National Cinema Day: भारत के सबसे ऐतिहासिक थिएटर्स का अब ऐसा है हाल, बनकर रह गए हैं बी ग्रेड फिल्मों का ठिकाना

National Cinema Day, 23 September 2022: गली के नुक्कड़ों से कहानी कहने का ये सिलसिला बढ़ते हुए रंगमंच तक पहुंचा. यहां से आगे चलते हुए इसका फिल्मी सफर भी बेहद ही खास है. ऐसे में सिनेमा डे पर जानते हैं भारत के आजादी से पहले के थिएटर्स के बारे में

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 22, 2022, 06:00 PM IST
  • कोलकाता के चैपलिन थिएटर को ध्वस्त कर दिया है
  • मुंबई का कैपिटल सिनेमा है बी ग्रेड फिल्मों का हब
National Cinema Day: भारत के सबसे ऐतिहासिक थिएटर्स का अब ऐसा है हाल, बनकर रह गए हैं बी ग्रेड फिल्मों का ठिकाना

नई दिल्ली: भारत में जब सिनेमा की शुरुआत हुई थी तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि ये मूवी क्रेजी नेशन बन जाएगा. फिल्में लोगों के खान-पान, रहन-सहन, बोल-चाल के अलावा देश की आबो-हवा को भी कंट्रोल करती हैं. चाहे बैल बॉटम पैंट का जमाना हो या खुल्लम खल्ला 'इश्क ए इजहार' सब सिनेमा की ही देन है. भारत में जहां सदियों तक रंगमंच और नुक्कड़ नाटकों का बोलबाला रहा, वहां सिनेमा का इस कद्र पांव पसारना आसान नहीं था. ऐसे में इसके फलने फूलने में थिएटर्स का भी काफी बड़ा हाथ रहा है. आइए ऐसे ही ऐतिहासिक थिएटर्स की बारे में जानते हैं.

कैपिटल सिनेमा, मुंबई

मुंबई की लोकल, लोगों की भीड़ और हर जगह मिलता वड़ा पाव ऐसे में फिल्मों में काम करने वाले करोड़ों लोग मुंबई को ही अपना भगवान मानते हैं. यहां पर 1879 स्थित है कैपिटल सिनेमा. ये थिएटर भले ही आज बी ग्रेड फिल्मों का हब बना हो लेकिन ये कभी गॉथिक मूवी प्ले हाउस का हॉटस्पॉट हुआ करता था. इस थिएटर में सबसे पहले 'द फ्लैग लेफ्टिनेंट' नाम की ब्रिटिश फिल्म सबसे पहले डिस्प्ले की गई.

चैपलिन सिनेमा, कोलकाता

सत्यजीत रे का बंगाल, रवींद्रनाथ टैगोर की कहानियों में दिखाया गया बंगाल. इसी बंगाल में कभी हुआ करता था चैपलिन सिनेमा. 1907 में इस थिएटर की स्थापना की गई थी. एलफिंस्टन पिक्चर पैलेस के नाम से इसे काफी सालों तक जाना जाता रहा, इसके बाद इसे मिनर्वा सिनेमा हॉल भी कहा गया. 1980 के दशक तक आते-आते थिएटर की हालत बहुत खराब हो गई ऐसे में इसका नाम चैपलिन थिएटर रखा गया. थिएटर का रख रखाव ठीक से न हो पाने पर 2013 में इस थिएटर को ध्वस्त कर दिया गया.

 

रॉयल थिएटर, मुंबई

फिल्मों की जनक रही इस धरती पर एक से बढ़कर एक थिएटर्स हैं. यहां के हर घर में एक एक्टर है. सपनों का शहर कहलाने वाले मुंबई में आज भी 1911 में बना ये रॉयल थिएटर फिल्मी कीड़ों का ठिकाना है. पहले स्टेज शो और डॉक्यूमेंट्री स्क्रीनिंग ही यहां की जाया करती थी. 1930 के दशक से फिल्मों की ऐसी लहर चली कि इसका भी रूप ही बदल गया. 

रीगल सिनेमा, दिल्ली

दिल्ली वालों की नजर में उनकी सिटी सिर्फ देश की राजधानी ही नहीं बल्कि खान पान और मुगल कालीन संस्कृति की भी राजधानी है. देश के दिल में 1932 से बसा है नई दिल्ली का सबसे बड़ा थिएटर रीगल सिनेमा. एक जमाने में राज कपूर और नरगिस की फिल्मों का यहीं प्रीमियर हुआ करता था. हाई कोर्ट के ऑर्डर के बाद इस धरोहर को संजो कर रखा गया है.

 

एवरेस्ट टॉकीज, बेंगलुरू

कहते हैं साउथ में लोग फिल्मों के दीवाने हैं. इतने दीवाने की रजनीकांत की फिल्म रिलीज होने पर स्टेट हॉलिडे, तो हिट होने पर पोस्टर को दूध से नहालाया जाता है. आज भी बेंगलुरू में 1930 के दशक में सिविल इंजीनियर चौरियप्पा का ऐतिहासिक एवरेस्ट टॉकीज लोगों को एंटरटेन कर रहा है. ये एक स्टैंडअलोन सिंगल स्क्रीन थिएटर है.

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