One Nation One Election: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई 18,626 पन्नों की रिपोर्ट, एक देश एक चुनाव पर बड़ा अपडेट
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One Nation One Election: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई 18,626 पन्नों की रिपोर्ट, एक देश एक चुनाव पर बड़ा अपडेट

Ram Nath Kovind Panel Report: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पेश होने के बाद एक देश एक चुनाव की तरफ सरकार कदम आगे बढ़ा सकती है. ऐसी उम्मीद जताई जा रही है.

One Nation One Election: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई 18,626 पन्नों की रिपोर्ट, एक देश एक चुनाव पर बड़ा अपडेट

One Nation One Election Report: लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) से पहले एक देश एक चुनाव को लेकर भी सुगबुगाहट तेज हो गई है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति इस पर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है. एक देश एक चुनाव को लेकर एक हाई लेवल कमेटी बनाई गई थी जिसने 18,626 पन्नों की रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सामने पेश की है. समिति ने संविधान के अंतिम 5 अनुच्छेदों में संशोधन की सिफारिश की है. जान लें कि रामनाथ कोविंद के पैनल ने 191 दिनों में ये रिपोर्ट तैयार की है. इस पैनल को 2 सितंबर 2023 को बनाया गया था.

एक देश एक चुनाव पर लगेगी मुहर?

बता दें कि पिछले सितंबर में बनी समिति को संवैधानिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराने की संभावनाओं को तलाशने का काम सौंपा गया था. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समिति के अध्यक्ष हैं. साथ ही इसमें गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन.के. सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप और सीनियर वकील हरीश साल्वे भी शामिल हैं. राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं.

जब अधीर रंजन चौधरी ने किया था किनारा?

जान लें कि लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी समिति का सदस्य बनाया गया था लेकिन उन्होंने समिति को पूरी तरह से छलावा करार देते हुए मना कर दिया था. सूत्रों के मुताबिक, एक देश एक चुनाव होता है तो केंद्र सरकार और राज्यों के चुनाव एक साथ होंगे. हालांकि, इसका पूरा खाका क्या होगा, ये अभी तक सामने नहीं आया है.

एक देश एक चुनाव के पीछे क्या है दलील?

एक देश एक चुनाव के पीछे दलील दी जाती है कि भारत में हर साल कहीं ना कहीं चुनाव होते हैं. इसमें लोकसभा से लेकर पंचायत सदस्य तक के चुनाव शामिल हैं. बार-बार आचार संहिता लागू होती है. सुरक्षा बलों, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों को बार-बार ड्यूटी पर लगाना पड़ता है. इसके अलावा विकास के काम भी रुकते हैं. सरकार को बार-बार खर्च करना पड़ता है. इन सभी अलग-अलग चुनावों की जगह एक बार में चुनाव हो, इसके पक्ष में केंद्र सरकार खड़ी दिखी है. हालांकि, आगे का रोड मैप क्या होगा, इस पर सरकार को फैसला लेना है.

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