IPS Success Story: कहानी उस आईपीएस अफसर की जिसे कम नंबर आने पर स्कूल से निकाल दिया, फिर किया ये काम
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IPS Success Story: कहानी उस आईपीएस अफसर की जिसे कम नंबर आने पर स्कूल से निकाल दिया, फिर किया ये काम

IPS officer Akash Kulhari: आकाश कुल्हारी की शुरुआती पढ़ाई बीकानेर के एक स्कूल में शुरू हुई. साल 1996 में उन्होंने 10वीं केवल 57 फीसदी नंबरों के साथ पास की थी.

IPS Success Story: कहानी उस आईपीएस अफसर की जिसे कम नंबर आने पर स्कूल से निकाल दिया, फिर किया ये काम

IPS officer Akash Kulhari Success Story: यूपीएससी पास करके आईएएस आईपीएस अफसर बनना को बच्चों का खेल नहीं है. इसके लिए दिन रात मेहनत करनी पड़ती है और मेहनत के बाद भी इसकी गारंटी नहीं होती कि आपको नौकरी मिल ही जाएगी. आज हम एक ऐसे ही आईपीएस अफसर की बात कर रहे हैं. आकाश कुल्हारी ने बताया कि वह बचपन में पढ़ाई में काफी कमजोर थे. ऐसे में कई बार उनके खराब प्रदर्शन की वजह से उनके माता-पिता को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, '10वीं का रिजल्ट आने के बाद मुझे स्कूल से निकाल दिया गया था, लेकिन मैंने हार नहीं मानी.'

आकाश कुल्हारी की शुरुआती पढ़ाई बीकानेर के एक स्कूल में शुरू हुई. साल 1996 में उन्होंने 10वीं केवल 57 फीसदी नंबरों के साथ पास की थी. जिसके बाद, उनके स्कूल ने उन्हें निकाल दिया और उनके कम स्कोर के कारण उन्हें अगली क्लास में एडमिशन नहीं दिया.

10वीं में कम नंबर आने पर आकाश कुल्हारी के पिता ने कड़ी मशक्कत के बाद उसका एडमिशन केंद्रीय विद्यालय बीकानेर में करा दिया. इसके बाद आकाश ने भी खूब मेहनत की और 12वीं में 85 फीसदी नंबर हासिल किए. इसके बाद उन्होंने 2001 में दुग्गल कॉलेज बीकानेर से बीकॉम और जेएनयू, दिल्ली से स्कूल ऑफ सोशल साइंस से एमकॉम किया.

जेएनयू में पढ़ाई के दौरान ही आकाश कुल्हारी ने यूपीएससी की तैयारी भी शुरू कर दी और 2006 में अपने पहले ही प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा पास की. इस दौरान 2005 में उन्होंने जेएनयू से एम फिल भी किया.

आकाश कुल्हारी ने इंटरव्यू में बताया था, "ग्रेजुएशन के बाद मेरे सामने करियर के दो ऑप्शन थे. पहला यह था कि मैं MBA करूं और कॉर्पोरेट फील्ड में नौकरी करूं और दूसरा ऑप्शन था सिविल सेवाओं की तैयारी करना. मेरी मां चाहती थी कि मेरे बच्चे अधिकारी बनकर देश की सेवा करें, इसलिए मां की इच्छा का सम्मान करते हुए मैंने सिविल सेवा परीक्षा देने का फैसला किया. पहले प्रयास में सफलता मिली तो छोटे भाई ने भी यही रास्ता चुना, वह भी आज अफसर हैं."

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