Agha Hashr Shayari: 'उठते नहीं हैं हाथ मिरे इस दुआ के बाद', आगा हश्र के शेर
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Agha Hashr Shayari: 'उठते नहीं हैं हाथ मिरे इस दुआ के बाद', आगा हश्र के शेर

Agha Hashr Shayari: आगा हश्र बनारस में पले बढ़े. उनके वालिद कश्मीर से आकर उत्तर प्रदेश के बनारस में बसे थे. आगा ने 17 साल की उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था. उन्होंने कई ड्रामे लिखे. पेश हैं उनके कुछ शेर.

 

Agha Hashr Shayari: 'उठते नहीं हैं हाथ मिरे इस दुआ के बाद', आगा हश्र के शेर

Agha Hashr Shayari: आगा हश्र उर्दू के मशहूर शायर हैं. उनका असल नाम आग़ा मुहम्मद शाह था. आगा हश्र बनारस में 1 अप्रैल 1879 को पैदा हुए. आग़ा ने अरबी और फ़ारसी की तालीम हासिल की. आगा को बचपन से ही ड्रामा और शायरी से दिलचस्पी थी. उन्होंने 17 साल की उम्र में शायरी शुरू की. उन्होंने सबसे पहला ड्रामा ‘आफ़ताब-ए-मुहब्बत’ लिखा. आग़ा हश्र ने शेक्सपियर के कई नाटकों को उर्दू में ट्रांसलेट किया है.

गोया तुम्हारी याद ही मेरा इलाज है 
होता है पहरों ज़िक्र तुम्हारा तबीब से 

ऐ 'हश्र' देखना तो ये है चौदहवीं का चाँद 
या आसमाँ के हाथ में तस्वीर यार की 

हश्र में इंसाफ़ होगा बस यही सुनते रहो 
कुछ यहाँ होता रहा है कुछ वहाँ हो जाएगा 

तुम और फ़रेब खाओ बयान-ए-रक़ीब से 
तुम से तो कम गिला है ज़ियादा नसीब से 

होती हैं शब-ए-ग़म में यूँ दिल से मिरी बातें 
जिस तरह से समझाए दीवाने को दीवाना 

याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं 
भूलने वाले कभी तुझ को भी याद आता हूँ मैं 

गो हरम के रास्ते से वो पहुँच गए ख़ुदा तक 
तिरी रहगुज़र से जाते तो कुछ और बात होती 

निकहत-ए-साग़र-ए-गुल बन के उड़ा जाता हूँ 
लिए जाता है कहाँ बादा-ए-सर-जोश मुझे 

एक धुँदला सा तसव्वुर है कि दिल भी था यहाँ 
अब तो सीने में फ़क़त इक टीस सी पाता हूँ मैं 

सब कुछ ख़ुदा से माँग लिया तुझ को माँग कर 
उठते नहीं हैं हाथ मिरे इस दुआ के बाद 

गो हवा-ए-गुलसिताँ ने मिरे दिल की लाज रख ली 
वो नक़ाब ख़ुद उठाते तो कुछ और बात होती 

ये बजा कली ने खिल कर किया गुलसिताँ मोअत्तर 
अगर आप मुस्कुराते तो कुछ और बात होती 

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