Mini Movie Festival Review: जैसे पांचों अंगुलियां नहीं होती बराबर, वैसे ही ये कहानियां भी हैं अलग-अलग
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Mini Movie Festival Review: जैसे पांचों अंगुलियां नहीं होती बराबर, वैसे ही ये कहानियां भी हैं अलग-अलग

Short Movies On OTT: शॉर्ट फिल्में अपनी जगह बना चुकी हैं और कई बार वे काफी रोचक होती हैं. इन पांच शॉर्ट फिल्मों में विविधता है, लेकिन सवाल कंटेंट का भी है. मजे की बात यह है कि नए नाम अच्छा काम करते नजर आते हैं, जबकि कुछ जमे हुए लोग ऊंची दुकान फीकी पकवान साबित होते हैं.

 

Mini Movie Festival Review: जैसे पांचों अंगुलियां नहीं होती बराबर, वैसे ही ये कहानियां भी हैं अलग-अलग

Five Short Films: बदलते समय के साथ कहानियां बदल ही रही हैं, तो उनकी पैकेजिंग का अंदाज भी बदल रहा है. मोबाइल पर मिलने वाला अमेजन मिनी टीवी समय-समय पर अपने प्लेटफॉर्म पर शॉर्ट फिल्में रिलीज करता रहा है, लेकिन इस बार उसने पांच शॉर्ट फिल्मों को एक साथ मिनी मूवी फेस्टिवल टाइटल के साथ एक पैकेजिंग में रिलीज किया है. परंतु इसका यह मतलब नहीं है कि सारी फिल्में एक थीम पर हैं और सभी देखने लायक हैं. ऐसी पैकेजिंग में अक्सर अच्छे के बीच कामचलाऊ भी चला दिया जाता है. इस मिनी फेस्टिवल में यह दिखता है. शॉर्ट फिल्मों की एक समस्या है कि कभी-कभी उन्हें आधी-अधूरी तैयारी के साथ बना दिया जाता है या फिर किसी बड़े नाम को ले लेना ही काफी समझ लिया जाता है. यहां भी ऐसा दिखता है.

पांच में से तीन
मुद्दे की बात यह कि इस मिनी फेस्टिवल की पांच फिल्मों से तीन देखने लायक हैं और दो को आप छोड़ सकते हैं. जरूर देखने लायक फिल्में हैं, कंडीशंस अप्लाई और द लिस्ट. जबकि पर्दे में रहने दो कुछ ऐसी बात कहती है, जिसे सुना जाना चाहिए. ये तीनों फिल्में या तो आज की बात करती हैं या फिर भविष्य में स्त्री-पुरुष संबंधों की ओर संकेत देती हैं. जबकि वकील साहब (निर्देशकः सुमित पुरोहित) राइटिंग और नरेशन दोनों स्तर पर कमजोर है. गुड मॉर्निंग (निर्देशकः ज्योति कपूर दास) किसी फिल्म के एक पांच मिनट के सीन से ज्यादा नहीं है. फिल्म की न तो कहानी स्पष्ट है और मैसेज.

अलग सब्जेक्ट, अलग लेंथ
निर्देशक पूजा बनर्जी की कंडीशंस अप्लाई ऐसी युवती की कहानी है, जो अपने अतीत के रिश्ते से छुटकारा पाना चाहती है मगर यह इतना आसान नहीं हैॽ भागदौड़ भरी जिंदगी का सबसे बुरा असर रिश्तों पर पड़ रहा है. यह जानने-समझने के बावजूद इसी मुश्किल को सुलाझाने की सबसे कम कोशिश हो रही है. श्रेया चौधरी और मृणाल दत्त ने अच्छा परफॉर्म किया है. कहानी में अच्छे ट्विस्ट हैं. निर्देशक गौरव दवे की द लिस्ट व्यंग्य के साथ चलती है और उस भविष्य की तरफ संकेत देती है, जब इंसान और रोबोट में ज्यादा फर्क नहीं रह जाएगा. हर चीज टाइम टेबल से चलेगी. रिश्तों और भावनाओं का भी कैलेंडर होगा. फिल्म में अंगद बेदी और कीर्ति कुल्हारी हैं. फिल्म का निर्देशन और संपादन कसा है. गिनती के संवाद हैं. पर्दे में रहने दो (निर्देशकः हीना डिसूजा) हमारे समय की कहानी है, जिसे मलिश्का मेंडोंसा के परफॉरमेंस के लिए देखा जाना चाहिए. इस कहानी में और बेहतरी की गुंजाइश थी, लेकिन जल्दबाजी में समेटी गई लगती है. इन सभी कहानियों की लेंथ अलग-अलग है. 18 मिनट से आधे घंटे तक. सिंगल बैठक में नहीं तो छोटे-छोटे ब्रेक में तीन कहानियां देखी जा सकती हैं. दो को छोड़ा जा सकता है.

निर्देशकः पूजा बनर्जी, सुमित पुरोहित, हीना डिसूजा, ज्योति कपूर दास, गौरव दवे
सितारेः नेहा धूपिया, अंगद बेदी, कीर्ति कुल्हारी, अभिषेक बनर्जी, मलिष्का मेंडोंसा
रेटिंग **1/2

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