में उरांव समाज, हो समाज, संताल समाज, मुंडारी समाज, खड़िया समाज आता है. इन सबके द्वारा इस त्योहार को अलग-अलग समय और तरीके से मनाए जाने का विधान है.
झारखंड में आदिवासियों का सबसे प्रमुख त्योहार प्रकृति पर्व सरहुल है. जिसे वह धूमधाम से मनाते हैं.
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