OPS: राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में पुरानी पेंशन योजना को बहाल कर दिया गया है. अलग-अलग राज्यों में पुरानी पेंशन को लेकर आई तेजी के बाद यह चर्चा होने लगी की केंद्र सरकार भी अपने कर्मचारियों के लिए OPS को बहाल कर सकती है.
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Old Pension Scheme Latest News: पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग को लेकर कर्नाटक और महाराष्ट्र के सरकारी कर्मचारियों ने हड़ताल पर जाने का ऐलान किया. इसके बाद दोनों राज्य सरकारों ने समिति का गठन करके रिपोर्ट देने के लिए कहा है. इससे पहले राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में पुरानी पेंशन योजना को बहाल कर दिया गया है. अलग-अलग राज्यों में पुरानी पेंशन को लेकर आई तेजी के बाद यह चर्चा होने लगी की केंद्र सरकार भी अपने कर्मचारियों के लिए OPS को बहाल कर सकती है.
राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में जवाब दिया
इस चर्चा पर वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में जवाब दिया. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार किसी भी तरह पुरानी पेंशन (Old Pension Scheme) को बहाल करने के प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही है. उन्होंने यह भी कहा कि जो राज्य सरकारें पुरानी पेंशन में वापसी की इच्छा रखती हैं, उन्हें एनपीएस (NPS) के तहत इकट्ठा हुए फंड की वापसी नहीं मिलेगी. इसको लेकर PFRDA अधिनियम में किसी तरह का प्रावधान नहीं है.
संचित फंड की वापसी की मांग की जा रही
केंद्र सरकार की तरफ से बताया गया कि पुरानी पेंशन योजना (OPS) को बहाल करने वाले गैर-बीजेपी शासित राज्यों द्वारा एनपीएस (NPS) में संचित फंड की वापसी की मांग की जा रही है. लेकिन इस फंड की वापसी के लिए PFRDA अधिनियम में किसी तरह का नियम नहीं है. राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और पंजाब सरकार की तरफ से ओपीएस (OPS) बहाली के फैसले पर केंद्र को सूचित किया गया है. साथ ही इन राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के तहत संचित कोष की वापसी का अनुरोध किया है.
कराड ने फिर से दोहराया कि पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 2013 के तहत कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत अभिदाताओं के संचित कोष को वापस किया जा सकता है. कराड ने बताया कि केंद्र सरकार 1 जनवरी, 2004 के बाद भर्ती हुए केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संबंध में OPS को बहाल करने के किसी भी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही है. 1 जनवरी, 2004 से सरकारी सेवा (सशस्त्र बलों को छोड़कर) में सभी नई भर्तियों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया गया था.
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