अविनाश तिवारी, ज़िम्मी शेरगिल, तमन्ना भाटिया आदि की फिल्म ‘सिकंदर का मुकद्दर’नेटफ्लिक्स पर आ चुकी है. पढ़िए रिव्यू, कैसी है फिल्म.
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निर्देशक : नीरज पांडेय
स्टार कास्ट: अविनाश तिवारी, ज़िम्मी शेरगिल, तमन्ना भाटिया आदि
कहां देख सकते हैं : नेटफ़्लिक्स पर
स्टार रेटिंग : 3
असली सिकंदर यानी अलेक्ज़ेंडर दी ग्रेट भारत में व्यास नदी के तट पर आकर कंफ्यूज हो गया था और वापस लौट गया, उसी तरह इस फ़िल्म का मुख्य पात्र सिकंदर आगरा में यमुना नदी के तट पर जाकर फ़िल्म मो कंफ्यूज कर देता है, ए वेडनेसडे, स्पेशल 26 और बेबी जैसी फिल्में बनाने वाले नीरज पांडेय की फिल्मों को लेकर लोगों को इंतजार रहता आता आया है, उनकी फिल्मों में ऐसा हमेशा से ही रहा है कि आखिर तक वो दर्शकों के दिमाग से खेलते रहे हैं. इस मूवी में भी उन्होंने यही किया, लेकिन लगातार दर्शकों को फ्लैशबैक में ले जाते रहे और इसने थोड़ा ज्यादा कन्फ्यूजन कर दिया, शायद यही वजह है फिल्म जिस स्तर पर पहुंचनी चाहिए थी, वहां नहीं जा पाई. लेकिन चूंकि मूवी नैटफ्लिक्स पर है, सो जासूसी मूवी के शौकीनों के लिए अच्छा टाइमपास भी है.
'सिकंदर का मुकद्दर' की कहानी
कहानी शुरू होती है हीरों की प्रदर्शनी से, 50-60 करोड़ के हीरों की चोरी की, जब चारों चोर पुलिस की गोलियों से चोरी से पहले ही उसी बिल्डिंग में मारे जाते हैं. लगा कि अफरातफरी में मौके पर मौजूद किसी व्यक्ति ने ही मौके पर चौका मार दिया है. संदेह के घेरे में आते हैं, उसी ब्रांड के 32 साल पुराने कर्मचारी मंगेश देसाई, 3 महीने पहले ही दोबारा नौकरी पर लौटीं कामिनी (तमन्ना भाटिया) और कम्प्यूटर इंजीनियर या मैकेनिक सिकंदर शर्मा (अविनाश तिवारी), जो उस वक्त वहीं मौजूद थे.
ऐसे 100 प्रतिशत केसों को हल करने वाला स्पेशल पुलिस का दारोगा जसविंदर सिंह (जिम्मी शेरगिल) उन तीनों को गिरफ्तार कर लेता है और टॉर्चर करके उगलवाने की कोशिश करता है. लेकिन उनको जमानत मिल जाती है. कोई सुबूत या शक की वजह ना होने के बावजूद जसविंदर केवल अपनी मूलवृत्ति (इंस्टिक्ट) के आधार पर गिरफ्तार कर लेता है. वो बाद में बरी हो जाते हैं. लेकिन इस बीच सिकंदर और बच्ची के साथ पति से अलग रह रही कामिनी निकट आ जाते हैं, शादी करने के बाद मुंबई छोड़कर आगरा चले जाते हैं, वहां ग्लास फैक्ट्री में काम करके घर चलाता है.
इधर जसविंदर की शराब की लत उसकी नौकरी ले लेती है और पत्नी (दिव्या दत्ता) भी तलाक ले लेती है. तब वो सिकंदर को फोन करता है 15 साल बाद और माफी मांगता है. सिकंदर उसे जो अपनी गरीबी की कहानी बताता है, उसके लिए लगा कि इतना फिल्माने की जरूरत नहीं थी. लेकिन बाद में डायरेक्टर उन सभी सींस को जरूरी बताने का कोशिश भी करता दिखता है.
कहां लगती है कमी
आगरा में वही ताजगंज के किसी मकान की छत पर ताजमहल को निहारते डायलॉग्स, वही यमुना पर बना ब्रिज पर एक सीन, जैसे ‘बंटी बबली’ से लेकर ‘फिर आई हसीन दिलरूबा’ तक में इस ब्रिज पर फिल्माए गए थे, ये फिल्म को लम्बा करते हैं, वहां बीमारी, लूट, मंदिर में चोरी और बच्चों को घर से निकालने के सींस इमोशनल नहीं करते, लेकिन बाद में पता चलता है कि नीरज पांडेय ने वो सींस क्यों रचे थे. हालांकि एक जासूसी टाइप की मूवी में ये थोड़ा बोर करते हैं.
'सिकंदर का मुकद्दर' का क्लाइमैक्स
जब तक क्लाइमेक्स पर फिल्म नहीं पहुंचती, कई बातें गले नहीं उतरतीं, सब कुछ खुलेआम जिस हॉल में हो रहा था, उसके सीसीटीवी क्यों नहीं मिले? तमन्ना भाटिया की चार साल पहले वाली उसी कम्पनी में जॉब, आसानी से सिकंदर की गर्लफ्रेंड का छोड़ जाना, डायमंड कंपनी का अपने 32 साल पुराने कर्मचारी पर भरोसा ना करना, जिमी शेरगिल की केस में जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी, तबस्सुम का कहीं से भी बार गर्ल ना लगना, लेकिन डायरेक्टर आखिर में उनको सही साबित करने की कोशिश करता है, जो अगर आपके गले उतर जाए तो आपको मूवी में मजा आएगा, नहीं तो उलझी हुई लगेगी.
'सिकंदर का मुकद्दर' देखें या नहीं
हां, डायलॉगबाजी मूवी की अच्छी है, जिनको इतने ट्विस्ट और टर्न्स में मजा आता है, उनको मूवी काफी पंसद आएगी. जिमी शेरगिल और अविनाश तिवारी ने फिर से खुद को साबित किया है, तमन्ना भाटिया भी रोल में एकदम फिट लगी हैं.
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