Khuda Hafiz Chapter 2 Agnipariksha Review: अपहरण, रेप और बदले की कहानी में विद्युत जामवाल ने जमाया रंग, फैंस को आएगा मजा
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Khuda Hafiz Chapter 2 Agnipariksha Review: अपहरण, रेप और बदले की कहानी में विद्युत जामवाल ने जमाया रंग, फैंस को आएगा मजा

Vidyut Jammwal Film 2022:  विद्युत जमावाल ने बॉलीवुड में बारह साल में ग्यारह फिल्में की हैं. लेकिन वह अपने मार्शल आर्ट्स वाले एक्शन अंदाज से बाहर नहीं निकले. खुदा हाफिज चेप्टर 2 की इस अग्निपरीक्षा में भी वह अपने इन्हीं दृश्यों से सफल होते हैं.

 

Khuda Hafiz Chapter 2 Agnipariksha Review: अपहरण, रेप और बदले की कहानी में विद्युत जामवाल ने जमाया रंग, फैंस को आएगा मजा

Bollywood film 2022: बॉलीवुड की फिल्में देखते हुए अक्सर महसूस होता है कि आपके पास एक्टर तो अच्छे हैं लेकिन अच्छी कहानियों और निर्देशकों की कमी है. इसमें संदेह नहीं कि आज की पीढ़ी में विद्युत जामवाल सबसे बेहतर एक्शन हीरो हैं मगर उनके लिए अच्छी कहानियां सोचने वाले लेखक और निर्देशक नहीं हैं. जो उनकी क्षमताओं के हिसाब से फिल्म बना सकें. नतीजा यह कि विद्युत की फिल्मों में दोहराव के अलावा कुछ देखने को नहीं मिलता है. दो साल पहले आई फिल्म खुदा हाफिज के सीक्वल के रूप में उनकी नई फिल्म आई है, खुदा हाफिज चेप्टर 2 अग्निपरीक्षा. दोनों फिल्मों की कहानी का मूल तत्व एक ही है. अपहरण, रेप और बदला.
हीरो की होती है अग्निपरीक्षा
यहां अग्निपरीक्षा एक बार फिर हीरो की है. पिछली फिल्म में समीर (विद्युत जामवाल) और नर्गिस (शिवालिका ओबेराय) की नई-नई शादी होती है और नौकरी के लिए मिडिल ईस्ट में गई नर्गिस का अपहरण हो जाता है. पीछे-पीछे समीर जाता है और पता चलता है कि नर्गिस को अपहरणकर्ताओं ने जिस्म फरोशी के धंधे में डाल दिया है. उसके साथ गैंगरेप भी हुआ है. समीर जान पर खेल कर दुश्मनों को ठिकाने लगाता है और नर्गिस को बचा कर लखनऊ लौटा है. सीक्वल में आप देखते हैं कि नर्गिस हादसे से उबर नहीं सकी है. वह दवाओं पर है. समीर इस बार एक बच्ची को गोद लेता है, नंदिनी (रिद्धि शर्मा). यहां घटनाएं खुद को दोहराती हैं. स्कूल में पढ़ने वाली नंदिनी का अपहरण और फिर रेप होता है. वह अपनी जान गंवा देती है. इस हादसे को अंजाम देने वाले राजनीतिक रसूख रखने वाले बिगड़ैल अमीरजादे हैं. पुलिस भी उनकी ही सुनती है और समीर को समझाती है कि मुआवजे के रूप में मिल रहे पैसे लेकर चुप बैठ जाए क्योंकि बच्ची तो उसकी अपनी नहीं थी. इसके बाद क्या-क्या हो सकता है, हिंदी सिनेमा के दर्शक समझ सकते हैं. 

पहले इमोशन, फिर एक्शन
कहानी में नएपन का अभाव खलता है. निर्देशक फारुख कबीर का काम ठीक है. उन्होंने फिल्म को दो हिस्सों में बांट दिया है. पहला हिस्सा भावनाओं के लिए रखा है. जिसमें समीर, नर्गिस और नंदिनी अपने-अपने दुखों से उबर कर खुशियों की डोर से बंधते हैं, लेकिन हादसा फिर उन्हें तोड़ देता है. जबकि दूसरे हिस्से में बदले की कहानी है, ऐक्शन से भरपूर. अपराधी मिस्र में जा छुपा है और इस बार समीर का एक्शन मिडिल ईस्ट के बजाय आपको उत्तरी अफ्रीका के रेगिस्तानी इलाके में देखने को मिलेगा. फिल्म को खूबसूरती से शूट किया गया है और विद्युत ने अपने अंदाज में बढ़िया काम किया है. लेकिन निर्देशक को यह ध्यान रखना चाहिए कि एक्शन और एक्टर अविश्वनीय न लगने लगें. जिस तरह से समीर देश-विदेश में हत्याएं करता है और अंत में न केवल सही सलामत लौटता बल्कि कानून भी उसका कुछ नहीं करता, वह पूरी तरह से काल्पनिक लगता है.
याद रह जाते हैं ये एक्टर
एक्टर इस कहानी में छाप छोड़ते हैं. जबकि संगीत ऐसा नहीं कर पाता. शिवालिका ओबेराय अपने रोल में ठीक लगी हैं लेकिन दूसरे हिस्से में निर्देशक का फोकस उन पर से पूरी तरह हट गया. अपने रेपिस्ट पोते को बचाने के लिए तमाम गलत को सही ठहराने की कोशिश करती शीला ठाकुर के दबंग रूप में शीबा चड्ढा बढ़िया लगी हैं, जबकि संवेदनशील पत्रकारिता करते हुए राजेश तैलंग प्रभाव छोड़ते हैं. असली बदमाश बच्चू (बोधिसत्व शर्मा) की तरफ भी आपका ध्यान जाता है, लेकिन उनके ट्रेक में थोड़ी विविधता रहती तो यह और निखर सकता था. दानिश हुसैन और दिव्येंदुश शर्मा अपनी छोटी भूमिकाओं में याद रहते हैं. आम दर्शक के सामने फिल्म में कुछ मुश्किलें आ सकती हैं. एक तो फिल्म देखते हुए आप आसानी से यह अनुमान लगा सकते हैं कि आगे क्या-क्या होगा. अंत में कहानी कहां जाकर ठहरेगी. लेकिन आप ऐक्शन फिल्मों के शौकीन और विद्युत जामवाल के फैन हैं तो ठीक है. आप फिल्म देख सकते है. उन कसौटियों पर यह फिल्म आपको एंटरटेन करेगी. आपको मजा आएगा.

निर्देशकः फारुख कबीर
सितारेः विद्युत जामवाल, शिवालिका ओबराय, शीबा चड्ढा, बोधिसत्व शर्मा, राजेश तैलंग, रिद्धि शर्मा
रेटिंग ***

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