Republic Day 2023: अब तक सिर्फ 1 बार चीन से आए चीफ गेस्ट, तब पंडित नेहरू थे प्रधानमंत्री

1955 में पहली बार गणतंत्र दिवस की परेड राजपथ पर हुई जिसे अब कर्तव्य पथ के नाम से जाना जाता है. आपके इस रिपोर्ट में इससे जुड़ी कुछ अहम तथ्य बताते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 19, 2023, 07:52 AM IST
  • गणतंत्र दिवस पर इस बार कौन होगा भारत का चीफ गेस्ट?
  • भूटान को चार बार किया गया आमंत्रित, चीन सिर्फ एक बार
Republic Day 2023: अब तक सिर्फ 1 बार चीन से आए चीफ गेस्ट, तब पंडित नेहरू थे प्रधानमंत्री

नई दिल्ली: 26 जनवरी को 1950 को भारत का पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया था. उसी वक्त से अन्य देशों के गणमान्य लोगों और बडे़ राजनेताओं को चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाए जाने की प्रथा रही है. साल 1950 से लेकर 1954 तक गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम कई जगहों पर आयोजित किया गया जैसे लाल किला, रामलीला मैदान और इरविन एम्फीथियेटर. 1955 में पहली बार गणतंत्र दिवस की परेड राजपथ पर हुई जिसे अब कर्तव्य पथ के नाम से जाना जाता है. 

इस साल 74वें गणतंत्र दिवस पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल सिसी चीफ गेस्ट होंगे. गणतंत्र दिवस पर चीफ गेस्ट के चयन में कई बातों का खयाल रखा जाता है जिनमें राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक वजहें शामिल हैं. 1950 से 1970 के दशक के बीच भारत में गुट निरपेक्ष राष्ट्रों और ईस्टर्न ब्लॉक (कम्युनिस्ट ब्लॉक) के नेताओं को प्रमुखता से आमंत्रित किया गया था.

भूटान को चार बार किया गया आमंत्रित, चीन सिर्फ एक बार
अगर दक्षिण एशियाई और मध्य एशियाई देशों की बात करें तो भारत ने अपने पड़ोसी और नजदीकी देशों को 2 या फिर चार बार भी आमंत्रित किया है. भूटान से चार बार चीफ गेस्ट आए हैं. वहीं नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका से दो बार चीफ गेस्ट आए हैं. लेकिन पड़ोसी देश चीन से सिर्फ एक बार ही चीफ गेस्ट आए हैं. साल 1958 में चीन से ये जियानयिंग गणतंत्र दिवस की परेड में बतौर चीफ गेस्ट शामिल हुए थे. जियानयिंग उस वक्त चीन की आर्मी मार्शल थे. 

पंचशील समझौता, चीन पर भरोसा, 1962 का युद्ध
1958 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के काल में ही चीफ गेस्ट बुलाया गया था. इसके बाद कभी चीन से कोई चीफ गेस्ट गणतंत्र दिवस परेड में शामिल नहीं हुआ. दरअसल 1950 के दशक के उन वर्षों में पीएम नेहरू ने चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के काफी प्रयास किए थे जिनका नतीजा 1954 में हुआ पंचशील समझौता था. दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को लेकर हुआ यह समझौता तब बेहद महत्वपूर्ण माना गया था. इन सिद्धांतों अंतर्निहित धारणा यह थी कि नए आजाद मुल्क उपनिवेशवाद के बाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए एक नया और अधिक सैद्धांतिक दृष्टिकोण विकसित करने में सक्षम होंगे.

1962 में चीन ने तोड़ा समझौता
लेकिन 1962 में चीन की तरफ से इस समझौते का खुला उल्लंघन हुआ. यही वह साल था जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ. इस युद्ध को पंडित नेहरू की विदेश नीति पर एक बड़े झटके के रूप में देखा जाता है. पंडित नेहरू ने भी खुद संसद में खेदपूर्वक कहा था-हम आधुनिक दुनिया की सच्चाई से दूर हो गए थे और हम एक बनावटी माहौल में रह रहे थे, जिसे हमने ही तैयार किया था.'

देश के पूर्व रक्षा मंत्री और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत मुलायम सिंह यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौत किसी बीमारी की वजह से नहीं, बल्कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के 'सदमे' से हुई थी.

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