Death Sentence for Blasphemy: पाकिस्तान की एक अदालत ने एक ईसाई दुकानदार को ’ईशनिंदा’ के आरोप में मौत की सजा सुनाई है, जिसके बाद दुनियाभर के मानवाधिकार के हिमायती लोगों ने इसपर चिंता प्रकट की है.
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लाहौरः पाकिस्तान में ईशनिंदा के लिए बहुत सख्त सजा का प्रावधान है. पाकिस्तान की एक अदालत ने एक ईसाई शख्स को ईशनिंदा का कसूरवार पाते हुए मौत की सजा सुनाई है. 2017 से लाहौर के एक जेल में बंद अशफाक मसीह पर कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है. उस पर एक मुस्लिम ग्राहक के साथ बहस में शामिल होने के बाद ईशनिंदा करने का इल्जाम लगाया गया था. ग्राहक मसीह की दुकान पर अपनी साइकिल ठीक की मरम्मत कराने गया था.
40 रुपये के लिए ग्राहक से हुआ था झगड़ा
पुलिस के मुताबिक, ग्राहक ने जब अपनी साइकिल ठीक करवाने के बाद उसकी मजदूरी के 40 रुपये देने से इनकार कर दिया तो दुकानदार मसीह के साथ उसकी बहस हो गई. मुस्लिम ग्राहक ने मसीह से कुछ पैसे कम करने के लिए कहा था, क्योंकि वह पैगंबर मुहम्मद का भक्त था. मसीह ने कथित तौर पर किसी भी छूट की पेशकश करने से इनकार करते हुए कहा कि वह एक ईसाई है और यह मानता है कि यीशु मसीह ही आखिरी पैगंबर थे. इससे मुस्लिम ग्राहक भड़क गया, जिसने बाद में मसीह को ईशनिंदा के इल्जाम में उसे गिरफ्तार करवा दिया.
जून 2017 में आरोपी को किया गया था गिरफ्तार
मसीह को जून 2017 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में है. उसके मामले को पाकिस्तानी अदालतों में बार-बार टाला जा रहा था. हालांकि, पांच साल के लंबे अरसे के बाद, लाहौर की एक अदालत ने मसीह को ईशनिंदा के इल्जाम में कसूरवार ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई है. मसीह की एक पत्नी और एक बेटी है, जो मसीह की माफी की गुहार लगा रही है. मसीह की मां की 2019 में मौत हो गई जब वह सलाखों के पीछे था. मसीह को उसकी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल पर रिहा किया गया था.
नागरिक समाज समूहों ने जताई चिंता
मसीह की सजा ने नागरिक समाज समूहों और मानवाधिकारों की आवाजों को बुलंद करने वाले लोगों के बीच चिंता पैदा कर दी है. हिंदुओं, ईसाइयों और अन्य लोगों सहित गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को लगातार निशाना बनाने पर गहरी चिंता व्यक्त की जा रही है, जिन पर कभी-कभी ईशनिंदा का झूठा इल्जाम लगाया जाता है. मुद्दा यह है कि ईशनिंदा पाकिस्तान में एक संवेदनशील मामला है जिसका इस्तेमाल अक्सर व्यक्तिगत रंजिश के लिए भी कर दिया जाता है.
पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
मसीह का मामला पहला नहीं है जब अदालत ने अल्पसंख्यक समुदाय के किसी शख्स को मौत की सजा सुनाई है. अतीत में, ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां लोगों पर ईशनिंदा का इल्जाम लगाया गया है और उन्हें मौत की सजा दी गई है. लाहौर की एक अदालत ने पैम्फलेट में इस्लाम के पैगंबर होने का दावा करने, पैगंबर मुहम्मद को आखिरी पैगंबर होने से नकारने के लिए ईशनिंदा करने के लिए दोषी ठहराते हुए एक स्कूल के प्रिंसिपल को मौत की सजा सुनाई थी.
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