साइकिल का पंक्चर लगाने वाला बना IAS अफसर, किताबें उधार लेकर की थी UPSC की तैयारी
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साइकिल का पंक्चर लगाने वाला बना IAS अफसर, किताबें उधार लेकर की थी UPSC की तैयारी

IAS Varun Baranwal Success Story: आज हम आपको एक ऐसे यूपीएससी उम्मीदवार के बारे में बताएंगे, जिन्होंने अपने पिता के निधन के बाद साइकिल में पंक्चर लगाने के काम शुरू कर दिया, लेकिन जीवन में कुछ बड़ा करने की उनकी चाह ने उन्हें IAS ऑफिसर बना दिया.

साइकिल का पंक्चर लगाने वाला बना IAS अफसर, किताबें उधार लेकर की थी UPSC की तैयारी

IAS Varun Baranwal Success Story: यूपीएससी की परीक्षा देने वाले उम्मीदवार अमीर हों या गरीब, उन्हें परीक्षा पास करने के लिए दृण संकल्प के साथ कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. सालों की तैयारी के बाद, हर साल लाखों उम्मीदवार यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में बैठते हैं, लेकिन अंततः केवल कुछ चुनिंदा उम्मीदवार ही इस परीक्षा को पास कर पाते हैं. कई उम्मीदवार ऐसे भी हैं, जिनके पास परीक्षा की तैयारी के लिए जरूरी संसाधन भी नहीं होते, लेकिन वे बेहद गरीबी का सामना करने के बावजूद इस परीक्षा को पास कर आईएएस ऑफिसर बन जाते हैं. 

आज हम आपको एक ऐसे ही आईएएस ऑफिसर वरुण बरनवाल (IAS Officer Varun Baranwal) के बारे में बताएंगे, जिन्होंने बेहद कम उम्र में ही अपने पिता को खो दिया था, जिसके बाद उनका स्कूल छूट गया और उन्हें साइकिल का पंक्चर लगाकर अपना और अपने घर का गुजारा करना पड़ा. हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी साल 2016 की यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में ऑल इंडिया 32वीं रैंक हालिक कर आईएएस ऑफिसर बन गए.

कौन हैं आईएएस वरुण बरनवाल?
आईएएस अधिकारी वरुण बरनवाल महाराष्ट्र के पालघर जिले के छोटे से गांव बोइसर के रहने वाले हैं. वह हमेशा से एक डॉक्टर बनना चाहते थे. वरुण के पिता एक साइकिल मैकेनिक के रूप में काम करते थे और उनकी साइकिल ठीक करने की एक छोटी सी दुकान थी. उनके पिता चाहते थे कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले.

वरुण के परिवार की आय का एकमात्र स्रोत उनके पिता की दुकान थी. अपने पिता के निधन के बाद, वरुण ने दुकान चलाने और अपने परिवार की देखभाल करने का निर्णय लिया. इन सबके बावजूद वरुण बरनवाल ने 10वीं की परीक्षा में अकादमिक उत्कृष्टता हासिल की थी.

बाद में, वरुण की मां ने दुकान का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और उन्हें अपनी शिक्षा पूरी करने का निर्देश दिया. हालांकि, कक्षा 11वीं में दाखिला लेने के लिए उन्हें बड़ी रकम की जरूरत थी, जो उनके पास नहीं थी. लेकिन शुक्र है कि जिस डॉक्टर ने उनके पिता का इलाज किया था, उन्होंने वरुण की पढ़ाई का खर्च उठाने का फैसला किया और तुरंत 10,000 रुपये दे दिए.

वरुण ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अपनी रुचि को आगे बढ़ाने का फैसला किया, इसलिए उन्होंने मेडिकल स्कूल में दाखिला लेने की सोची. हालांकि, मेडिकल डिग्री के लिए उन्हें काफी बड़ी रकम चुकानी पड़ती, इसलिए उन्होंने इसके बजाय इंजीनियरिंग पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया. वरुण को एमआईटी कॉलेज पुणे में एडमिशन मिल गया. उन्होंने अपने इंजीनियरिंग करियर के शुरुआती कार्यकाल के दौरान स्कूल से स्कॉलरशिप हासिल करने के लिए बहुत प्रयास किए. वह स्कूल से मिलने वाली स्कॉलरशिप की सहायता से अपना इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम पूरा करने में भी सक्षम रहे.

इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने एक मल्टि नेशनल कंपनी में नौकरी हासिल की. वरुण के परिवार ने उन्हें एमएनसी की नौकरी में बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन उन्होंने सरकारी सेवा में अपना करियर बनाना पसंद किया. उन्हें गैर सरकारी संगठन (NGO) से समर्थन मिला, जिन्होंने उन्हें परीक्षा की तैयारी करने के लिए किताबें दी. सभी के सहयोग के कारण वह परीक्षा पास करने में सफल रहे और आईएएस अधिकारी नियुक्त किये गये.

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