Exclusive Interview: जनता समझ गई है कि फिल्म स्टार उसे कैसे उल्लू बना रहे हैं: प्रकाश झा
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Exclusive Interview: जनता समझ गई है कि फिल्म स्टार उसे कैसे उल्लू बना रहे हैं: प्रकाश झा

Prakash Jha Interview: हिंदी सिनेमा में प्रकाश झा का अलग मुकाम है. दामुल से लेकर मृत्युदंड, गंगाजल, अपहरण, आरक्षण और राजनीति. फिर ओटीटी पर आश्रम. अब वह ऐक्टर के रूप में भी छाप छोड़ रहे हैं. फिल्म है, मट्टो की साइकिल. लेकिन आज की फिल्मी दुनिया को वह कैसे देख रहे हैं, जानिए इस बातचीत में.

 

Exclusive Interview: जनता समझ गई है कि फिल्म स्टार उसे कैसे उल्लू बना रहे हैं: प्रकाश झा

Prakash Jha Film Matto ki Saikil: आज जब तमाम एक्टर कारपोरेट घरानों की गोद में बैठे हैं, आप अपना सिनेमा बनाते हुए इंडिपेंडेंट मेकर्स की फिल्मों में एक्टिंग भी कर रहे हैं. यह संतुलन कैसे बना पा रहे हैंॽ
-एक ही वजह है, आनंद. मैंने फिल्म ‘परीक्षा’ बनाई, आदिल हुसैन को लेकर. फिल्म बनाने में मजा आया. फिर मैंने मथुरा के रहने वाले नए डायरेक्टर मोहम्मद गनी की फिल्म ‘मट्टो की साइकिल’ में लीड रोल निभाया. यह अलग ही अनुभव था मेरे लिए. मैं अपने काम का पूरा आनंद उठा रहा हूं. लेकिन देख रहा हूं कि हमारी इंडस्ट्री में कितने खराब हालात हो गए हैं. पिछले सात-आठ साल में तो स्टूडियो, ओटीटी, म्यूजिक कंपनियां, सैटेलाइट सबने जगह घेर ली है. यहां कितनों को तो कंटेंट की अक्ल नहीं है. इनकी सिर्फ एक सोच है कि स्टार को खरीद लो. अब आप स्टार के घर सौ करोड़ रुपये पहुंचा देंगे, तो क्या करेगा वहॽ स्टार को बिजनेसमैन, प्रोजेक्टवाला बना दिया गया है. लोग साउथ में जाकर वहां की फिल्मों के राइट्स खरीद लाते हैं और उन्हें रीमेक करते हैं. सौभाग्य से कोविड के टाइम में जनता को तमाम ओरीजनल कंटेंट देखने मिल गया, तो उसे समझ आ गया कि ये स्टार्स उसे कैसे उल्लू बना रहे हैं. नतीजा यह कि फिल्में एक के बाद एक औंधे मुंह गिर रही हैं. कोई स्टार चल नहीं रहा.

-आपने मृत्युदंड, गंगाजल और अपहरण जैसी फिल्मों में पैरलल और कमर्शियल को मिक्स करके नया सिनेमा खड़ा किया था, वह कारपोट्स के आने से बिखर गया. इसे कैसे देखते हैंॽ
-इन लोगों ने देश में सिनेमा की पूरी संस्कृति खत्म कर दी है. लोग समझ नहीं पा रहे. लेखक लिख नहीं पा रहे हैं. ये कारपोरेट पता नहीं कौन से कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर में डाल कर बता देते हैं कि यह कहानी नहीं चलेगी. अरे, कोई ऐसे कहानियां लिखी जाती हैं.

-क्या आपको लगाता है कि यह स्थितियां बदल सकती हैॽ
-कैसे बदलेंगीॽ ओटीटी प्लेटफॉर्म किन लोगों के साथ प्रोग्राम बना रहे हैं! वही गिने-चुने लोग. जो पार्टियों में मस्ती करते हैं. इन्हें वहां सब चकाचक दिखता है. और ये लोग क्या बना कर देते हैंॽ इन प्लेटफॉर्मों के पास अलग-अलग लेवल के क्रिएटिव एक्जीक्यूटिव हैं, लेकिन कंटेंट क्या आता है.

-क्या आपकी कभी उनसे बात हुईॽ
-बिल्कुल, हमने उनसे पूछा कि कौन पढ़ेगा हमारी कहानी या स्क्रिप्टॽ एमएक्स प्लेयर की टीम मेरे पास जब ‘आश्रम’ की पचास-साठ पन्नों की कहानी लेकर आई और मैंने कहा कि इसमें बहुत गुंजाइश है, तो उन्होंने कहा कि आप जैसा चाहें वैसा करें. फिर भी मैंने कहा कि आपके साथ बात करके ही सारा काम करेंगे. आप भरोसा कर रहें तो मैं इस-इस तरह से बनाऊंगा. रिजल्ट सामने है. दुनिया की सबसे ज्यादा व्यूअरशिप आज ‘आश्रम’ के पास है.

-अजय देवगन ने आपके साथ लंबे समय तक काम किया. फिर अचानक क्या हुआ कि उन्हें लेकर आपने जो फिल्में अनाउंस कर रखी थीं, वो भी नहीं बनींॽ
-हमारी फिल्मों के बाद अजय देवगन की स्थितियां बदल गई. कारपोरेट जब उनके सामने आकर बड़े प्रोजेक्ट प्रेजेंट करेंगे, तो एक्टर क्या करेगा.

-हालात में बदलाव की कोई संभावना दिखती हैॽ
-देखिए हम तो काम कर रहे हैं. लिख रहे हैं. मेरी धर्मक्षेत्रे लिखी जा चुकी है. जनादेश लिख ली गई है. सौभाग्य यह है कि लोग हमें थोड़ा पसंद करते हैं तो हमारी करेंसी थोड़ी चलती जाती है. काम चलता रहता है.

-फिल्मों में आजकल जरूरत से ज्यादा धन लगता है. क्रेडिट्स के झगड़े हैं. कहानियां चोरी हो जाती हैं.
-ऐसे लोगों का क्या जीवन अनुभव है. इतने स्टूडियोज में क्यूबिकल बना कर राइटर बैठाए गए हैं. लेकिन वे क्या लिखते हैं. वे बार-बार एक-सी कहानियां दोहराते हैं. कितनी बार बनाएंगे पुरानी कहानियों कोॽ गांवों का जीवन क्या है, पंडित क्या सोचता है, मुल्ला क्या करता है, यह नहीं समझ पाते हैं. इसमें इनकी गलती नहीं है. इनके रडार में वो रेफरेंस ही नहीं है.

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