HC order releasing convict on emergent parole for procreation rejected by Supreme court: राजस्थान हाई कोर्ट ने कैदी की इस मांग पर उसे पेरोल दे दिया था, जिसके खिलाफ राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है.
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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की का अगवा कर उसके साथ रेप करने के मामले में 20 साल की सजा काट रहे एक कैदी को बच्चे पैदा करने के लिए 15 दिनों के आकस्मिक पैरोल पर रिहा करने के राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश पर शुक्रवार को रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी के माध्यम से दोषी द्वारा दायर उस याचिका पर 14 अक्टूबर को आदेश पास किया था, जिसमें बच्चे पैदा करने के लिए आकस्मिक पैरोल की मांग की गई थी.
इस मामले में हाई कोर्ट के दर्ज याचिका में राजस्थान जेल (पैरोल पर रिहाई) नियम, 2021 के नियम 11 के तहत संतान की इच्छा के आधार पर आकस्मिक पैरोल की मांग की गई थी, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत की सुरक्षा) का हवाला दिया गया था.
गांव की नाबालिग लड़की का अपहरण कर किया था रेप
यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) की स्पेशल अदालत ने मुजरिम को 15-वर्षीया लड़की के अपहरण और बलात्कार के जुर्म के लिए 20 साल की सजा सुनाई थी, जिसमें से दो की सजा उसने अब तक पूरी कर ली है. हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ के सामने सुनवाई के लिए आई थी, जिसने इस पर रोक लगा दी है. शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ राजस्थान सरकार और अन्य द्वारा दायर याचिका पर दोषी से जवाब तलब भी किया है. राजस्थान सरकार की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष सिंघवी पेश हुए थे.
सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सरकार का पक्ष
सुप्रीम कोर्ट के सामने राज्य और अन्य लोगों द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट अलवर के पुलिस अधीक्षक की रिपोर्ट की सराहना करने में नाकाम रहा, जिसमें कहा गया था कि व्यक्ति ने नाबालिग के अपहरण और बलात्कार के गंभीर अपराध किए थे, और वह और पीड़ित एक ही गांव के निवासी थे. इसमें कहा गया है कि अगर राजस्थान कारागार (पैरोल पर रिहाई) नियम, 2021, किसी को बच्चे पैदा करने के लिए रिहा करने की अनुमति नहीं देता है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के रूप में अनुमति नहीं दी जा सकती है. कोर्ट ने कहा, “बेशक, प्रतिवादी (पुरुष) ने 20 साल के कारावास की सजा में से सिर्फ दो साल की सजा काट ली है, जो कि आधे से भी कम है. साथ ही, नियम 16 (2) (ए) विशेष रूप से उल्लेख करता है कि पोक्सो कानून के तहत दोषी कैदी इसके लिए पात्र नहीं होंगे. यह अपने आप में प्रतिवादी को पैरोल के लिए अयोग्य बनाता है.
याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट का आदेश पूरी तरह से “धार्मिक दर्शन, सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय और मानवीय पहलुओं के बाहरी कारकों और कानून के पूर्ण उल्लंघन“ पर आधारित है.
“यह उल्लेख करना उचित है कि कुछ मानवीय और पारिवारिक विचारों को ध्यान में रखते हुए, पैरोल नियमों के नियम 11 आकस्मिक पैरोल के लिए विशिष्ट आधार निर्धारित हैं; जैसे- परिवार के किसी सदस्य की गंभीर स्वास्थ्य स्थिति, किसी रिश्तेदार की मृत्यु, जीवन या संपत्ति को नुकसान एक प्राकृतिक आपदा, एक कैदी या उसके परिवार के सदस्यों की शादी और कैदी की पत्नी की डिलीवरी आदि. इसमें कहा गया कि हाई कोर्ट ने फैसले के प्रभाव पर विचार नहीं किया, जिससे इस आधार पर पैरोल पर रिहाई के लिए आवेदनों की बाढ़ आ सकती है. इसके साथ ही इस मामले में पेरोल के नियमों का कोई आधार भी नहीं बनता है.
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