यूपी: दलित वोटर ने बदला उपचुनाव का रुख, भाजपा से हुईं ये गलतियां

भाजपा की ओर से भी दलित वोटों को पाने के लिए कोशिश तो खूब हुई पर कामयाबी नहीं मिल सकी. इसे आगे आने वाले चुनाव के लिए एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है. हालंकि, इन उपचुनाव में बसपा और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 11, 2022, 12:00 PM IST
  • मैनपुरी में मुलायम की सहानभूति और विकास का फायदा मिला
  • इसके साथ दलित वोटों के लिए अखिलेश ने अलग से रणनीति बनाई
यूपी: दलित वोटर ने बदला उपचुनाव का रुख, भाजपा से हुईं ये गलतियां

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा में हुए उपचुनाव के नतीजे कई संकेत दे रहे हैं.इनमें से एक संकेत यह है कि भाजपा दलित वोट अपने पाले में करने में विफल रही. इसे आगे आने वाले चुनाव के लिए एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है. हालंकि, इन उपचुनाव में बसपा और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे.

मैनपुरी में इतने दलित मतदाता
राजनीतिक दलों के आंकड़ों के अनुसार, मैनपुरी में दलित मतदाताओं की संख्या लगभग डेढ़ लाख है. इस वोट बैंक पर बसपा का कब्जा रहा है. 2022 के विधानसभा चुनाव में उसकी पकड़ इस वर्ग पर ढीली हुई. दलित वोटर बंटे. इसका परिणाम यह रहा कि विधानसभा चुनाव में बसपा एक ही सीट जीत पाई. अब हाल यह है कि मैनपुरी में दलित वोटर जिसके साथ खड़ा हो जाता है, उसे कामयाबी मिल जाती है. उपचुनाव के परिणाम भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं.

खतौली सीट पर हाल
चुनावी अनुमान के मुताबिक, खतौली सीट पर करीब 50 हजार से ज्यादा दलित वोटर हैं. इसे पाने के लिए जयंत चौधरी और अखिलेश यादव ने मिलकर रणनीति बनाई थी. यहां पर जाट गुर्जर और दलित का कॉम्बिनेशन किया था. दलितों को फोकस करने के लिए आजाद पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर को भी मैदान पर उतारा गया था.

आरएलडी के साथ सपा और चंद्रशेखर की पार्टी के आने से जबरदस्त फायदा पहुंचा है. सीधे-सीधे दलित वोटबैंक में सेंधमारी हुई है और जिसका नुकसान भाजपा को हुआ है. विधानसभा चुनाव के दौरान गठबंधन होते-होते जरूर रह गया था, लेकिन इस बार उपचुनाव में सपा के मंच पर ही कई मौकों पर चंद्रशेखर दिखाई दिए. उन्होंने खुलकर सपा और आरएलडी उम्मीदवार के लिए प्रचार किया.

गठबंधन दहाई और भाजपा इकाई में सिमटी
चुनावी जानकारों की माने तो खतौली सीट के हर गांव में तकरीबन गठबंधन के उम्मीदवार को दहाई में वोट मिला है. जबकि भाजपा इसके मुकाबले में इकाई में ही सिमटी दिखी. खतौली ग्रामीण और नगर में भी गठबंधन को 44 बूथों पर विजय मिली तो भाजपा महज 25 बूथ ही जीत पाई.

भाजपा से क्या हुई गलती
राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस सीट पर भाजपा ने प्रत्याशी चयन में गलती की. उनका व्यवहार भी नुकसानदायक रहा. हालंकि दलित वोट को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा ने काफी नेताओं की फौज उतार रखी थी लेकिन वह गठबंधन की सोशल इंजीनियरिंग के सामने धराशाई हो गए.

क्या कहते हैं विश्लेषक
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र सिंह बताते हैं कि खतौली सीट पर बसपा का उम्मीदवार न होने से गठबंधन ने आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर को जोड़ लिया और गांव गांव तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास किया और उन्हें कामयाबी मिल गई. जबकि भाजपा की ओर से भी दलित वोटों को पाने के लिए कोशिश तो खूब हुई पर कामयाबी नहीं मिल सकी.

कैसे जीती सपा
सपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता की मानें तो मैनपुरी में मुलायम की सहानभूति और विकास का फायदा मिला. इसके साथ दलित वोटों के लिए अखिलेश ने अलग से रणनीति बनाई. वह खुद गांव गांव गए, जहां नहीं जा पाए वहां उनकी पार्टी का कोई न कोई वरिष्ठ नेता भी पहुंचा. इसके अलावा बसपा से आए दलित और कैडर नेताओं का एक अलग गुलदस्ता तैयार किया. उन्होंने संविधान और मुलायम के विकास की याद दिलाकर माहौल अपने पक्ष में कर लिया. उसी का नतीजा है सपा को बहुत बड़ी जीत मिली है. यहां तक कि भाजपा के जिलाध्यक्ष अपने बूथों में भी सपा जीतने से नहीं रोक पाए.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि बसपा ने उपचुनाव से दूरी बना ली थी और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर का साथ रालोद प्रत्याशी को मिलने के बाद दलितों का रुख गठबंधन की ओर हो गया. भाजपा ने दलित मतदाताओं को अपने पाले में रखने के लिए कड़ी मशक्कत की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. उन्होंने कहा कि भाजपा को दलित वोट पाने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी तभी कामयाबी मिलने की संभावना है.

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