Nawada Dali Basti Fire: नवादा में बुधवार को जो कुछ भी हुआ, वह मानवता के नाम पर धब्बा था. अपनी नाक ऊँची रखने के टशन में कुछ लोगों ने लक्ष्मण रेखा को लांघ दिया. इस घटना ने बिहार में हुए लक्ष्मणपुर बाथे, शंकर बिगहा, बथानी टोला कांड को जेहन में ताजा कर दिया.
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Nawada Dalit Basti Fire: बिहार के नवादा में जो कुछ भी बुधवार को हुआ, वह भयावह था. सभ्य समाज में ऐसी घटनाओं की कोई जगह नहीं होनी चाहिए पर बिहार में ऐसी घटनाओं का लंबा इतिहास रहा है. चाहे 70 के दशक का बेलछी कांड हो या फिर 90 के दशक का लक्ष्मणपुर बाथे, शंकर बिगहा, सेनारी, मियांपुर और बथानी टोला के अलावा नरकटिया दोन का कांड हो, मानवता ऐसे जाहिल किस्सों से कांप जाती है. एक दूसरे को टशन दिखाने या फिर नीचे दिखाने की इस पाश्विक प्रवृति की पुनरावृत्ति ने एक बार फिर बिहार को मध्ययुग में धकेल दिया है. दुनिया जहां 5जी तकनीक और एआई को विकसित कर खुद पर नाज कर रही है, वहीं विश्व मानचित्र पर कई ऐसी जगहें अब भी हैं, जहां कबीला संस्कृति हावी है. खैर मनाइए, नवादा की घटना में अभी तक किसी के जान से जाने की कोई खबर नहीं आई है, नहीं तो नरसंहारों के इतिहास से भरे बिहार के सरकारी कागजों में एक और नरसंहार का नाम दर्ज हो जाता. ताज्जुब तो इस बात का हो रहा है कि सरकारी तंत्र को इस लोमहर्षक घटना के बारे में तनिक भी आभास तक नहीं हुआ. आइए, नवादा कांड के बहाने बिहार को गर्त में ले जाने वाली कुछ घटनाओं को याद करने की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं.
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लक्ष्मणपुर बाथे कांड
बिहार के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार 30 नवंबर और 1 दिसंबर 1997 की रात को हुआ था और इसमें 58 लोगों को बेमौत मारा गया था. इस नरसंहार ने कइयों को अनाथ कर दिया तो कई परिवारों में घर संभालने को कोई महिला बची ही नहीं थी. कई परिवारों में केवल बच्चे रह गए थे. 7 अप्रैल, 2010 को इस मामले में निचली अदालत ने 16 दोषियों को फांसी और 10 को आजीवन कारावास की सजा दी थी पर पटना हाई कोर्ट ने 9 अक्टूबर, 2013 को सभी दोषियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था.
शंकर बिगहा कांड
जहानाबाद जिले में 25 जनवरी 1999 की रात को यह वारदात हुई थी, जिसमें 22 दलितों को मार डाला गया था. 16 साल बाद 13 जनवरी, 2015 को जिला अदालत ने सभी 24 अभियुक्तों को सबूतों के अभाव में बाइज्जत बरी कर दिया था. नरसंहारों का शायद यह पहला केस था, जिसमें सभी आरोपी निचली कोर्ट से ही बरी कर दिए गए थे. बताते हैं कि इस मामले के सभी गवाह कोर्ट में अपने बयान से मुकर गए थे और इसी को आधार बनाते हुए आरोपियों को बरी कर दिया गया था.
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बथानी टोला और बारा नरसंहार
1996 में भोजपुर जिले के बथानी टोला गांव में 22 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. यह नरसंहार गया जिले में हुए बारा नरसंहार का बदला था, जिसमें 12 फरवरी, 1992 को 35 लोगों की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी. 2012 में इस केस में भी फैसला आया, जिसमें 3 दोषियों को फांसी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.
मियांपुर कांड
मियांपुर औरंगाबाद जिले में पड़ता है. यहां 16 जून, 2000 को 35 दलितों की हत्या कर दी गई थी. सबूतों के अभाव में पटना हाई कोर्ट ने जुलाई 2013 में 10 आरोपियों में से 9 को बरी कर दिया था, जबकि निचली अदालत ने इन सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
बेलछी कांड
आजाद भारत में बिहार में हुए नरसंहारों की सूची में बेलछी कांड का जिक्र शायद सबसे आगे होना चाहिए, क्योंकि यह तब हुआ था जब देश की आजादी को केवल 30 साल हुए थे. 1977 में पटना जिले के बेलछी गांव में पिछड़ी जाति के कुछ लोगों ने 14 दलितों की हत्या कर दी थी. इस नरसंहार का जिक्र लोगों की जान जाने के कारण नहीं होता, बल्कि इसलिए होता है कि नरसंहार के बाद तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहां हाथी पर चढ़कर गई थीं और इसके बाद हिंदी पट्टी में वे फिर से लोगों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब हुई थीं.
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नरकटिया दोन नरसंहार
14 दिसंबर, 1994 को बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के रामनगर प्रखंड में भी एक नरसंहार हुआ था, जिसकी बहुत ज्यादा चर्चा नहीं होती. शायद इसलिए नहीं होती कि जो लोग इस नरसंहार के शिकार बने, वे वोटबैंक के लिहाज से उतना अहमियत नहीं रखते थे. दरअसल, वे थारू जनजाति से आते थे. 14 दिसंबर, 1994 को रामनगर प्रखंड के बहुअरवा गांव में करीब एक दर्ज लोगों को यहां मौत के घाट उतार दिया गया था. मारे गए लोगों में गौरीशंकर महतो, रामविलास महतो, जयराम महतो, विश्रान महतो, भिखारी महतो, धर्मराज महतो, छेदी महतो, रोशन महतो, रोगाही महतो, नरसिंह महतो, भुवनेश्वर महतो, रूदल महतो, बलिराम महतो, सदाकत मियां और पांडू मुंडा शामिल थे.