तंत्र साधना के लिए विख्यात है बिहार का यह 275 साल पुराना प्रसिद्ध मां बगलामुखी पीतांबरी सिद्धपीठ
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तंत्र साधना के लिए विख्यात है बिहार का यह 275 साल पुराना प्रसिद्ध मां बगलामुखी पीतांबरी सिद्धपीठ

मुजफ्फरपुर शहर के कच्ची सराय रोड स्थित प्रसिद्ध मां बगलामुखी पीतांबरी सिद्धपीठ तान्त्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध और नवरात्रि के सप्तमी की रात निशा पूजा के दौरान तान्त्रिक सिद्धि का मुख्य केंद्र माना जाता है.

(फाइल फोटो)

मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर शहर के कच्ची सराय रोड स्थित प्रसिद्ध मां बगलामुखी पीतांबरी सिद्धपीठ तान्त्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध और नवरात्रि के सप्तमी की रात निशा पूजा के दौरान तान्त्रिक सिद्धि का मुख्य केंद्र माना जाता है. प्रसिद्ध मां बगलामुखी पीतांबरी सिद्धपीठ मुजफ्फरपुर ही नहीं पूरे राज्य के लोगों की आस्था का केंद्र है. जहां सालों भर आनेवाले भक्तों का तांता लगा रहता है. 

मां बगलामुखी पीतांबरी सिद्धपीठ में स्थापित माता की प्रतिमा अष्टधातु की है और इनके दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. माता के भक्त हल्दी व दही से पूजा कर अपनी मन्नत मांगते हैं और यहां के बारे में कहा जाता है कि सच्चे मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है. 

'सहस्त्र दल महायंत्र' स्थापित है इस मंदिर के नीचे
बताया जाता है कि मंदिर के ठीक नीचे सर्व मनोकामना सिद्ध 'सहस्त्र दल महायंत्र' स्थापित है. जिससे यहां आने वाले हर व्यक्ति की मुरादें मां पूरी करती हैं. इस मंदिर की खास बात है कि नवरात्र में यहां देशभर के अलावा कोलकाता से दर्जनों अघोर तांत्रिक साधना के लिए जुटते हैं और सुबह होने से पहले तक तंत्र साधना समाप्त करते हैं. इसके लिए मन्दिर के पीछे वाले परिसर में चार हवन कुंड बना है. जहां तांत्रिक तंत्र क्रियाओं को पूरा करते हैं और इस दौरान यहां महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध रहता है. 

दस महाविद्या में मां का आठवां स्वरूप मां बगलामुखी 
मां बगलामुखी पीतांबरी सिद्धपीठ दस महाविद्या में मां का आठवां स्वरूप है और ऐसी मान्यता है कि यहां 21 दिन नियमित दर्शन करने से मां भगवती भक्त की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं.

ऐसे हुई इस मंदिर की स्थापना 
इस मंदिर की स्थापना महंत देवराज के पूर्वजों ने की जो वैशाली के महुआ आदलपुर से आकर यहां बसे थे और मां बगलामुखी इनके परिवार की कुलदेवी थी. जिससे माता की इस परिवार पर असीम कृपा थी. बताया जाता है कि उनके पूर्वज ने मंदिर की स्थापना के पूर्व कोलकाता के एक तांत्रिक से गुरु मंत्र लिया और उन्हीं की प्रेरणा से मंदिर की स्थापना हुई. यहां वाम व दक्षिण मार्ग से पूजा की जाती है. धीरे-धीरे तांत्रिक शक्तियों के कारण लोगों की आस्था यहां बढ़ी और सालों से यहां तांत्रिक आते हैं और साधना करते हैं. बाद में यहां मां त्रिपुर सुंदरी, मां तारा, बाबा भैरवनाथ व हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित हुई. 

महंत देवराज ने बताया मंदिर की स्थापना करीब 275 वर्ष पूर्व
बताया जाता है कि वास्तु कला व तांत्रिक विधि से इस मंदिर की स्थापना की गई है और इसके साथ ही तांत्रिक प्रक्रिया द्वारा मूर्ति की भी स्थापना की गई थी. इस मंदिर की खासियत है कि नवरात्र हो या आम दिन, यहां सालों भर तांत्रिकों का मेला लगा रहता है. उनके साथ ही शहर के भक्तों के अलावा नेपाल से आमजन पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. प्रत्येक गुरुवार व शारदीय व चैत्र नवरात्र के अवसर पर यहां काफी भीड़ उमड़ती है. सुबह-शाम दोनों समय माता की भव्य आरती होती है जिसमें काफी लोग भाग लेते हैं. 
(रिपोर्ट-मणितोष कुमार)

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