ईरान में क्यों होता है ‘एसेम्बली ऑफ एक्सपर्ट’ का चुनाव, आज हो रही है वोटिंग; जानें पूरा मामला
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ईरान में क्यों होता है ‘एसेम्बली ऑफ एक्सपर्ट’ का चुनाव, आज हो रही है वोटिंग; जानें पूरा मामला

Iran News: ईरान में संसदीय इलेक्शन के लिए आज यानी 1 मार्च को मतदान शुरू हो गया है. इस मतदान के जरिए  देश की ‘एसेम्बली ऑफ एक्सपर्ट’ के सदस्यों का भी इलेक्शन होगा. जानें ‘एसेम्बली ऑफ एक्सपर्ट’ का क्या काम होता है. 

ईरान में क्यों होता है ‘एसेम्बली ऑफ एक्सपर्ट’ का चुनाव, आज हो रही है वोटिंग; जानें पूरा मामला

Iran News: हिजाब की अनिवार्यता संबंधी कानूनों के विरोध में 2022 में हुए व्यापक प्रोटेस्ट के बाद ईरान में हो रहे पहले संसदीय इलेक्शन के लिए आज यानी 1 मार्च को मतदान शुरू हो गया है. ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई सबसे पहले वोट डाला है. जिसके बाद वो सबसे पहले वोट डालने वाले मतदाताओं में शामिल हो गए हैं. इस मतदान के जरिए देश की ‘एसेम्बली ऑफ एक्सपर्ट’ के सदस्यों का भी इलेक्शन होगा.

खामनेई के पद से हटने या उनके निधन की हालात में नए सर्वोच्च नेता के चयन की जिम्मेदारी ‘असेंबली ऑफ एक्सपर्ट’ की होगी. खामनेई की आयु के मद्देनजर ‘असेंबली ऑफ एक्सपर्ट’ की महत्ता बढ़ गई है. देश की 290 सदस्यीय संसद की सदस्यता के लिए लगभग 15,000 कैंडिडेट मैदान में हैं. 

‘इस्लामिक कंसल्टेटिव असेंबली’ लेते हैं बड़े फैसले
ईरान की पार्लियामेंट को औपचारिक रूप से ‘इस्लामिक कंसल्टेटिव असेंबली’ के रूप में जाना जाता है. सांसदों का कार्यकाल चार साल होता है और पांच सीट ईरान के धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं. कानून के तहत, संसद कार्यकारी शाखा पर निगरानी रखती है, संधियों पर वोट करती है और दूसरे मुद्दों को संभालती है, लेकिन ईरान में व्यावहारिक रूप से पूर्ण शक्ति उसके सर्वोच्च नेता के पास होती है. 

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ने इलेक्शन का किया बहिष्कार
वाजेह हो कि पुलिस हिरासत में 2022 में 22 साल की महसा अमीनी की मौत के बाद हिजाब पहनने की अनिवार्यता के विरोध में देशभर में व्यापक पैमाने पर प्रोटेस्ट हुए थे. इस प्रदर्शन के खिलाफ सुरक्षाबलों की कार्रवाई में 500 लोगों की मौत हो गई थी और 22,000 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया था. हालिया सप्ताह में बहुत से लोगों ने इलेक्शन के बहिष्कार का आह्वान किया है. इनमें जेल में बंद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और महिला अधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी भी शामिल हैं, जिन्होंने इन चुनावों को ‘‘दिखावा’’ करार दिया है. 

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