Natiq Lakhnavi Poetry: नातिक लखनवी उर्दू के अच्छे शायर हैं. उन्होंने उर्दू की आसान जबान में शेर व शायरी लिखी है. यहां पेश हैं नातिक लखनवी के कुछ मशहूर शेर.
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Natiq Lakhnavi Poetry: नातिक लखनवी उर्दू के बेहतरीन शायर हैं. उनका असली नाम सैयद अबुल अली सईद अहमद है. वह अपना तखल्लुस 'नातिक' लिखते हैं. उनकी पैदाइश उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई. उनकी गजल 'दराज इतना मेरी कैद का जमाना था', 'जिसे ढूंढा उसे पाया उसे तदबीर कहते हैं' उनकी मशहूर गजलें हैं. उनकी मशहूर किताबों में 'नज्म-ए-उर्दू' और 'मुसाफिर दमिश्की' शामिल हैं.
मर मर के अगर शाम तो रो रो के सहर की
यूँ ज़िंदगी हम ने तिरी दूरी में बसर की
उन के लब पर ज़िक्र आया बे-हिजाबाना मेरा
मंज़िल-ए-तकमील तक पहुँचा अब अफ़्साना मेरा
मिरी जानिब से उन के दिल में किस शिकवे पे कीना है
वो शिकवा जो ज़बाँ पर क्या अभी दिल में नहीं आया
ऐ शम्अ' तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह
मैं ने तमाम उम्र गुज़ारी है इस तरह
इब्तिदा से आज तक 'नातिक़' की ये है सरगुज़िश्त
पहले चुप था फिर हुआ दीवाना अब बेहोश है
दिल है किस का जिस में अरमाँ आप का रहता नहीं
फ़र्क़ इतना है कि सब कहते हैं मैं कहता नहीं
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आज़ादियों का हक़ न अदा हम से हो सका
अंजाम ये हुआ कि गिरफ़्तार हो गए
दिल रहे या न रहे ज़ख़्म भरे या न भरे
चारासाज़ों की ख़ुशामद मुझे मंज़ूर नहीं
मय-कशो मय की कमी बेशी पे नाहक़ जोश है
ये तो साक़ी जानता है किस को कितना होश है
इक दाग़-ए-दिल ने मुझ को दिए बे-शुमार दाग़
पैदा हुए हज़ार चराग़ इस चराग़ से
दो आलम से गुज़र के भी दिल-ए-आशिक़ है आवारा
अभी तक ये मुसाफ़िर अपनी मंज़िल पर नहीं आया
कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
जिस का जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो ख़ामोश है
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