Qala Review: उदासी है कला की इस दुनिया में, लेकिन तृप्ति डिमरी चमकती हैं अंधेरों में रोशनी जैसी
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Qala Review: उदासी है कला की इस दुनिया में, लेकिन तृप्ति डिमरी चमकती हैं अंधेरों में रोशनी जैसी

Weekend Film: यह अपने नाम के अनुरूप कलात्मक ढंग से बनाई गई फिल्म है. इरफान खान के बेटे बाबिल ने इससे सिनेमा की दुनिया में कदम रखा है. लेकिन कला पूरी तरह से तृप्ति डिमरी की फिल्म है. उनका अभिनय कहानी के उदास अंधेरों में रोशनी की किरण जैसे चमकता है.

 

Qala Review: उदासी है कला की इस दुनिया में, लेकिन तृप्ति डिमरी चमकती हैं अंधेरों में रोशनी जैसी

Irrfan Khan Son Babil Khan Debut Film: व्यक्ति या समाज के लिए कला की क्या उपयोगिता हैॽ यह बहस का पुराना विषय है. कला के तमाम सिद्धांतों में करीब 200 साल पुराना सिद्धांत एक यह है कि कला को कला के लिए होना चाहिए. उसे किसी नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक या धार्मिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए. लेखक-निर्देशक अन्विता दत्ता की फिल्म कला का संबंध भी इनमें से किसी बात से नहीं है. यह कला नाम की एक लड़की (तृप्ति डिमरी) की कहानी है. जो एक जुड़वां भाई के साथ पैदा हुई थी परंतु जुड़वां कमजोर था, अतः वह जीवित नहीं बचा. यह बात कला की मां उर्मिला (स्वास्तिका मुखर्जी) को इस तरह चुभी कि उसने कला को उसके हिस्से का प्यार और परवरिश नहीं दी. कला के लिए उसने कोई सपना नहीं देखा. उसे सिर्फ उस संगीत की तालीम दी, जो विरासत में मिला था. एक दिन एक बेहतर संगीत प्रतिभा वाला किशोर जगन (बाबिल खान) उर्मिला को मिला. तब उर्मिला ने उसे घर में रख लिया और कला से ज्यादा तवज्जो दी. उर्मिला ने संगीत की दुनिया में ऊंचाइयां छूने के अपने सपनों को जगन के माध्यम से पूरा करना चाहा. अब कला क्या करेगीॽ यही इस फिल्म की कहानी है.

सिर्फ कला, सिर्फ कहानी
अन्विता दत्ता की कहानी का पूरा तामझाम कलात्मक है और उसे देखने के लिए कला से प्यार के लिए जरूरी धीरज, समझ और ठहराव चाहिए. 1930-40 के दशक की यह कहानी उस समाज की भी खबर देती है, जब लड़कियों को उनके पति के घर भेजना ही मां-बाप का अंतिम लक्ष्य होता था. कला में यह बात खूब उभर कर आई है. वास्तव में कला का सारा द्वंद्व ही इस बात के इर्द-गिर्द घूमता है. कला लड़की है, इसलिए परिवार की विरासत को आगे नहीं ले जा सकतीॽ प्रतिभा संपन्न होना क्या उसकी गलती हैॽ उससे दुर्व्यवहार की सजा भी अंततः उसे ही क्यों मिलेॽ फिल्म में यह बातें तो उठती हैं परंतु लेखक-निर्देशक तटस्थ है. वह सिर्फ कहानी कहती हैं. कला पूरी कहानी में अकेली है और कला की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए शोषणा का शिकार भी वही है. कला के प्रति अन्विता दत्त की तटस्थता फिल्म को कमजोर बनाती हैं.

आत्महत्या के विरुद्ध शो-रील
कला एक उदास फिल्म है. शुरुआत से क्लाइमेक्स तक. कहानी खत्म होने के बाद अंत में जब आत्महत्या जैसी घटनाओं के विरुद्ध एक मैसेज पर्दे पर चमकता है तो कहानी के असर को पूरी तरह खत्म कर देता है क्योंकि तब लगता है कि कला की कहानी आत्महत्या के विरुद्ध एक शो-रील थी. कोई सच नहीं. अन्विता दत्त की कला असर इस विज्ञापित-संदेश के साथ खत्म हो जाता है. ऐसा लगता है कि वह कहानी नहीं कह रही थीं, बल्कि ज्ञान दे रही थीं. 1930-40 के दशक का विज्ञापन और 2022 में संदेश! वास्तव में इस उदास फिल्म में कुछ चमकता और आकर्षित करता है, तो तृप्ति डिमरी का अभिनय. उन्होंने पूरी फिल्म को अपने कंधों पर उठाया है. साल खत्म होने को है और बिना संकोच कहा जा सकता है कि यह इस साल के सबसे शानदार परफॉरमेंस में से एक है. कला के किरदार को तृप्ति ने बहुत खूबसूरती से निभाया है. वह कला को जीती नजर आती हैं. कहानी में समय के अंतरराल के साथ उनका बदला हुआ लुक, हाव-भाव कहानी को सरस बनाते हैं.

मधुर संगीत और सुंदर आर्ट वर्क
फिल्म की बड़ी खूबी इसका संगीत है. अमित त्रिवेदी ने गानों को सुंदर संगीत में पिरोया है. फिल्म के लगभग सभी गाने कर्णप्रिय हैं. फेरो ना नजरिया, घोड़े पे सवार और उड़ जाएगा हंस अकेला बार-बार सुनने योग्य हैं. स्वास्तिका मुखर्जी कला की मां की भूमिका में अच्छी लगी हैं, लेकिन इक्का-दुक्का मौकों पर ही उनका किरदार निखर कर आता है. अमित सियाल छोटे-से रोल में जमे हैं. कला का इसलिए भी इंतजार था कि इसमें दिग्गज अभिनेता इरफान के बेटे बाबिल खान का सिनेमा में डेब्यू हुआ है. फिल्म पूरी तरह से कला की कहानी है, इसलिए बाबिल की भूमिका सीमित है. उनके किरदार में विविधता नहीं थी और वह छोटे ट्रेक की तरह था. फिलहाल इतना ही कहा जा सकता कि जितना काम बाबिल के हिस्से में आया, उन्होंने उसे अच्छे से किया है. यह फिल्म कला की दुनिया की बात करते हुए मां-बेटी के रिश्तों पर फोकस करती है. कला की दुनिया पर नहीं. फिल्म का आर्ट वर्क सुंदर है और इसे आकर्षक ढंग से शूट किया गया है. कला नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है. अगर आपके पास इसका सब्सक्रिप्शन है और कला की दुनिया से रू-ब-रू होते हुए आप थोड़ी उदासी सह लेते हैं, तो यह फिल्म देख सकते हैं.

निर्देशकः अन्विता दत्त
सितारेः तृप्ति डिमरी, स्वास्तिका मुखर्जी, बाबिल खान, अमित सयाल, स्वानंद किरकिरे
रेटिंग **1/2

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