Explained: रूस जो चाहे वो करे... ट्रंप को सुनकर क्यों घबराए NATO देश, सारा खेल पैसे का है
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Explained: रूस जो चाहे वो करे... ट्रंप को सुनकर क्यों घबराए NATO देश, सारा खेल पैसे का है

Trump NATO Spending: ज्यादातर विवादों की वजह पैसा है. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने भी फंडिंग की बात कर एक विवाद को हवा दे दी है. उन्होंने बताया कि नाटो में कम खर्च करने वाले देशों पर हमले के लिए वह रूस को प्रोत्साहित करेंगे. NATO ने कहा है कि इससे सदस्यों को खतरा बढ़ गया है. 

Explained: रूस जो चाहे वो करे... ट्रंप को सुनकर क्यों घबराए NATO देश, सारा खेल पैसे का है

America Russia NATO News: अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे हैं. अपने मिजाज के तहत उन्होंने एक विवाद पैदा कर दिया है. प्रचार में जुटे ट्रंप ने रूस को लेकर कुछ ऐसा कह दिया कि उनकी आलोचना होने लगी है. दरअसल, ट्रंप ने कहा है कि वह नाटो के उन सहयोगियों की रक्षा नहीं करेंगे जो डिफेंस पर पर्याप्त खर्चा नहीं करते हैं. यही नहीं, पूर्व राष्ट्रपति ने यहां तक कह दिया कि रूस उन देशों के साथ जो करना चाहे वो करे... वह उन पर हमले के लिए रूस को प्रोत्साहित ही करेंगे. ट्रंप को सुनकर नाटो के सदस्य देश टेंशन में आ गए हैं. नवंबर में होने वाले चुनाव में जो बाइडन के खिलाफ ट्रंप प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं. ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण है कि नाटो क्या है और उसकी फंडिंग कैसे होती है? 

क्या रूस को हमले के लिए ट्रंप ने उकसाया?

हां, उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (यानी NATO) के प्रमुख जेन्स स्टोल्टनबर्ग ने साफ कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टिप्पणी उनके देश के सैनिकों और सहयोगियों की सुरक्षा को खतरे में डाल रही है. नाटो चीफ ने कहा कि ऐसा कोई भी संकेत देना कि सहयोगी देश एक दूसरे की रक्षा नहीं करेंगे, अमेरिका समेत हमारी सुरक्षा को कमजोर करता है. इससे अमेरिकी और यूरोपीय सैनिकों के लिए खतरा बढ़ता है. 

एक रैली में ट्रंप ने बताया कि राष्ट्रपति रहते उन्होंने एक नाटो सदस्य से कहा था कि वह नाटो सहयोगियों के ‘कसूरवार’ होने पर रूस को उनके साथ मनमाफिक व्यवहार करने के लिए प्रेरित करेंगे. ट्रंप की टिप्पणी से पोलैंड, लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया जैसे नाटो के अग्रिम पंक्ति के देशों में चिंता पैदा हो गई है, जो शीत युद्ध के दौरान मॉस्को के नियंत्रण में थे या सोवियत संघ के नियंत्रण में थे. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को देखते हुए उनकी चिंता बढ़ गई है. 

नाटो क्या है? (What is NATO)

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन की स्थापना 1946 में शीत युद्ध के बढ़ते तनाव के बीच सोवियत संघ का मुकाबला करने के लिए की गई थी. यह यूरोपीय देशों और उत्तरी अमेरिका के राष्ट्रों का एक राजनीतिक और सैन्य गठबंधन है. इस ग्रुप में सामूहिक रक्षा का समझौता है यानी अगर किसी एक सदस्य पर हमला किया जाता है तो इसे पूरे समूह पर हमला माना जाएगा. नाटो के आर्टिकल 5 में यह बात दर्ज है. 

नाटो में सभी निर्णय देशों के आम सहमति पर पहुंचने के बाद लिए जाते हैं. राजनीतिक और सैन्य ताकत अमेरिका की ज्यादा है क्योंकि यह गठबंधन का सबसे शक्तिशाली देश है और इसके परमाणु हथियारों को अंतिम सुरक्षा गारंटी के रूप में माना जाता है. 

नाटो में कौन-कौन (NATO Members List)

इस समय नाटो के 31 सदस्य देश हैं. ज्यादातर यूरोप के हैं. अमेरिका और कनाडा भी नाटो में शामिल हैं. फिनलैंड नाटो का सबसे नया सदस्य है, जो रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद संगठन में शामिल हुआ. स्वीडन ने भी सदस्यता के लिए आवेदन दे रखा है. 

ट्रंप से जुड़ा मामला क्या है?

ट्रंप 2017-21 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे. वह अक्सर नाटो और जर्मनी जैसे सदस्यों पर बरसते रहे हैं. वह उन पर अपनी रक्षा के लिए पर्याप्त खर्चा नहीं करने और अमेरिका पर ज्यादा निर्भर रहने का आरोप लगाते रहे हैं. उन्होंने सामूहिक रक्षा सिद्धांत पर भी सवाल उठाए. बाद में अमेरिकी अधिकारियों की तरफ से यूरोप पर पर्याप्त खर्च नहीं करने के आरोप लगाए गए थे. 

अब दक्षिण कैरोलिना में एक रैली के दौरान ट्रंप ने बताया कि उन्होंने 'एक बड़े देश के राष्ट्रपति' के साथ क्या बातचीत की थी. उस नेता ने ट्रंप से कहा, 'अगर हम पे नहीं करते हैं और हम पर रूस हमला करता है तो क्या आप हमारी रक्षा करेंगे?' ट्रंप ने कहा था कि क्या आपने पैसे नहीं दिए, तो मान लीजिए कि मैं आपकी रक्षा नहीं करूंगा. मैं उन्हें (रूस को) प्रोत्साहित करूंगा कि वे जो चाहें वो करें. आप अपना समझिए. 

नाटो को फंड कैसे मिलता है?

नाटो गठबंधन वास्तव में एक क्लब की तरह है जिसका सदस्यता शुल्क है. हां, नाटो काम अलग तरह से करता है. संगठन के पास कुछ कॉमन फंड होता है जिसमें सभी सदस्य योगदान करते हैं. संगठन को सबसे बड़ी ताकत सदस्यों के राष्ट्रीय रक्षा खर्च से आती है. इस पैसे का इस्तेमाल फोर्स को बनाए रखने और हथियारों पर होता है जिसका उपयोग नाटो भी कर सकता है. नाटो के सदस्य देशों ने हर साल रक्षा क्षेत्र पर अपने जीडीपी का कम से कम 2 प्रतिशत खर्च करने की हामी भरी है. हालांकि ज्यादातर 2023 में भी लक्ष्य को हासिल करने में फेल रहे.

नाटो सहयोगियों ने 2014 में साल 2024 तक रक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का दो फीसदी खर्च करने का संकल्प लिया था. नाटो के आकलन के मुताबिक 2023 की शुरुआत तक उसके 30 में से 10 सदस्य दो फीसदी तक या उससे ज्यादा खर्च करने के करीब थे जबकि 13 देश 1.5 प्रतिशत या उससे कम खर्च कर रहे थे. यूरोप का संपन्न देश जर्मनी रक्षा पर 1.57 प्रतिशत ही खर्च कर रहा है. हालांकि उसके अधिकारी 2 प्रतिशत के टारगेट को हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं. रक्षा पर सबसे कम खर्च करने वाले देशों में स्पेन, बेल्जियम और लक्जमबर्ग हैं. 

ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में सामने आया है जब यूक्रेन संकट के कारण यूरोप पहले से टेंशन में है. यही वजह है कि नाटो चीफ ने कहा है कि इससे अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए खतरा बढ़ सकता है. रूस भी ट्रंप की बात का गंभीरता से विश्लेषण कर रहा होगा. यह नाटो में फूट की शुरुआत हो सकती है. 

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