नई दिल्लीः Electoral Bond: केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की थी. इसके बाद 29 जनवरी 2018 को इसे कानूनी रूप से लागू कर दिया गया था. तब इस बॉन्ड को लागू करते समय तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इस स्कीम को लागू करने का मुख्य मकसद चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाना है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब इस बॉन्ड को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया इलेक्टोरल बॉन्ड
इलेक्टोरल बॉन्ड को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को जबरदस्त फटकार लगाया था और बॉन्ड से संबंधित सभी आंकड़ों को तत्काल प्रभाव से सार्वजनिक करने का आदेश दिया था. इसके बाद चुनाव आयोग के ऑफिशियल वेबसाइट इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित सभी आंकड़े जारी कर दिए गए हैं. बहरहाल, आइए जानते हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड से पहले देश की राजनीतिक पार्टियां चुनावी चंदे कैसे इकट्ठा करती थीं.
चेक के माध्यम से मिलते थे चुनावी चंदे
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो इलेक्टोरल बॉन्ड से पहले पार्टियों को चेक के माध्यम से चुनावी चंदे दिए जाते थे. तब चंदा देने वाले शख्स का नाम और रकम की जानकारी पार्टियों द्वारा चुनाव आयोग को मुहैया कराई जाती थी. वहीं, आज से 40 साल पहले पार्टियां एक रसीद बुक के जरिए चंदा इकट्ठा किया करती थीं.
रसीद बुक लेकर घर-घर जाते थे कार्यकर्ता
इसके लिए पार्टियों के कार्यकर्ता रसीद बुक के साथ घर-घर जाया करते थे और लोगों से अपनी पार्टी के लिए चंदा जुटाया करते थे. इसके अलावा डोनेशन, क्राउड फंडिंग, मेंबरशिप और कॉर्पोरेट डोनेशन के जरिए भी चंदे जुटाए जाते थे. इसमें देश के बड़े-बड़े कारोबारी राजनीतिक पार्टियों को डोनेशन देते थे.
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