Swaminathan Commission Recommendations: दिल्ली घेराव के लिए निकले हुए पंजाब के सैकड़ों किसान केंद्र सरकार से स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की मांग कर रहे हैं. इस आयोग की रिपोर्ट 2004 में आई थी लेकिन 20 साल बाद उसकी रिपोर्ट ने सरकार का तनाव बढ़ा रखा है.
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What is Swaminathan Commission Recommendations: अपनी 13 सूत्रीय मांगों को लेकर दिल्ली कूच पर अड़े पंजाब के किसान फिलहाल पंजाब- हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर रुके हैं. वहां पर उन्हें हरियाणा सरकार ने भारी बैरिकेडिंग करके रोका हुआ है. किसानों की सबसे प्रमुख मांग विभिन्न फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करवाने की है. इसके लिए वे स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट का हवाला दे रहे हैं. वही स्वामीनाथन, जिन्हें हाल में ही मोदी सरकार ने भारत रत्न देने का ऐलान किया है. देश के नामवर कृषि वैज्ञानिक के रूप में चर्चित एम एस स्वामीनाथन को देश में हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है.
सरकार ने 2004 में बनाया था स्वामीनाथन आयोग
देश के किसानों की दशा सुधारने के लिए सरकार ने वर्ष 2004 में स्वामीनाथन के नेतृत्व में एक आयोग बनाया था. इसी आयोग को स्वामीनाथन आयोग कहा जाता था. इस आयोग ने जो रिपोर्ट दी, उसे अगर सरकार लागू कर पाए तो करोड़ों किसानों की तकदीर बदलते देर नहीं लगेगी. हालांकि स्वामीनाथन आयोग की यही रिपोर्ट अब मोदी सरकार के गले की हड्डी बन गई है. आइए जानते हैं कि स्वामीनाथन आयोग में ऐसा क्या है, जिस पर पंजाब से लेकर हरियाणा- दिल्ली तक हंगामा मचा हुआ है.
MSP पर क्या थी आयोग की सिफारिश?
स्वामीनाथन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कई सिफारिशें दी थीं. इनमें सबसे खास सिफारिश MSP को लेकर थी. आयोग ने सिफारिश की थी कि छोटे किसानों के लिए फसल उगाना फायदेमंद हो सके, इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की संस्तुति की थी. उनका कहना था कि MSP को केवल कुछ फसलों तक सीमित न रह जाए बल्कि इसका विभिन्न फसलों तक विस्तार किया जाए.
'जमीन के असमान वितरण को दूर करें'
स्वामीनाथन आयोग ने बढ़ती आबादी और घटती कृषि भूमि की समस्या का समाधान करने के लिए भी अपनी सिफारिश दी थी. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 1991-92 के सर्वे के मुताबिक देश में करीब 50 फीसदी ग्रामीण आबादी के पास केवल 3 फीसदी कृषि भूमि थी. जबकि कुछ लोगों के पास सैकड़ों बीघे जमीन का भंडार था. इस असंतुलन को दूर करने के लिए भूमि सुधार लागू करने और बेकार पड़ी भूमि को भूमिहीनों को वितरित करने का सुझाव दिया था.
'किसानों के लिए बनाएं कृषि जोखिम फंड'
किसानों पर बढ़ते कर्ज और आत्महत्या मामलों को कम करने के लिए भी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अहम सिफारिश दी थी. स्वामीनाथन आयोग ने कहा कि खेती करना पूरी तरह अनिश्चितता वाला पेशा है. किसानों को कभी बाढ़ तो कभी सूखे का सामना करना पड़ता है. ऐसे में किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए कृषि जोखिम फंड बनाया जाना चाहिए. इसके लिए राज्यों के स्तर पर सेहत से जुड़ी सुविधाएं बढ़ाने, फॉर्मर कमीशन बनाने और वित्त- बीमा की स्थिति को मजबूत करने की बात कही थी.
वर्तमान में कैसे तय होता है एमएसपी?
अब बात करते हैं, आंदोलनकारी किसानों के मुख्य मुद्दे यानी फसलों की MSP पर. फिलहाल किसी भी फसल पर MSP केंद्र और राज्य सरकारें तय करती हैं. इसके लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग यानी CACP का गठन किया था. यही आयोग हर साल देश में खरीफ और रबी की फसलों पर MSP तय करता है. इसके लिए देखा जाता है कि उगाई फसल की लागत क्या है और और बाजार में वह किस दाम पर बिक रही है. उस फसल की मांग- पूर्ति जैसे कारकों को भी इस काम में ध्यान में रखा जाता है.
मोदी सरकार के सामने क्या है मुश्किलें?
आंदोलनकारी किसानों को मनाने के लिए केंद्र सरकार के 3 मंत्री दो दौर की बातचीत कर चुके हैं. सरकार का कहना है कि वह किसानों की MSP की मांग से सहमत है लेकिन उसे जल्दबाजी में लागू नहीं किया जा सकता. सरकार का तर्क है कि इसके लिए उद्यमियों और दूसरे स्टेकहोल्डर्स से बात कर उचित माहौल बनाना होगा. उसके बाद ही इस संबंध में कोई फैसला हो सकेगा.
क्या किसानों की मांगें मानेगी सरकार?
हालांकि किसान सरकार के इन आश्वासनों से सहमत नहीं हैं. वह किसानों की दशा को सुधारने के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को अक्षरक्ष लागू करने की मांग कर रहे हैं. इसमें एमएसपी, कृषि जोखिम फंड बनाने, जमीनों के असमान वितरण को दूर करने, बीज का वितरण बढ़ाने और खेती लायक माहौल बनाने की सिफारिशें शामिल हैं. क्या सरकार इन सभी मांगों को पूरा करने का साहस दिखा पाएगी, यह देखने लायक बात होगी. हालांकि तब तक दिल्ली- हरियाणा के लाखों लोगों को ट्रैफिक से जुड़ी दिक्कतें झेलनी पड़ेंगी.