Indian Coast Guard: कौन हैं सहायक कमांडेंट प्रियंका त्यागी, जिन्होंने इंडियन कोस्ट गार्ड को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
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Indian Coast Guard: कौन हैं सहायक कमांडेंट प्रियंका त्यागी, जिन्होंने इंडियन कोस्ट गार्ड को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

Indian Coast Guard Latest News: देश की तीनों सेनाएं महिलाओं को परमानेंट कमीशन के दरवाजे कब से खोल चुकी हैं लेकिन भारतीय कोस्ट गार्ड अब भी हिचक में है. इसके लिए प्रियंका त्यागी नाम की एक अधिकारी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं.

 

Indian Coast Guard: कौन हैं सहायक कमांडेंट प्रियंका त्यागी, जिन्होंने इंडियन कोस्ट गार्ड को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

Priyanka Tyagi Indian Coast Guard News: सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन कोस्ट गार्ड (तटरक्षक बल) में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन न देने की नीति पर नाराजगी जाहिर की है. आज सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि ICG इस बारे में जल्द ही हलफनामा दायर करेगा. उन्होंने कहा कि कोस्ट गार्ड की नौकरी नेवी और आर्मी से अलग है. लिहाजा स्थाई कमीशन देने के बारे में अभी विचार हो रहा है.

'2024 में ये दलील ठीक नहीं'

चीफ जस्टिस ने उनकी दलील से असंतुष्टि जाहिर करते हुए कहा कि 2024 में सरकार की ये दलील ठीक नहीं है. महिलाओं को यूं उपेक्षित नहीं छोड़ा जा सकता. अगर आप स्थाई कमीशन का प्रावधान नहीं करते तो फिर कोर्ट को करना होगा. 

'महिलाओं के साथ न हो भेदभाव'

इससे पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और ICG की खिंचाई करते हुए कहा था कि कोस्ट गार्ड को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिसमें महिला अधिकारियों के साथ भेदभाव की कोई गुंजाइश न हो.

कौन हैं सहायक कमांडेंट प्रियंका त्यागी?

बताते चलें कि प्रियंका त्यागी इंडियन कोस्ट गार्ड में असिस्टेंट कमांडेंट हैं. वे तटरक्षक बल में 14 साल की सर्विस कर चुकी हैं. इस दौरान उन्होंने समुद्र में 300 से ज्यादा जिंदगी को बचाया. इस योगदान के बावजूद कोस्ट गार्ड ने उन्हें परमानेंट कमीशन देने से इंकार कर दिया. इसके बाद अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. 

महिलाओं को परमामेंट कमीशन क्यों नहीं?

देश की सर्वोच्च अदालत में अपने वकील के जरिए दायर की गई याचिका में प्रियंका त्यागी ने आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में महिलाओं को स्थाई कमीशन दिए जाने की नीति का हवाला दिया है. उनका कहना है कि जब देश की तीनों सेनाओं में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन मिल रहा है तो फिर भारतीय कोस्ट गार्ड उनके साथ भेदभाव कैसे कर सकता है. इस मामले में सुनवाई अभी जारी है और अगली तारीख पर संभवतया कोई फैसला आ सकता है. 

भेदभाव के खिलाफ महिलाओं की लंबी लड़ाई

बताते चले कि तीनों सेनाओं में पुरुषों की तरह स्थाई कमीशन हासिल करने के लिए महिलाओं को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. महिलाओं को भारतीय सेना में सबसे पहले वर्ष 1992 में 5 साल के शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) पर बतौर अधिकारी तैनात होने का अवसर मिला था. इसके बाद वर्ष 2006 में 5 साल की अवधि को बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया, जिसे 14 साल तक बढ़ाया जा सकता था. हालांकि परमानेंट कमीशन हासिल करना महिलाओं के लिए अब भी दूर की कौड़ी था.

हाईकोर्ट में 2003 में दायर की गई याचिका

इस भेदभाव के खिलाफ सेना में तैनात कुछ महिला अधिकारियों ने वर्ष 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की और उन्हें भी पुरुषों की तरह परमानेंट कमीशन दिलवाने की मांग की. करीब 7 साल तक चली सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने इस बारे में वर्ष 2010 में महिला अधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया. हालांकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस फैसले को नहीं माना और सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी.

भारतीय कोस्ट गार्ड अब भी कर रहा टाल-मटोल

करीब 10 तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 7 जुलाई 2020 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए महिलाओं को भी तीनों सेनाओं में परमानेंट कमीशन देने का आदेश दिया. अदालत ने इस आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए एक महीने का एक्सट्रा टाइम दिया. तब से तीनों सेनाओं में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन हासिल करने के रास्ते खुल चुके हैं. हालांकि गृह मंत्रालय के तहत आने वाला भारतीय कोस्ट गार्ड अब भी महिलाओं को स्थाई कमीशन देने के मामले में टाल-मटोल कर रहा है. 

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