पिता की मौत के बाद पार्टी की 'हत्या', तन्हाई के दौर में दुखों का पहाड़ और फिर मजबूती से उठ खड़े हुए चिराग पासवान
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पिता की मौत के बाद पार्टी की 'हत्या', तन्हाई के दौर में दुखों का पहाड़ और फिर मजबूती से उठ खड़े हुए चिराग पासवान

Lok Sabha Election 2024: जब लोजपा में बगावत हुई थी और पशुपति कुमार पारस ने अलग गुट स्थापित कर लिया था, तब चिराग पासवान अस्पताल से प्रेस कांफ्रेंस करने पहुंचे थे. चिराग पासवान ने तब कहा था- मैं शायद उस दिन अनाथ नहीं हुआ था, जब मेरे पापा रामविलास पासवान की मौत हुई थी. मैं उस दिन अनाथ हो गया, जब मेरे चाचा मुझसे अलग हो गए.

चिराग पासवान

Lok Sabha Election 2024: मुश्किलें हार जाएगी आपको हराते-हराते, अगर आपने अपनी मंजिल पाने की ठान ली तो..!! चिराग पासवान पर यह लाइन एकदम सटीक बैठती है. पहले जिम्मेदारी का बोझ, फिर पिता का निधन और उसके बाद चाचा पशुपति कुमार पारस का बागी होना. किसी भी इंसान के टूटने के लिए इतना सितम काफी हो सकता है, पर चिराग अड़े रहे, डटे रहे. सिर पर दुखों का पहाड़ और दिल में दुनिया भर का दर्द समेटे चिराग पासवान वीर तुम बढ़े चलो के अंदाज में मुश्किलों का सामना करते आगे बढ़ते रहे. उनके सामने अपने पिता की विरासत को बचाने की चुनौती थी तो अपना राजनीतिक करियर संवारने का लक्ष्य भी. बीच में अनेक तूफां आए और गए पर चिराग खूंटा की तरह अड़े रहे. बीच में उनका अपने आराध्य का साथ भी छूट गया. वे खुद को पीएम मोदी का हनुमान... हनुमान कहते रहे पर राजनीति की लीला ऐसी कि पीएम मोदी और पूरी भाजपा चाहकर भी चिराग पासवान के दुखों पर मरहम नहीं लगा सकती थी. 

बीच में रामविलास पासवान के दिल्ली स्थित आवास को लेकर भी तमाशा हुआ. एक ऐसा दौर भी आया जब चिराग पासवान को दिल्ली स्थित रामविलास पासवान के 12 जनपथ स्थित आवास से बेदखल कर दिया गया. उस आवास में पिछले 32 सालों से रामविलास पासवान रह रहे थे और उनके साथ चिराग पासवान की यादें भी उनसे जुदा हो गईं. चिराग पासवान का बचपन जिस बंगले में बीता हो, जिस बंगले में वे बड़े हुए, उस बंगले का यूं ही छिन जाना चिराग पासवान को अंदर से रुला गया. वो भी तब जब राजनीतिक रूप से वे तन्हाई में थे. भाजपा का साथ छूट चुका था, राजद के साथ वे थे नहीं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बला तक चिराग पासवान को नापसंद करते थे. कहते हैं कि अपनों के बिना आदमी रह सकता है पर उनकी यादों के बिना तो जिंदा ही नहीं रह सकता. चिराग पासवान ने रूंधे गले से कहा था, मेरा परिवार कानून का सम्मान करने वाला परिवार है. जिस तरह से आवास खाली कराया गया, वो बिहार की जनता देख रही है.

याद करिए, जब लोजपा में बगावत हुई थी और पशुपति कुमार पारस ने अलग गुट स्थापित कर लिया था, तब चिराग पासवान अस्पताल से प्रेस कांफ्रेंस करने पहुंचे थे. चिराग पासवान ने तब कहा था- मैं शायद उस दिन अनाथ नहीं हुआ था, जब मेरे पापा रामविलास पासवान की मौत हुई थी. मैं उस दिन अनाथ हो गया, जब मेरे चाचा मुझसे अलग हो गए. बाद में चिराग पासवान ने अपनी पार्टी में बगावत के पीछे जेडीयू का हाथ होने की बात कही थी. उन्होंने कहा कि जब मेरे पापा अस्पताल में थे, तब भी पार्टी तोड़ने की कोशिश की गई थी. चिराग ने यह भी कहा, मैं अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ हूं और मुझे दुख इस बात का है कि मेरी बीमारी के समय में मेरे खिलाफ साजिश रची गई. जब चिराग पासवान से पूछा गया कि क्या हनुमान अपने राम की मदद लेंगे तो चिराग ने पीएम मोदी पर परोक्ष रूप से टिप्पणी करते हुए कहा था- अगर हनुमान को राम से मदद मांगनी है तो हनुमान किस काम के और फिर राम किस काम के?

लोजपा के लिहाज से 3 तारीखें बेहद खास हैं
- 5 नवंबर 2019 को चिराग पासवान लोजपा के अध्यक्ष बने थे. रामविलास पासवान ने पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में खुद यह जिम्मेदारी उन्हें सौंपी थी. 
- 8 अक्तूबर 2020 को रामविलास पासवान की मौत हो गई. 
- 14 जून, 2021 को यह आरोप लगाते हुए बगावत शुरू हो जाती है कि चिराग पासवान की कार्यशैली ठीक नहीं है. पार्टी में बड़ी फूट हो जाती है और 6 में से 5 सांसद पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में बागी होकर अलग गुट बना लेते हैं. 

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क्रोनोलॉजी समझ में आ गई होगी 

अब जरा इन तारीखों पर गौर फरमाइएगा, आपको क्रोनोलॉजी खुद ब खुद समझ में आ जाएगी. रामविलास पासवान के खून पसीने से सींची गई पार्टी की एक तरह से 'हत्या' कर दी जाती है. यह भी राजनीति का एक स्वरूप है. राजनीति में तो पिता और पुत्र, भाई और भाई, भाई और बहन, मां और बेटा को लड़ते देखा गया है. चिराग पासवान और पशुपति तो फिर भी भतीजे और चाचा थे.

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