Bochaha by election: तारापुर और कुशेश्वरस्थान में जहां अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में चुनाव हुआ था तो बोचहां में चुनाव परिणाम अभी-अभी आया है. तारापुर और कुशेश्वरस्थान दोनों सीटें जेडीयू विधायक के निधन के बाद खाली हुई थी, तो बोचहां में VIP विधायक मुसाफिर पासवान की मौत के बाद चुनाव हुआ था.
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पटनाः Bochaha by election: पहले तारापुर और कुशेश्वरस्थान और अब बोचहां, बिहार में 6 महीने के भीतर हुए 3 उपचुनाव के नतीजे आखिर किस तरफ इशारा करते हैं. क्या बिहार की सियासत किसी बड़े परिवर्तन की तरफ बढ़ रही है या वोटिंग का जो पैटर्न विधानसभा चुनाव के दौरान देखा गया था, वो अबतक कायम है. कई सवाल हैं, जिनका जवाब तलाशना बेहद जरूरी है.
तारापुर और कुशेश्वरस्थान उपचुनाव
तारापुर और कुशेश्वरस्थान में जहां अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में चुनाव हुआ था तो बोचहां में चुनाव परिणाम अभी-अभी आया है. तारापुर और कुशेश्वरस्थान दोनों सीटें जेडीयू विधायक के निधन के बाद खाली हुई थी, तो बोचहां में VIP विधायक मुसाफिर पासवान की मौत के बाद चुनाव हुआ था. कुशेश्वरस्थान सीट पर जेडीयू उम्मीदवार अमन हजारी 12 हज़ार से ज्यादा वोटों से जीते तो तारापुर में जेडीयू उम्मीदवार राजीव सिंह कड़े मुक़ाबले में क़रीब 3800 वोटों से चुनाव जीत सके. दोनों ही सीट पर मुक़ाबला ज़ोरदार रहा और जेडीयू अपनी सीट बचाने में क़ामयाब रही. यानी एनडीए और महागठबंधन में मुक़ाबला फिलहाल 2-1 पर चल रहा है.
विधानसभा चुनाव से अब तक कुछ नहीं बदला?
यहां ये जानना भी दिलचस्प है, कि वीआईपी के जीते 4 में से 3 विधायकों को बीजेपी ने अपनी पार्टी में शामिल करा लिया है और मुसाफिर पासवान वाली सीट से अब उनके बेटे अमर पासवान आरजेडी के विधायक हैं. यानी विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक आरजेडी ने एनडीए की एक सीट अपने नाम कर ली है.
अब थोड़ा पीछे चलते हैं, जब नवंबर 2020 में बिहार विधान सभा का चुनाव परिणाम सामने आया था तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए थे. सत्ताधारी जेडीयू बिहार में संख्या के लिहाज से तीसरे नंबर की पार्टी बन गई तो आरजेडी ना केवल बिहार विधानसभा में सबसे बड़े दल के रूप में फिर से उभरी बल्कि कुछ ही सीटों के अंतर से सरकार बनाने से चूक गई. दो बड़ी पार्टियों (बीजेपी और जेडीयू) का गठबंधन आरजेडी पर सरकार बनाने के मामले में भारी पड़ा. उसके बाद तारापुर और कुशेश्वरस्थान का उपचुनाव जेडीयू कोटे से खाली हुई, हालांकि दोनों सीटें जेडीयू ने फिर से अपने नाम कर ली लेकिन इसके लिए पार्टी को खूब ज़ोर लगाना पड़ा. इधर बोचहां में भी बीजेपी ने जोर तो पूरा लगाया लेकिन पलड़ा आरजेडी के ही नाम रहा.
बोचहां में किन मुद्दों ने तय की जीत-हार?
बोचहां में हार के पीछे बिहार के सियासी पंडितों की अलग-अलग राय है, कुछ लोगों का मानना है कि वीआईपी के उम्मीदवार की वजह से बीजेपी के वोटों में कमी आई जबकि कुछ लोग मानते हैं कि जेडीयू वोटर्स के एक बड़े तबके ने भीतरखाने बीजेपी को सबक सिखा दिया है. कुछ ऐसे भी लोग हैं जो मानते हैं कि बोचहां में सवर्ण मतदाताओं ने खासकर भूमिहार जाति के वोटर्स आरजेडी के पक्ष में लामबंद हो गए जो उसका परंपरागत वोटर कभी नहीं रहा. इनमें चाहे जिस फैक्टर ने काम किया हो या फिर सारे फैक्टर प्रभावी रहे हों लेकिन बोचहां का परिणाम आरजेडी के लिए अच्छा है एनडीए के लिए सही नहीं कहा जाएगा.
विधान परिषद चुनाव में भी RJD मजबूत हुई
यहां सबसे महत्वपूर्ण ये है कि विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने जिस तरीके का प्रदर्श किया था, क़रीब डेढ़ वर्ष बीतने के बाद भी पार्टी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है. अभी हाल ही में विधानपरिषद का चुनाव संपन्न हुआ है, 24 सीटों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी को 7, आरजेडी को 6 और जेडीयू को 5 सीटों पर सफलता मिली है. जबकि इन्हीं 24 सीटों में पिछले चुनाव के मुताबिक बीजेपी 12, जेडीयू 5 तो आरजेडी ने महज 3 सीटें जीती थीं. यानी बोचहां उपचुनाव से पहले विधान परिषद के चुनाव में भी आरजेडी की ताक़त बढ़ती हुई और एनडीए में शामिल दलों की ताक़त घटती हुई दिखाई दी. ये कुछ ऐसे संकेत हैं जो बताते हैं कि बिहार की सियासत में आने वाले दिनों में कुछ बदलाव भी होने वाला है.
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