Begusarai Holi: 200 वर्षों से अलग तरीके से खेली जाती है होली, जानिए क्या है मटिहानी गांव का कुआं वाला रंगोत्सव
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Begusarai Holi: 200 वर्षों से अलग तरीके से खेली जाती है होली, जानिए क्या है मटिहानी गांव का कुआं वाला रंगोत्सव

Begusarai Holi: परंपरा है कि गांव के आठ कुओं पर यह होली मनाई जाती है. होली के पहले दिन पांच कुओं पर दो टोला में बंटे सैकड़ों की संख्या में लोग पिचकारी से एक दूसरे पर रंग डालते हैं और जिसका पानी खत्म हो जाता है वह टोली हार जाती है. इसी तरह एक-एक कर गांव के पांच कुओं पर इसी तरह से होली मनाई जाती है, फिर अगले दिन तीन कुओं पर होली मनाई जाती है. 

मटिहानी गांव का कुआं वाला रंगोत्सव

Begusarai Holi: बेगूसराय में रंगों का त्योहार होली पूरे धूमधाम से मनाया गया. खासकर मटिहानी प्रखंड के मटिहानी गांव में होली उत्सव के रूप में मनाया जाता है. यहां करीब 200 सालों से अलग तरीके से होली मनाई जाती है. गांव के चंदिका स्थान मंदिर परिसर में दो टोली में बंटे गांव वाले एक दूसरे पर पिचकारी से रंग फेंकते हैं. 

दरअसल, परंपरा है कि गांव के आठ कुओं पर यह होली मनाई जाती है. होली के पहले दिन पांच कुओं पर दो टोला में बंटे सैकड़ों की संख्या में लोग पिचकारी से एक दूसरे पर रंग डालते हैं और जिसका पानी खत्म हो जाता है वह टोली हार जाती है. इसी तरह एक-एक कर गांव के पांच कुओं पर इसी तरह से होली मनाई जाती है, फिर अगले दिन तीन कुओं पर होली मनाई जाती है. 

ग्रामीणों ने बताया कियह परंपरा सैकड़ों बरसों से चली आ रही है और यह ऐतिहासिक है‌. ऐसी होली बेगूसराय और बिहार में इसके आलावा कहीं नहीं मनाई जाती है. जहां जाति धर्म से उठकर लोग होली के दिन एक दूसरे से गले मिलते हैं और टोली बनाकर एक दूसरे पर रंग डालकर जश्न मनाते हैं. समापन के बाद जो टोली विजय होती है उसे ग्रामीणों के द्वारा पुरस्कार भी दिया जाता है. 

इस होली की तैयारी करीब 1 महीने से होती है. गांव के मंदिरों में ग्रामीण रोजाना रात में ढोल बाजे बजा कर होली के गाने गाते हैं. इसके साथ ही गांव में घूम-घूम कर यह टोली पारंपरिक गीतों के साथ होली के गीत गाते हैं और आज होली के दिन जब कुआं पर होली मनाई जाती है. उसे समय भी कई टीमें गाने बजाने में जुटी रहती है. 

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पुरुष महिला का ड्रेस पहन कर ढोल बाजे पर डांस करते हैं और होली का आनंद उठाते हैं. ग्रामीणों ने कहा कि कुआं पर होली के लिए भी तैयारी की जाती है पहले कुआं से पानी निकाला जाता था, लेकिन अब कुआं में पानी नहीं रहने की वजह से पंप से ड्रम में पानी भरा जाता है और उसमें रंग मिलाकर दोनों टीम एक दूसरे पर पिचकारी से रंग डालकर इस उत्सव के रूप में मनाते हैं.

रिपोर्ट: राजीव कुमार

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