Viral News: 1 जुलाई को डॉक्टर्स डे है. इस खास मौके पर डॉक्टरों को उनके समर्पण और सेवा के लिए याद किया जाता है. आज हम इस विशेष मौके पर मिलवा रहे हैं दिल्ली के एक ऐसे खास परिवार से जिसमें 102 साल से हर सदस्य डॉक्टर बना है और लोगों की सेवा की है.
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Unique Doctor Family: डॉक्टर को कई लोग धरती पर भगवान कहते हैं. डॉक्टर कई गंभीर बीमारियों में इलाज करके मरीजों को नई जिंदगी देते हैं. कोरोना जैसी महामारी आने पर डॉक्टर दिन-रात काम करते हुए लोगों को खतरे से बचाते हैं. 1 जुलाई को डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है. अधिकतर डॉक्टर अपनी जान जोखिम में डालकर भी मरीजों के इलाज का फर्ज विपरित परिस्थितियों में भी निभाते हैं. यह पेशा कड़ी मेहनत और समर्पण मांगता है. डॉक्टर्स डे के मौके पर आज हम आपको मिलवाने जा रहे हैं एक ऐसे परिवार से जिसका हर सदस्य पिछले 100 साल से डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा कर रहा है. हम बात कर रहे हैं दिल्ली के सब्बरवाल परिवार की. इस परिवार ने 1920 से लेकर अब तक 150 से अधिक डॉक्टर दिए हैं. ये लोग इस पेशे को एक मिशन के रूप में देखते हैं.
इस परिवार की बहू डॉ. ग्लॉसी सब्बरवाल 1920 की एक तस्वीर दिखाते हुए बताती हैं कि परिवार के दिवंगत पिता लाला जीवनमल सबसे पहले डॉक्टर थे. उन्होंने पाकिस्तान के जलालपुर शहर में इस अस्पताल की शुरुआत की थी. वह महात्मा गांधीजी से प्रेरित थे, जिन्होंने कहा था कि इस देश का भविष्य शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा. गांधी जी की बातों को सुनकर ही लाला जीवनमल ने अपने चारों बेटों को डॉक्टर बनाने का फैसला किया. आजादी के बाद परिवार दिल्ली में आ गया, लेकिन इसके बाद भी डॉक्टर वाली परंपरा जारी रही.
वह कहती हैं कि “यह परंपरा पिछले 102 वर्षों से चल रही है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है. वह बताती हैं कि परिवार के एक बेटे ने मैनेजमेंट की डिग्री के लिए पढ़ाई शुरू की, लेकिन दादी की भावनात्मक अपील और परिवार के माहौल को देखते हुए उसने मैनेजमेंट की पढ़ाई छोड़कर मेडिकल प्रोफेशन को अपनाया. वह आज एक सफल सर्जन हैं और लोग उसे अंकुश सब्बरवाल नाम से जानते हैं.”
डॉ. ग्लॉसी कहती हैं कि वे लोग दिल्ली में जीवनमल अस्पताल चलाते हैं. यहां पैसे न होने पर भी मरीजों का इलाज किया जाता है. किसी को यहां से लौटाया नहीं जाता है. वह बताती हैं कि, उनके परिवार के दो डॉक्टर सदस्यों की पिछले साल कोरोना वायरस की वजह से से मृत्यु हो गई थी. डॉ विनय कहते हैं कि अगली पीढ़ी को इस पेशे में आने के लिए राजी करना बहुत मुश्किल है. यह पेशा बहुत ज्यादा मेहनत और बलिदान की मांग करता है. उम्मीद है कि परिवार की बहुएं भी डॉक्टर होंगी और पारिवारिक अस्पताल में शामिल होंगी.
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