क्यों संसद में 'निकम्मा' शब्द का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे नेता! क्या ये सरकारी नियम नया है?

लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी की गई एक नई बुकलेट में कुछ ऐसे शब्द बताए गए हैं जिनका इस्तेमाल असंसदीय माना जाएगा. क्या पहले ऐसे किसी शब्दों पर रोक नहीं थी?

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 14, 2022, 06:59 PM IST
  • किन शब्दों को माना गया असंसदीय
  • क्या ऐसा पहली बार हो रहा है?
क्यों संसद में 'निकम्मा' शब्द का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे नेता! क्या ये सरकारी नियम नया है?

नई दिल्ली: लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी की गई एक नई बुकलेट में कुछ ऐसे शब्द बताए गए हैं जिनका इस्तेमाल असंसदीय माना जाएगा. यह बुकलेट 18 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सेशन से ठीक पहले जारी की गई है. इस लिस्ट को मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने आड़े हाथों लिया है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा- 'मोदी सरकार की सच्चाई बताने के लिए विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सभी शब्दों को अब 'असंसदीय' माना जाएगा. अब आगे क्या होगा विश्वगुरु?'

कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल ने कहा-आजादी मिलने के बाद आज तक किसी भी सदन में जुमलाजीवी और जुमलेबाज जैसै शब्दों को असंसदीय घोषित नहीं किया गया है. जब देश में कांग्रेस की सरकार थी तब भाजपा द्वारा हमारे खिलाफ इस प्रकार के सारे शब्दों का प्रयोग किया जाता था. 

लेकिन क्या कांग्रेस द्वारा लगाए जा रहे आरोपों के मुताबिक 'असंसदीय शब्दों' की यह लिस्ट नई है? क्या पहले ऐसे किसी शब्दों पर रोक नहीं थी? यह सब जानने के पहले जान लेते हैं कि नई बुकलेट में किन शब्दों को असंसदीय माना गया है. 

किन शब्दों को माना गया असंसदीय
नई बुकलेट के मुताबिक जुमलाजीवी, बाल बुद्धि, दोहरा चरित्र, निकम्मा, नौटंकी, ढिंढोरा पीटना और बहरी सरकार, चमचा, चमचागिरी, चेला, घड़ियाली आंसू, गद्दार, गिरगिट, गुंडा, काला दिन, काला बाजार, खरीद फरोख्त जैसे शब्दों को असंसदीय माना गया है. इनके अलावा दंगा, दलाल, दादागीरी, पिट्ठू, संवेदनहीन, विश्वासघात जैसे शब्दों को भी असंसदीय माना गया है और इन्हें रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया जाएगा. 

कैसे बनती है यह लिस्ट
लोकसभा सचिवालय द्वारा इस तरह की लिस्ट समय-समय पर जारी की जाती है. इन शब्दों पर आखिरी निर्णय लोकसभा या फिर राज्यसभा अध्यक्ष का होता है. अगर कोई सांसद ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करता है तो फिर क्या होगा? पहली बात कि ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर किसी भी कोर्ट में कोई केस नहीं चलाया जा सकता. दरअसल ऐसा संविधान के आर्टिकल 105 (2) के मुताबिक होता है. लोकसभा या राज्यसभा के अध्यक्ष ऐसे शब्दों को अपने संज्ञान के आधार पर कार्यवाही से हटवा सकते हैं. 

क्या ऐसा पहली बार हो रहा है?
हम जानते हैं कि नियमों के बारे में भारतीय संसद ने बहुत कुछ नियम ब्रिटिश नियमों से उठाए हैं. न्यूज़18 पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटिश संसद ने असंसदीय शब्दों को हटाने की प्रक्रिया 1604 में ही शुरू कर दी थी. 

सरकार ने आरोपों को नकारा
विपक्ष के आरोपों की बात करें तो नई लिस्ट को लेकर विपक्ष के आरोपों को सरकार ने नकार दिया है. एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के सूत्रों का कहना है-यह लिस्ट हर साल जारी की जाती है. यह लिस्ट नई नहीं है. इनमें से ज्यादातर शब्दों को यूपीए सरकार के समय में भी असंसदीय माना जाता था. यह सिर्फ कुछ शब्दों का समूह है जिन्हें चिन्हित किया गया है. ये कोई सरकारी सलाह या फिर आदेश नहीं है.

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