Parliament Mansoon Session: सरकार को नहीं है मालूम, पिछले दस सालों में देश की गरीबी का हाल
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Parliament Mansoon Session: सरकार को नहीं है मालूम, पिछले दस सालों में देश की गरीबी का हाल

Parliament Mansoon Session: सोमवार को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि गरीबी को लेकर पिछले करीब एक दशक में कोई आकलन जारी नहीं किया गया है. 

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः ऐसा माना जाता है कि कोविड के बाद देश में बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां चली जाने और कारोबार ठप होने से देश में गरीबी में भारी इजाफा हुआ है. ऐसे कई निजी संगठनों और संस्थानों की रिपोर्ट में सामने आया है. लेकिन सरकार के पास ऐसी कोई जानकारी या आंकड़ा नहीं है. सरकार ने गरीबी को लेकर पिछले करीब एक दशक से कोई आकलन जारी नहीं किया है.

साल 2011-12 में देश में थी 27 करोड़ गरीबी में जीने वाली आबादी 
सरकार ने सोमवार को बताया कि पिछला आकलन साल 2011-12 में जारी किया गया था. इसमें भारत में गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजारने वाले देश के नागरिकों की तादाद 27 करोड़ आंकी गई थी. सोमवार को लोकसभा में कल्याण बनर्जी के सवाल पर वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने ये जानकारी दी है. कल्याण बनर्जी ने पूछा था कि क्या अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 23 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से नीचे चले गए है? उन्होंने यह भी पूछा था कि सरकार ने आम नागरिकों के गंभीर आर्थिक संकट को कम करने के लिए क्या कदम उठाए हैं. चौधरी ने कहा कि भारत में गरीबी का आकलन करने के लिए विभिन्न रिसर्च एजेंसी/संगठन वैकल्पिक तरीकों का पालन करते हैं. 

सरकार ने कहा लोगों की बढ़ रही निजी संपत्ति 
वित्त राज्य मंत्री ने कहा कि 22 जुलाई 2013 को जारी गरीबी आकलन 2011-12 पर जारी प्रेस नोट के मुताबिक, साल 2011-12 में भारत में गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी बसर करने वाली आबादी  27 करोड़ आंकी गई थी. इसके बाद सरकार द्वारा गरीबी का कोई आकलन जारी नहीं किया गया. चौधरी ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जमा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, परिवारों की शुद्ध वित्तीय सम्पत्ति साल 2018-19 में सकल घरेलू उत्पाद के 7.9 फीसदी से बढ़कर साल 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद का 11.6 फीसदी हो गई. साल  2021-22 की पहली तिमाही में यह जीडीपी का 14.8 फीसदी और 2021-22 की दूसरी तिमाही में जीडीपी का 6.9 फीसदी रही. 

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