Gaya Lok Sabha Election 2024: गया लोकसभा है 'मांझियों' का गढ़, चुनाव प्रचार में हुई दो पूर्व सांसदों की हत्या; कैसा होगा सियासी गणित
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Gaya Lok Sabha Election 2024: गया लोकसभा है 'मांझियों' का गढ़, चुनाव प्रचार में हुई दो पूर्व सांसदों की हत्या; कैसा होगा सियासी गणित

Gaya Lok Sabha Chunav 2024 News:फल्गु नदी के तट पर कई पहाड़ि‍यों से घिरी मोक्ष और ज्ञान की भूमि गया  बिहार के 40 लोकसभा क्षेत्रों में एक अहम सीट है. हिंदुओं के सबसे प्रसिद्ध तीर्थों मे एक गया में फल्गु नदी में तर्पण-अर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिलने की मान्यता है. महात्मा बुद्ध की ज्ञानभूमि बोधगया भी यहीं है.

 Gaya Lok Sabha Election 2024: गया लोकसभा है 'मांझियों' का गढ़, चुनाव प्रचार में हुई दो पूर्व सांसदों की हत्या; कैसा होगा सियासी गणित

Gaya Lok Sabha Election 2024: बिहार का गया लोकसभा क्षेत्र 1967 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है. लोकसभा चुनाव 2019 और 2014  में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के सुप्रीमो जीतनराम मांझी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. गया लोकसभा सीट से अभी जदयू के विजय कुमार मांझी सांसद हैं. मोक्ष और ज्ञान की भूमि कहे जाने वाले तीर्थ स्थान गया को लंबे समय से नक्सली दंश झेलना पड़ रहा है. कृषि प्रधान इलाके में बुनकरों और तिलकूट बनाने वाले के अलावा तीर्थयात्रियों और टूरिस्टों से भी कमाई करने वाले भी बड़ी संख्या में हैं.

25 साल से मांझी सांसद, सभी वर्ग के वोटरों को साधने की राजनीतिक कोशिश

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित गया लोकसभा सीट पर सभी पार्टियों के लिए जातिगत समीकरण सबसे ज्यादा मायने रखता है. पिछले 25 साल से गया लोकसभा क्षेत्र पर मांझी जाति के नेताओं का कब्जा है. गया लोकसभा क्षेत्र में मांझी जाति के लोग ढाई लाख से ज्यादा हैं. इसके अलावा पासवान, धोबी, पासी भी बड़ी संख्या में हैं. आंकड़ों के मुताबिक मुस्लिम दो लाख, भूमिहार और राजपूत ढाई लाख, यादव ढाई लाख और वैश्य वोटर दो लाख के करीब हैं. इसलिए गया में उम्मीदवार दलित और महादलित समाज से रहते हैं, लेकिन सियासी पार्टियों का फोकस पिछड़ा, अति पिछड़ा और सवर्ण वोटरों पर भी रहता है. 

लोकसभा चुनाव 2024 में सियासी समीकरण बदलने की अटकलों पर विराम

गया लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें शामिल हैं. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में इनमें से तीन सीटों पर राजद, दो पर भाजपा और एक पर हम के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी. चुनाव नतीजे में शेरघाटी, बोधगया और बेलागंज विधानसभा पर राजद, गया टाउन और वजीरगंज पर भाजपा और बाराचट्टी में हम ने कब्जा जमाया था. लोकसभा चुनाव 2024 में सियासी समीकरण बदलने की अटकलों पर नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी से फिलहाल विराम लग गया है. क्योंकि लंबे समय से गयी सीट एनडीए के खाते में रहा है. चर्चा है कि जीतनराम मांझी इस बार लोकसभा चुनाव में अपने बेटे संतोष कुमार सुमन को गया से मैदान में उतार सकते हैं. हालांकि, एनडीए या इंडी गठबंधन में से किसी ने भी उम्मीदवारों का एलान नहीं किया है. फिर भी इन्ही दोनों गठबंधन के बीच सीधी टक्कर होने की पूरी उम्मीद है. 

गया का धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक इतिहास

गया का जिक्र महाकाव्य रामायण में भी मिलता है. मौर्य काल में भी गया एक महत्वपूर्ण नगर था. मध्यकाल में गया शहर पर भी मुगल शासन था. ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से यह बिहार का सबसे महत्वपूर्ण शहर है.  यहां का विष्णुपद मंदिर श्रद्धालुओं के बीच काफी लोकप्रिय है. पितृपक्ष पर हजारों लोग फल्गु किनारे पिंडदान के लिए यहां पहुंचते हैं. वहीं, बोधगया में दुनिया भर के सैलानी जुटते हैं.

गया लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या 16,98,772 है. इनमें पुरुष मतदाता 87,93,08 और महिला मतदाता 81,94,05 है. इनमें थर्ड जेंडर के 49 वोटर हैं. लोकसभा चुनाव में गया में 1772 मतदान केंद्र बनाए गए थे. राजनीतिक इतिहास देखें तो 1952 से 2019 तक आम चुनाव में गया लोकसभा सीट से छह बार कांग्रेस, एक बार प्रजातांत्रिक सोशलिस्टट पार्टी, एक बार जनसंघ, एक बार जनता पार्टी, चार बार जनता दल, एक बार राजद, चार बार भाजपा और एक बार जदयू के सांसद रहे हैं.  

देश के अति पिछड़े जिलों में शामिल गया में नक्सलियों का भी असर

देश के अति पिछड़े जिलों में शामिल गया के लिए केंद्र ने कई विशेष योजनाएं भी दी हुई हैं. झारखंड की सीमा से सटे गया लोकसभा क्षेत्र में नक्सल प्रभावित इलाके भी हैं. 19 जनवरी 2018 को दलाईलामा के बोधगया प्रवास और बिहार के तत्कालीन राज्यपाल के बोधगया आगमन के दौरान आतंकियों ने बम धमाका किया गया था. इससे पहले 2013 में भी बोधगया में सीरियल बम ब्लास्ट को अंजाम दिया गया था. 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान नक्सीलियों ने बाराचट्टी में वेंकैया नायडू का हेलीकॉप्टर जला दिया था.

नक्सालियों पर नकेल कसने के लिए गया में सीआरपीएफ की स्थायी बटालियन भी तैनात है. इसके अलावा गया में सेना की ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है. इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकार नक्सली वारदातों पर लगाम को लेकर लगातार दावे करती रहती है.

गया में चुनाव प्रचार के दौरान हो चुकी है दो पूर्व सांसदों की हत्या

गया में चुनाव प्रचार अभियान के दौरान दो पूर्व सांसदों की हत्या की जा चुकी है. देश में जब 12 महीने वीपी सिंह और चार महीने चन्द्रशेखर सिंह की सरकार बनी थी. उसी दौरान 15 मई 1991 को चुनाव प्रचार के बीच गया में कोंच थाना के कराय मोड़ के पास सांसद ईश्वर चौधरी की हत्या कर दी गई थी. जनसंघ, जनता पार्टी और जनता दल की टिकट 1971,1977 और 1989 में  ईश्वर चौधरी गया से सांसद चुने गए थे. दूसरी वारदात 22 जनवरी 2005 को बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान डुमरिया के बिहुआ कला गांव में हुई. वहां, गया के पूर्व सांसद राजेश कुमार की हत्या कर दी गई. उस समय इस वारदात को नक्सली हमला बता कर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. 

गया लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसदों की सूची

1952: सत्येंद्र नारायण सिन्हा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (गया पूर्व)
1952: विजनेश्वर मिसिर, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
1957: ब्रजेश्वर प्रसाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1962: ब्रजेश्वर प्रसाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1967: राम धनी दास, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1971: ईश्वर चौधरी, जनसंघ
1977: ईश्वर चौधरी, जनता पार्टी
1980: राम स्वरूप राम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1984: राम स्वरूप राम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1989: ईश्वर चौधरी, जनता दल
1991: राजेश कुमार, जनता दल
1996: भगवती देवी, जनता दल
1998: कृष्ण कुमार चौधरी, भारतीय जनता पार्टी
1999: रामजी मांझी, भारतीय जनता पार्टी
2004: राजेश कुमार मांझी, राष्ट्रीय जनता दल
2009: हरि मांझी, भारतीय जनता पार्टी
2014: हरि मांझी, भारतीय जनता पार्टी
2019: विजय कुमार मांझी, जनता दल(यूनाइटेड)

 

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