Pitra Dosh: पितृदोष पीढ़ियों पुराना है या फिर हाल का है मामला, निवारण के लिए पितृपक्ष में करें ये उपाय
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Pitra Dosh: पितृदोष पीढ़ियों पुराना है या फिर हाल का है मामला, निवारण के लिए पितृपक्ष में करें ये उपाय

Pitra Dosh Remedy: अगर किसी पर पितृ दोष है तो कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. पितृ दोष काफी पुराना भी हो सकता है और हाल के पीढ़ियों का भी.

 

पितृ दोष

Pitra Dosh Nivaran: भारतीय ज्योतिष के अनुसार, सूर्य को इस सौरमंडल का राजा माना जाता है. सूर्य से पिता की स्थिति का अवलोकन किया जाता है. शनि सूर्य के पुत्र हैं और सूर्य के सैद्धांतिक विरोधी भी हैं. ज्योतिष में राहु दादा का कारक है और केतु नाना का कारक होता है.

सूर्य और शनि का संबंध तो नाराजगी ज्यादा लंबी नहीं

कुंडली में जब सूर्य का संबंध शनि व राहु से हो जाए और इसके साथ ही कुंडली के नवें भाव का भी संबंध हो जाए तो पितृदोष उत्पन्न हो जाता है. सूर्य के साथ शनि यदि नवें भाव में है तो निस्संदेह यह पितृ दोष है. सूर्य और शनि का संबंध यह बता रहा है कि यह पितृ दोष हाल की ही पीढ़ियों का है. इसका अर्थ यह समझना है कि नाराजगी लंबी नहीं है, यदि प्रायश्चित किया जाए तो पितर अपना गुस्सा त्याग सकते हैं.

सूर्य और राहु का संबंध बताता है नाराजगी पीढ़ियों पुरानी

सूर्य यदि राहु के साथ हो तो मामला कई पीढ़ियों पीछे का है और पितर परिहार न होने के कारण अपना कोप बढ़ाते जा रहे हैं. जिनकी कुंडली में राहु और सूर्य एक साथ हैं, उनको बिना देर किए पितृदोष का उपाय करना प्रारंभ कर देना चाहिए. यदि सूर्य और शनि की युति यदि दूसरे भाव में हो रही है तो पितृ दोष का निर्माण होता है. सूर्य और राहु की युति दूसरे भाव में हो तो यह गंभीर दोष है. अगर यह तीनों ग्रहों की युति है तो समझना चाहिए कि यह क्रॉनिक पितृ दोष है. ऐसी स्थिति में परिवार के सभी कुंडली में यह योग पाया जाता है या इसके लक्षण दिखाई देते हैं. ऐसे परिवार पर सामूहिक भयंकर संकट आते हैं.

दामाद भी दूर कर सकते हैं ससुराली पितरों की रुष्टता 

यदि कुंडली में अष्टम भाव से संबंध हो रहा हो तो जीवन साथी के परिवार पर पितृ दोष है और पत्नी के कोई भाई नहीं है तो निश्चित रूप से अब पितरों की रुष्टता को दूर करने की जिम्मेदारी दामाद की होगी. यदि सूर्य और राहु की युति पांचवे भाव यानी संतान भाव पर है तो कुल वृद्धि में पितर ब्रेक लगा देते हैं. गर्भ धारण नहीं होने देते हैं. ऐसे परिवारों में मिसकैरेज बहुत अधिक होते हैं और यदि संतान हो भी जाए तो वह दिव्यांग या आजीवन लंबी बीमारी से ग्रसित रहती हैं.

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