गया लोकसभा सीट बिहार का ऐसा सीट है जो पिछले 50 से ज्यादा साल से आरक्षित सीट रहा है. बता दें कि इस सीट को 1967 में आरक्षित सीट घोषित किया गया था. इससे पहले इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था.
Trending Photos
Lok Sabha Election 2024: गया लोकसभा सीट बिहार का ऐसा सीट है जो पिछले 50 से ज्यादा साल से आरक्षित सीट रहा है. बता दें कि इस सीट को 1967 में आरक्षित सीट घोषित किया गया था. इससे पहले इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था. फिर आरक्षित सीट घोषित होने के साथ ही पहली बार 1967 में इस पर कांग्रेस ने ही कब्जा जमाए रखा लेकिन इसके बाद 1971 के चुनाव में सीट जनसंघ के हिस्से चली गई. फिर यहां कुछ-कुछ अंतराल के बाद फेरबदल देखने को मिलता रहा. जनसंघ से यह सीट जनता पार्टी ने छिनी और फिर दो बार इसके बार यहां से कांग्रेस के इम्मीदवार विजयी हुए. इसके बाद यह सीट तीन बार जनता दल के प्रत्याशी ने अपने नाम की. फिर यहां भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी चुने गए और इसके बाद राजद ने भाजपा से यह सीट छीन ली, राजद से फिर भाजपा ने यह सीट छिनी तो 2019 तक यह सीट भाजपा के ही पास रही. बता दें कि 2019 में भाजपा और जदयू जब मिलकर लड़े तो यह सीट जदयू को दिया गया और यहां से जदयू ने जीत हासिली की.
ताज्जुब की बात यह है कि इस सीट पर 2009 से आज तक मांझी जाति के उम्मीदवार को ही जीत मिल पाई है. बता दें कि इस सीट पर 17 लाख के करीब मतदाता है. इन मतदाताओं में सबसे बड़ी संख्या मांझी समाज के लोगों की है. जो यहां जीत और हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
गया लोकसभा सीट पर 2.5 लाख से ज्यादा मतदाता हैं.इसके बाद यहां 5 लाख के करीब एससी/एसटी वोटरों की संख्या है. अल्पसंख्यकों की संख्या भी यहां बड़ी है. भूमिहार और राजपूत के साथ यादव और वैश्य तो यहां की बड़ी आबादियों में से हैं. सीट आरक्षित है लेकिन हर जाति के वोट को यहां महत्वपूर्ण माना जाता है.
इस सीट का इतिहास बड़ा अनोखा रहा है यहां चुनाव प्रचार के दौरान दो पूर्व सांसदों की हत्या तक कर दी गई. गया लोकसभा सीट 6 विधानसभा को मिलाकर गठित किया गया है. इसमें शेरघाटी, बाराचट्टी, बोधगया, गया टाउन, बेलागंज, वजीरगंज विधानसभा सीट आती है. बता दें कि यह वही गयो लोकसभा सीट है जो पहले तीन लोकसभा क्षेत्र में विभाजित था, गया पूर्व, गया उत्तर और गया पश्चिम.
गया जितना राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है इस शहर को विश्व पर उससे भी ज्यादा पहचान इसकी धार्मिक मान्यता की वजह से मिली है. फल्गु नदी के तट पर बसे इस शहर गया का पौराणिक महत्व इतना है कि जिसकी सीमा झारखंड से जुड़ती है. यहां बोधगया जहां बौद्ध के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है वहीं इस शहर को मोक्ष नगरी के नाम से भी जानते हैं जहां हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग अपने पितरों का तर्पण करने आते हैं.