नई दिल्ली: West Bengal Division: मैं नीति आयोग की बैठक में बंगाल के साथ हो रहे राजनीतिक भेदभाव की खिलाफत करूंगी. भाजपा के मंत्री और नेता बंगाल को बांटना चाहते हैं. आर्थिक नाकेबंदी के साथ वे भौगोलिक नाकेबंदी भी करना चाह रहे हैं. झारखंड, बिहार और बंगाल को बांटने के लिए नेता अलग-अलग बयान दे रहे हैं. हम इसकी निंदा करते हैं. हम अपनी आवाज को बुलंद करना चाहते हैं और ऐसा करने के लिए मैं वहां उपस्थित रहूंगी- पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ये बयान नीति आयोग की बैठक से पहले दिया, जब पश्चिम बंगाल को तीन हिस्सों में बांटने की बात कही जा रही है. आइए, जानते हैं कि 1 राज्य को 3 हिस्सों में बांटने की बात कहां से उठी?
बंगाल के दो हिस्से
पश्चिम बंगाल का विभाजन करने की बात बंगाल भाजपा के अध्यक्ष और केंद्रीय राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने कही. बुधवार को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. उन्होंने PM मोदी को उत्तर बंगाल के आठ जिलों को पूर्वोत्तर राज्यों में मिलाने का प्रस्ताव दिया. ये 8 जिले दार्जिलिंग, कूचबिहार उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, जलपाईगुड़ी, मालदा, अलीपुरद्वार और कलिम्पोंग हैं. मजूमदार 2021 में भी इन्हें मिलाकर एक केंद्र शासित प्रदेश बनाने का सुझाव दे चुके हैं. मजूमदार का कहना है कि ऐसा करने से पूर्वोत्तर के राज्यों में होने वाला विशेष विकास इन जिलों में भी हो सकेगा.
बंगाल के दो नहीं, तीन हिस्से
सुकांत मजूमदार के बाद गुरूवार को झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी एक बयान दिया. उन्होंने संसद में बजट पर चर्चा के दौरान कहा- बंगाल और बिहार के मुस्लिम बहुल जिलों में हिंदु गांव खाली होने लगे हैं. बिहार की अररिया, किशनगंज, कटिहार और बंगाल की मालदा और मुर्शिदाबाद लोकसभा सीट को मिलाकर एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाना चाहिए. ऐसा नहीं हुआ तो हिंदू गायब ही हो जाएंगे.
BJP को होगा सियासी फायदा
उत्तर बंगाल में भाजपा मजबूत स्थिति में है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस इलाके की 9 में से 7 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बंगाल में झटका लगा, लेकिन उत्तर बंगाल में फिर भी पार्टी 6 सीटें जीत गई. भाजपा यहां पर अपने लिए नई सियासी जमीन तैयारी करने की कोशिश में लगी है. TMC को कमजोर करने के लिए पार्टी हर दांव अपना रही है.
अलग राज्य के लिए हो चुका हिंसक आंदोलन
बंगाल में अलग राज्य की मांग पहली बार नहीं उठी है. इससे पहले भी गोरखालैंड बनाने की मांग हुई थी. इसकी मांग करने वालों का कहना था कि उत्तर बंगाल के दार्जिलिंग और पहाड़ी इलाकों को मिलाकर एक राज्य बनाया जा सकता है. इससे गोरखा नेशनल लिबरेशन नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) के फाउंडर सुभाष घीसिंग आंदोलन शुरू किया था. ये 80 के दशक की बात है. फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजिव गांधी ने हस्तक्षेप किया और त्रिपक्षीय समझौते से मुद्दा हल हुआ.
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