Purnima Day Suicide: दोपहर बाद 3 से 4 बजे के बीच आत्महत्याएं ज्यादा होने का संबंध दिन भर की थकान से हो सकता है. साथ ही उस दिन शुरुआत कम लाइट से होने से बायोलॉजिकल क्लॉक जीन और सर्केडियन क्लॉक जीन और कोर्टिसोल में कमी भी इसकी वजह हो सकती है.
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Are There More Deaths During Full Moon: सदियों से लोगों को शक है कि पूर्णिमा के दौरान लोगों में रहस्यमय बदलाव हो सकते हैं. अमेरिका के इंडियाना यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन के मनोचिकित्सकों ने पाया है कि पूर्णिमा के दौरान आत्महत्या से होने वाली मौतें बढ़ जाती हैं. रिसर्चर्स के मुताबिक, पूर्णिमा से बढ़ी हुई रोशनी उस अवधि के दौरान आत्महत्याओं में इजाफे का कारण हो सकती है.
एंबिएंट लाइट का बॉडी, ब्रेन और बिहेवियर की बायोलॉजिकल क्लॉक तय करने में अहम भूमिका होती है जिससे यह तय होता है कि हम कब जागते और कब सोते हैं. रात के वक्त जब अंधेरा होना चाहिए पूर्णिमा में रोशनी बढ़ने से लोगों पर उसका असर पड़ता है.
4 साल तक किया आंकड़ों का विश्लेषण
टीम ने 2012-2016 के बीच इंडियाना प्रांत में हुई आत्महत्याओं के आंकड़ों का विश्लेषण किया. उन्होंने पाया कि पूर्णिमा के हफ्ते के दौरान आत्महत्या से होने वाली मौतें काफी बढ़ गई थीं. उन्होंने यह भी पाया कि 55 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में इस दौरान आत्महत्या की घटनाएं और भी ज्यादा तेजी से बढ़ी हैं. उन्होंने आत्महत्या के समय और महीनों पर भी ध्यान दिया और पाया कि दोपहर बाद 3 बजे से 4 बजे के बीच के समय और सितंबर के महीने में आत्महत्याएं ज्यादा होती हैं.
डिस्कवर मेंटल हेल्थ नाम की मैगजीन में छपे रिसर्च में लेखक अलेक्जेंडर निकुलेस्कु ने लिखा, हम इस बात का विश्लेषण करना चाहते थे कि पूर्णिमा के आसपास की अवधि के दौरान आत्महत्याएं बढ़ जाती हैं और यह जानना चाहते थे कि क्या उस दौरान आत्महत्या के जोखिम वाले मरीजों का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए. निकुलेस्कु और उनकी टीम ने मेंटल हेल्थ की स्थितियों जैसे चिंता, डिप्रेशन, ट्रामा और दर्द के लिए ब्लड बायोमार्कर टेस्ट बना चुकी है.
क्या आया सामने
अधिकारियों ने मौत के बाद जो ब्लड सैंपल लिए थे, उसका इस्तेमाल करके टीम ने यह मालूम किया कि आत्महत्या करने वालों में कौन से बायोमार्कर मौजूद थे. निकुलेस्कु ने कहा, हमने आत्महत्या के लिए टॉप ब्लड बायोमार्कर की एक लिस्ट को टेस्ट किया, जिसे हमने पिछली स्टडीज में पहचाना था.
विश्लेषण करने पर पता चला कि जो लोग पूर्णिमा वाले हफ्ते में दोपहर तीन से चार बजे के बीच सितंबर महीने में आत्महत्या कर सकते हैं, उनमें ब्लड बायोमार्कर एक जीन होता है जो शरीर की बायोलॉजिकल क्लॉक को कंट्रोल करता है. रिसर्चर्स ने कहा, बायोमार्कर का इस्तेमाल करते हुए हमने पाया कि शराब की लत या डिप्रेशन झेल रहे लोगों को इस दौरान ज्यादा रिस्क हो सकते हैं.
क्या होती हैं वजह
उन्होंने कहा कि आत्महत्या में एंबिएंट लाइट और बायोलॉजिकल क्लॉक के असर को ज्यादा बारीकी से स्टडी करना होगा. साथ ही यह भी कि लोग कैसे सोते हैं और लाइट के कॉन्टैक्ट में कैसे आते हैं.स्टडी में कहा गया है, लाइट में बदलाव बाकी रिस्क फैक्टर्स के साथ कमजोर लोगों को प्रभावित कर सकता है.
दोपहर बाद 3 से 4 बजे के बीच आत्महत्याएं ज्यादा होने का संबंध दिन भर की थकान से हो सकता है. साथ ही उस दिन शुरुआत कम लाइट से होने से बायोलॉजिकल क्लॉक जीन और सर्केडियन क्लॉक जीन और कोर्टिसोल में कमी भी इसकी वजह हो सकती है. सितंबर में, बहुत से लोग गर्मियों की छुट्टियां खत्म होने का अनुभव कर रहे होते हैं, जो तनाव का कारण बन सकता है. साथ ही मौसमी भावात्मक विकार प्रभाव भी, क्योंकि साल के उस समय के दौरान दिन में रोशनी कम हो जाती है. निकुलेस्कु ने कहा, हमारी स्टडी दिखाती है कि पूर्णिमा, पतझड़ का मौसम और देर से दोपहर आत्महत्या के लिए बढ़ते जोखिम के अस्थायी समय हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो डिप्रेशन या शराब के इस्तेमाल के विकारों से पीड़ित हैं.
(इनपुट-IANS)
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