Janmashtami, Bhagwat Gita Shloka: भगवद् गीता के वो 5 श्लोक, जो हमेशा के लिए बदल देंगे आपकी जिंदगी
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Janmashtami, Bhagwat Gita Shloka: भगवद् गीता के वो 5 श्लोक, जो हमेशा के लिए बदल देंगे आपकी जिंदगी

Janmashtami, Bhagwat Geeta Top 5 Shloka: भगवद गीता केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं है, जिसे केवल एक निश्चित धर्म के लोगों को ही पढ़ना चाहिए. यह सर्वश्रेष्ठ भगवान श्रीकृष्ण और एक भ्रमित योद्धा अर्जुन के बीच का संवाद है. वहीं, भगवद गीता हमें जीवन की पेचीदगियों और उनसे निपटने के तरीके भी सिखाती है.

Janmashtami, Bhagwat Gita Shloka: भगवद् गीता के वो 5 श्लोक, जो हमेशा के लिए बदल देंगे आपकी जिंदगी

Janmashtami, Bhagwat Geeta Top 5 Shloka: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर आज हम बात करेंगे भगवद गीता के उन 5 श्लोकों के बारे में, जिन्हें अगर आप अपने जीवन में अपना लें तो आपकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी. ये 5 श्लोक किसी के भी जीवन को बदलने वाले श्लोक हैं, जो छात्रों, उद्यमियों आदि सहित सभी के लिए आवश्यक हैं. आप इन्हें पढ़कर खुद महसूस करेंगे कि आपके जीवन में बदलाव आ रहे हैं.

भगवद गीता केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं है, जिसे केवल एक निश्चित धर्म के लोगों को ही पढ़ना चाहिए. यह सर्वश्रेष्ठ भगवान श्रीकृष्ण और एक भ्रमित योद्धा अर्जुन के बीच का संवाद है. वहीं, भगवद गीता हमें जीवन की पेचीदगियों और उनसे निपटने के तरीके भी सिखाती है. भगवद गीता सुख, शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन जीने के लिए एक मार्गदर्शक है. इसमें आपको सभी शंकाओं, आशंकाओं, दुविधाओं और समस्याओं आदि का समाधान मिलेगा. इस पढ़ने के बाद आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव का अनुभव जरूर करेंगे.

कभी-कभी लोगों को आश्चर्य होता है कि 5000 साल पुरानी एक किताब आज भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में प्रासंगिक है.

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यह शायद भगवद गीता के सबसे प्रसिद्ध श्लोकों में से एक है. हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि "कर्म करो, फल की चिंता मत करो". इसका सीधा सा मतलब है कि आप अपने काम पर ध्यान केंद्रित करें न कि भविष्य में आने वाले उसके परिणाम पर.

आप ही बताएं "कर्म और फल" में से क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है? जाहिर है, कर्म, क्योंकि अगर आप अच्छे परिणाम चाहते हैं, तो उसके लिए पहले आपको अपने कार्यों में सुधार करना होगा. इसलिए कहा जाता है कि निश्चित कार्यों पर ध्यान दें, अनिश्चित परिणामों पर नहीं. क्योंकि अगर परिणाम आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं हुए तो आपको अवश्य ही पीड़ा (Pain) होगी.

श्रीकृष्ण ने यह भी कहा है कि कभी भी अपने आप को आने वाले परिणामों का कारण न समझें, क्योंकि परिणाम केवल आपके प्रयासों पर निर्भर नहीं होते हैं. यह कई कारकों पर निर्भर करता है, उदाहरण के लिए, स्थिति, अन्य लोग जो उस कार्य में शामिल हैं आदि. इसी के साथ अपने आप को आलस (inaction) से ना जोड़ें क्योंकि कभी-कभी जब काम कठिन और बोझिल होता है, तो ऐसे में हम आलस का सहारा लेते हैं. इसलिए आप जो करते हैं उसमें रुचि कभी न खोएं.

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हमारे जीवन का सबसे बड़ा डर "मृत्यु का भय" है. हम सभी जानते हैं कि एक ना एक दिन हम सभी मरेंगे, लेकिन इससे हमें घबराना नहीं चाहिए. हमें निडर होना चाहिए. क्योंकि हमारी आत्मा गौरवशाली, निडर, वृद्धावस्था से मुक्त और अमर है. आत्मा न कभी पैदा होती है और न ही कभी मरती है. मृत्यु केवल हमारे शरीर का अंत है.   

मृत्यु इस संसार का एकमात्र सच है. यह हमेशा के लिए अस्तित्व में है और आगे भी रहेगा. इसलिए अपने मन से मृत्यु के भय को हटा दें क्योंकि यह जीवन में आप जो कुछ भी करना चाहते हैं उसमें बाधा उत्पन्न करता है.

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काम, लोभ और क्रोध नरक (आत्म-विनाश का प्रतीक) के द्वार हैं. ये मानव जीवन की लगभग हर एक समस्या का मूल कारण हैं. अगर कोई व्यक्ति कामी, लोभी और क्रोधित रहता है, तो यह चीजें उसे उसके विनाश की ओर ले जाती है.

यह सब वासना से शुरू होता है. वासना लालच की ओर ले जाती है क्योंकि आप एक समय पर किसी भी तरह से उसे अधिक से अधिक पाना चाहते हैं. अंत में, आपकी वासना क्रोध में बदल जाती है, जब आप उस चीज़ को पाने में सक्षम नहीं होते हैं. यह आपके मन की शांति को नष्ट कर देता है. काम, लोभ और क्रोध वास्तव में मन और आत्मा के संतुलन को बिगाड़ देते हैं. ये चीजें आध्यात्मिक मार्ग को अवरुद्ध करती हैं और इसलिए इन्हें नरक का द्वार कहा जाता है.

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यह भगवद गीता के श्लोकों में से एक है, जो आपको बताता है कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है. जिस प्रकार सर्दी और गर्मी अस्थायी हैं, उसी प्रकार दुख और सुख हैं. वे आएंगे और चले जाएंगे. इसी तहत कठिन समय भी आएगा और चला जाएगा. इसलिए आप उनसे प्रभावित हुए बिना उन्हें सहन करना सीखें. इस दुनिया में केवल एक चीज जो लगातार बदल रही है वह है समयानुसार होने वाला परिवर्तन, तो आप इसकी चिंता ना करें.

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यह भगवद गीता का वो श्लोक है, जो जीवन में स्थिरता के बारे में बताता है. जिस प्रकार नदियां निरंतर 24x7 समुद्र में विलीन होती रहती हैं, लेकिन नदियों से पानी के निरंतर प्रवाह से विचलित हुए बिना समुद्र स्थिर रहता है. उसी प्रकार हमें भी खुद को स्थिर रखना चाहिए.

नदियों के पानी की तरह आपके मन में अंतहीन विचार आएंगे और यह बिल्कुल सामान्य है, लेकिन इसी चिन्ता करना जरूरी नहीं है. वहीं, आपके मन में बुरे विचार भी दस्तक देते हैं, लेकिन आप अपने जीवन में शांति तभी प्राप्त कर पाएंगे, जब आप समुद्र की तरह स्थिर रहेंगे, चाहे आपके मन में कैसे भी बुरे विचार क्यों न आएं. आप उन विचारों को अस्वीकार करें, जो आपको अपने लक्ष्य से विचलित करते हैं. उन प्रलोभनों और इच्छाओं को त्यागें, जो आपको अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने से रोकते हैं. 

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