क्या चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का मन बदल रहा है. क्या वे वास्तव में अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारना चाहते हैं. या उन्हें यह समझ में आ रहा है कि बिन अमेरिका तरक्की करना संभव नहीं है. इन सभी सवालों के जवाब भविष्य में कभी ना कभी जरूर मिल जाएंगे, लेकिन जिस तरह से नरम अंदाज में वो अमेरिकी बिजनेस कम्यूनिटी से मुखातिब हो रहे थे उससे लग रहा है कि जो बाइडेन का दबाव काम कर गया है.
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China America Relatioship: चीन और अमेरिका के रिश्तों में तनातनी किसी से छिपी नहीं है. दक्षिण चीन सागर में चीन के हर एक एक्शन को अमेरिका भड़काने वाला कदम मानता है. तो क्वॉड के बारे में चीन का मानना है कि अमेरिका उसे घेरने की कोशिश कर रहा है. इन सबके बीच एशिया पैसिफिक इकोनॉमिक को-ऑपरेशन में शिरकत करने के लिए शी जिनपिंग अमेरिका पहुंचे तो उम्मीद थी कि दोनों देशों के बीच जमी बर्फ पिघलेगी. राजनीतिक तौर पर चीन को अमेरिका से कुछ भरोसा तो नहीं मिला. लेकिन एपेक से इतर जब शी जिनपिंग अमेरिकी बिजनेस समाज को संबोधित कर रहे थे तो उनका बातों से ऐसा लग रहा था कि वो अमेरिका के सामने घुटने टेक दिए हों.
शी जिनपिंग के व्यवहार में इस तरह का बदलाव आर्टिफिशियल या नेचुरल है उसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में है. लेकिन उन्होंने जब जीरो सम गेम, फ्लाइंग टाइगर, लोवा की एक घटना का जिक्र किया तो वो अमेरिका के बिजनेस कम्यूनिटी को कुछ संदेश दे रहे थे. शायद उन्हें अहसास हो चुका है कि बिन अमेरिका या अमेरिका से पंगा लेकर आगे बढ़ना आसान नहीं है. अपने भाषण की शुरुआत में कहा कि हम अमेरिका का सहयोगी और दोस्त बनने की चाहत रखते हैं.
'हम प्रतिद्वंदी ही क्यों बनें'
आम तौर पर जब दो राष्ट्राध्यक्षों के बीच बातचीत होती है तो एजेंडा बेहद टाइट होता है. लेकिन जब बिजनेस कम्यूनिटी के सामने राष्ट्राध्यक्ष अपने को पेश करते हैं तो अंदाज बदला होता है शी जिनपिंग ने अपने भाषण में याद दिलाया कि अमेरिका के साथ चीन के संबंध कितने प्रगाढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि चाहे आप प्रतिद्वंदी हों या दोस्त द्विपक्षीय संबंधों को दिशा देने के लिए बुनियादी बातों पर ध्यान तो देना ही होगा. अगर हम एक दूसरे को सिर्फ सबसे बड़े प्रतिद्वंदी के तौर पर देखें तो उसका असर गलत नीतियों में होगा. हम गलत काम करेंगे जिसके नतीजे भी गलत ही होंगे.
जीरो सम गेम, फ्लाइंग टाइगर, लोवा का जिक्र
शी जिनपिंग ने कहा कि हमें जीरो सम गेम में शामिल नहीं होना चाहिए. इस तरह के गेम में किसी एक की कीमत पर दूसरे की जीत होती है.चीन ने ऐसा काम नहीं किया है जिसमें अमेरिका का नुकसान हुआ हो. यही नहीं हमने कभी भी अमेरिका के आंतरिक मामलों में दखल देने की भी कोशिश नहीं की. सबसे बड़ी बात यह है कि हम ना तो अमेरिका को चुनौती या उसे वैश्विक पटल से हटाना चाहते हैं. हमें तो खुशी है कि अमेरिका, विश्वास, खुलेपन और खुशहाली के साथ आगे बढ़ रहा है. हम चाहते हैं कि अमेरिका भी चीन को उसी नजर से देखे और हमारे स्थायित्व और खुशहाली का सम्मान करे.अमेरिका की तारीफ में पुल बांधते हुए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फ्लाइंग टाइगर का भी जिक्र किया. उन्होंने बताया कि किस तरह से जापान के खिलाफ लड़ाई में अमेरिकी पायलटों ने हमारी मदद की थी. करीब चार दशक पहले लोवा के एक प्रसंग का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने एक अमेरिकी परिवार के साथ समय बिताया था. उनके लिए तो असली अमेरिका वही है.
अमेरिकी बिजनेस कम्यूनिटी की राय
शी जिनपिंग के इस तरह के भाषण पर अमेरिका बिजनेस समाज के दिग्गजों ने माना कि दोनों देशों के लिए यह अच्छी बात है, लेकिन सवाल यह है कि जिन बातों को जिनपिंग अमेरिका की धरती पर बोल रहे थे क्या वो बीजिंग पहुंच कर अमल में लाएंगे. प्राइमवेरा कैपिटल ग्रुप के सीईओ फ्रेड हू चीनी राष्ट्रपति शी के भाषण पर प्रतिक्रिया गौर करने के लायक है. उन्होंने कहा कि किसी चीनी राष्ट्राध्यक्ष में इस तरह की असुरक्षा का भाव 1978 के बाद पहली बार देखा है. कल्चरल क्रांति के बाद चीन ने अपनी आर्थिक व्यवस्था में सुधार तो किया. लेकिन खुद को बाकी दुनिया से अलग कर लिया. एक खास कालखंड में एक खास नीति पर आप आगे बढ़ सकते हैं. हालांकि इस सच की अनदेखी कैसे कर सकते हैं कि दुनिया में तेजी से बदलाव हो रहे हैं और आप खुद को अलग नहीं कर सकते. अगर शी जिनपिंग वास्तव में अमेरिका ही क्यों दूसरे देशों से बेहतर बनाना चाहते हैं तो उन्हें अपनी सोच में बुनियादी बदलाव करने होंगे.