Delhi News: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि किसी मुस्लिम से शादी करने का यह मतलब नहीं कि मजहब अपने आप तबदील हो गया है. अदालत जायदाद से जुड़े एक मामले पर सुनवाई कर रही थी.
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Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि दूसरे मजहब के शख्स से शादी करने का मतलब यह नहीं है कि उसका मजहब अपने आप बदल गया. जस्टिस जस्मीत सिंह की सिंगल बेंच ने कहा कि "मुस्लिम से शादी करने से हिंदू मजहब से इस्लाम में अपने आप ही कंवर्ट नहीं हो जाता. मौजूदा मामले में, प्रतिवादियों की तरफ से जबानी के अलावा, यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किए गए हैं कि वादी इस्लाम में मजहब तबदील के प्रोसेस से गुजरा है. इसलिए सबूतों के न होने पर, केवल शादी की बुनियाद पर मजहब दबदील होने का दावा नहीं माना जा सकता है."
पहली बीवी के बेटे हैं वादी
यह बयान अदालत ने हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की जायदाद के बंटवारे को लेकर दाखिल अर्जी पर दिया. हाईकोर्ट 2007 में एक शख्स की पहली बीवी की सबसे बड़ी बेटी की तरफ से दूसरी बीवी के दो बेटों के खिलाफ याचिका डाली. इस मामले में अदालत सुनवाई कर रहा था. पहली बीवी की एक दूसरी बेटी को दूसरे वादी के बतौर पेश किया गया. दिसंबर 2008 में, मुकदमे के लंबित रहने के दौरान पिता की मौत हो गई थी.
बेटी की इजाजत के बिना बेच रहे थे प्रॉपर्टी
अर्जी दायर करने वाली लड़की ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत HUF जायदाद में अपना हिस्सा मांगा. यह अधिनियम बेटियों को बाप की जायदाद में हक देता है. अर्जी में कहा गया कि बेटियों के पास मुकदमे की जायदाद में से हर का पांचवां हिस्सा था. मुकदमा इसलिए दायर किया गया क्योंकि प्रतिवादी बेटे (दूसरी बीवी से) बेटियों की इजाजत के बिना जायजाद बेचने की कोशिश कर रहे थे.
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लड़की ने कर ली मुस्लिम शख्स से शादी
जायजाद के मालिक बाप ने इस मुकदमें की मुखालफत की थी. उनका कहना था कि यह केस इसलिए नहीं चल सकता है, क्योंकि सबसे बड़ी बेटी हिंदू नहीं रही, क्योंकि उसकी शादी ब्रिटेन में एक पाकिस्तानी मूल के मुस्लिम शख्स से हो चुकी है. प्रतिवादियों का कहना है कि लड़की का संपत्ति का अधिकार नहीं बनता है, क्योंकि वह अब हिंदू बनने के लायक नहीं रही. जिन जायदादों को बेचा जा रहा है वह जायदाद दिल्ली की न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में हैं.
प्रतिवादियों के पास नहीं हैं सबूत
हालांकि हाईकोर्ट ने कहा कि यह साबित करना प्रतिवादियों की जिम्मेदारी है कि बड़ी बेटी ने मुस्लिम शख्स से शादी की और वह अब हिंदू नहीं रही. अदालत के मुताबिक प्रतिवादी ये साबित करने में नाकाम रहे कि बड़ी बेटी ने हिंदू मजहब छोड़ दिया है और उसने इस्लाम मजहब अपना लिया है. अदालत ने कहा कि प्रतिवादी के पास इस ताल्लुक से सबूत भी नहीं हैं.