ऑस्ट्रेलिया के मैरीबोरो रिजनल पार्क में एक शख्स को दुर्लभ किस्म की चट्टान मिली, उसे लगा कि उसमें गोल्ड हो सकता है. उसने गोल्ड पाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा. उसने मेलबोर्न म्यूजियम से संपर्क साधा और जब जानकारी सामने आई तो जियोलॉजिस्ट भी हैरान रह गए.
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फर्ज करिए कि आप कहीं घूम रहे हों और आपके हाथ खजाना लग जाए.आपकी पहली प्रतिक्रिया किस तरह की होगी.आप सपने बुनने लग जाएंगे. यह काम करेंगे वो काम करेंगे. कुछ ऐसा ही हुआ ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले डेविड होल के साथ. वो मेटल डिटेक्टर के साथ मैरीबोरो रिजनल पार्क का निरीक्षण कर रहे थे. एकाएक उन्हें पीली मिट्टी पर लाल रंग की एक चट्टान नजर आई. वो उस पत्थर को अपने घर ले गए. उसे साफ किया और उन्हें लगा कि पत्थर के अंदर गोल्ड हो सकता है. उनकी सोच के पीछे वजह भी थी क्योंकि 19 सदी में जब यह खबर फैली की मॉर्लबोरो पार्क में सोने की खदानें हैं तो लोगों की लाइन लग गई जिसे गोल्ड रश के नाम से भी जाना जाता है.
गोल्ड पाने की सभी कोशिश हुई नाकाम
डेविड होल ने उस पत्थर को तोड़ने के लिए आरी, एंगल ग्राइंडर के साथ साथ एसिड का इस्तेमाल किया. लेकिन किसी भी उपाय से वो पत्थर को तोड़ पाने में नाकाम रहे. दरअसल जिस पत्थर के अंदर उन्हें गोल्ड की उम्मीद थी वो सामान्य पत्थर नहीं था. कई वर्षों के बाद जिस पत्थर को वो तोड़ने की कोशिश कर रहे थे वो दुर्लभ किस्म उल्कापिंड था. डेविड होल को लगा कि अब जब किसी तरह का फायदा नहीं मिला तो वे उसे लेकर मेलबोर्न म्यूजियम गए. म्यूजियम में काम करने वाले जियोलॉजिस्ट हेनरी बताते हैं कि अक्सर वो लोगों से सुना करते थे कि उन्हें उल्कापिंड मिला है लेकिन जांच में वो सामान्य चट्टानें होती थीं. लेकिन यह पत्थर अलग तरह का था. इस मामले में मेलबोर्न म्यूजियम के दूसरे जियोलॉजिस्ट बताते हैं कि अगर आप धरती पर किसी चट्टान को देखेंगे और उसे उठा लें तो कोई असामान्य बात नहीं है, क्योंकि वे इतने भारी नहीं होते हैं.
शोधकर्ताओं ने 4.6 अरब साल पुराने उल्कापिंड के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इसका वजन 17 किलोग्राम (37.5 पाउंड) है, और एक छोटे टुकड़े को काटने के लिए हीरे की आरी का उपयोग किया गया. शोधकर्ताओं ने पाया कि इसकी संरचना में लोहे की मात्रा अधिक थी.उसकी वजह से वो H5 चोंड्राइट बन गया. हेनरी बताते हैं कि उल्कापिंड अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए सबसे आसान विकल्प होते हैं. उनके जरिए सौर मंडल की उम्र, संरचना और केमिस्ट्री के बारे में जानकारी हासिल होती है.
काम का निकला उल्कापिंड
कुछ हमारे ग्रह के गहरे आंतरिक भाग की झलक प्रदान करते हैं. कुछ उल्कापिंडों में हमारे सौर मंडल से भी पुराना 'स्टारडस्ट' है, जिससे पता चलता है कि हमें दिखाता है तारे कैसे बनते और विकसित होते हैं. इसी तरह दुर्लभ उल्कापिंडों में अमीनो एसिड जैसे कार्बनिक अणु होते हैं जो धरती पर मानव उत्पत्ति के बारे में जानकारी देते हैं. ये जीवन के निर्माण खंड हैं. शोधकर्ताओं को अभी तक यह नहीं पता है कि उल्कापिंड कहां से आया और यह पृथ्वी पर कितने समय से रहा होगा. हालांकि उन्होंने कुछ अनुमान लगाया कि हमारा सौर मंडल एक समय धूल और चॉन्ड्राइट चट्टानों का घूमता हुआ ढेर था. गुरुत्वाकर्षण ने इस सामग्री का एक बड़ा हिस्सा ग्रहों में खींच लिया, लेकिन बचा हुआ अधिकांश हिस्सा एक विशाल क्षुद्रग्रह बेल्ट में समाप्त हो गया.
हेनरी बताते हैं कि यह विशेष उल्कापिंड मंगल और बृहस्पति के बीच क्षुद्रग्रह बेल्ट से निकला होगा. एक-दूसरे से टकराने से कुछ एस्टेरॉयड बाहर निकल जाते हैं और पृथ्वी से टकरा जाते हैं. कार्बन डेटिंग से पता चलता है कि उल्कापिंड पृथ्वी पर 100 से एक हजार वर्षों के बीच रहा है.शोधकर्ताओं का तर्क है कि मैरीबोरो उल्कापिंड सोने की तुलना में बहुत दुर्लभ है, जो इसे विज्ञान जगत के लिए कहीं अधिक कीमती बनाता है. यह ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में अब तक दर्ज किए गए केवल 17 उल्कापिंडों में से एक है.यह विक्टोरिया में पाया गया केवल 17वां उल्कापिंड है.जबकि हजारों सोने की डलियां मिली हैं. घटनाओं की शृंखला को देखते हुए कहा जा सकता है कि इसकी खोज बिल्कुल खगोलीय है.