नई दिल्लीः Bihar Politics: बिहार की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से मचा सियासी हलचल नई सरकार के गठन के साथ खत्म हो गई है. जेडीयू और NDA के समर्थन से बिहार में नई सरकार बन गई है. नीतीश कुमार नौवीं बार मुख्यमंत्री पद का शपथ लिए हैं, तो सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. इन तीनों के अलावा अन्य 6 विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ली है.
विधानसभा सचिव को सौंपा गया अविश्वास प्रस्ताव
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो बिहार में NDA की सरकार बनते ही विधानसभा के मौजूदा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के खिलाफ विधानसभा सचिव को अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस सौंप दिया गया है. इस नोटिस पर बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, पूर्व डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद, जदयू के विनय कुमार, रत्नेश सदा समेत कई और भी विधायकों के हस्ताक्षर हैं. आइए एक नजर डालते हैं विधानसभा स्पीकर को उनके पद से हटाने की पूरी प्रक्रिया के बारे में.
संविधान के भाग 6 में है विस्तृत वर्णन
बता दें कि भारत में विधानसभा या लोकसभा के अध्यक्ष का पद एक संवैधानिक पद है. विधानसभा अध्यक्ष के पद के बारे में विस्तृत वर्णन संविधान के भाग 6 में अनुच्छेद 178 से 181 तक मिलता है. संविधान के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा और विधान सभा सचिवालय का प्रमुख पीठासीन अधिकारी होता है. संविधान के अनुच्छेद 178 में विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का प्रावधान किया गया है. विधानसभा का अध्यक्ष बनने के लिए विधानसभा का सदस्य यानी विधायक होना जरूरी है.
अनुच्छेद 179 में है स्पीकर को पद से हटाने का प्रावधान
वहीं, विधानसभा अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का प्रावधान अनुच्छेद 179 में मिलता है. इसके तहत स्पीकर को उसके पद से हटाने के लिए विधानसभा सदस्यों को विधानसभा सचिव को 14 दिन पहले सूचना देनी पड़ती है. इसके बाद विधानसभा में चुनाव कराए जाते हैं और बहुमत के आधार पर इसका फैसला किया जाता है. पुराने अध्यक्ष को अपने पद से हटने के बाद नए अध्यक्ष पद के लिए सदन के भीतर चुनाव होते हैं.
कब स्वीकार होता है अविश्वास पत्र
बता दें कि जिसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया होता है, वह कार्यवाही के दौरान अध्यक्ष की कुर्सी पर नहीं बैठता है. स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तभी स्वीकार होता है, जब सदन के सचिव को सौंपे गए लेटर पर सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां हिस्सा उस प्रस्ताव के समर्थन में हो. यानी बिहार में कुल विधानसभा सदस्यों की संख्या 243 है, तो सदन के सचिव को सौंपे गए लेटर पर कम से कम 25 विधायकों के हस्ताक्षर जरूरी हैं.
स्पीकर के पास है निर्णायक मत का अधिकार
सामान्य स्थिति में स्पीकर को किसी मुद्दे पर मत देने का अधिकार नहीं होता है, लेकिन जब सदन में पक्ष और विपक्ष के मत समान आ जाए, तो स्पीकर के पास निर्णायक मत देने का अधिकार है. बता दें कि अगर विधानसभा भंग भी हो जाती है, तो विधानसभा अध्यक्ष अपने पद पर बने रहते हैं. वे तब तक अपने पद पर रहते हैं, जब तक की अगले विधानसभा का पहला अधिवेशन शुरू नहीं हो जाता. इसका वर्णन संविधान के अनुच्छेद 179 में मिलता है.
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