X-59: दिल्‍ली से न्‍यूयॉर्क अब दूर नहीं! 15-16 नहीं सिर्फ 10 घंटे लगेंगे, तूफान से भी तेज उड़ेगा यह प्‍लेन
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X-59: दिल्‍ली से न्‍यूयॉर्क अब दूर नहीं! 15-16 नहीं सिर्फ 10 घंटे लगेंगे, तूफान से भी तेज उड़ेगा यह प्‍लेन

अगर आप न्यूयॉर्क से नई दिल्ली की यात्रा करें तो अमूमन 15 घंटे समय लगता है. हालांकि एक्स-59 का टेस्ट सफल रहा तो कमर्शियल फ्लाइट की दुनिया में बड़ा बदलाव आएगा. नासा और लॉकहीड मार्टिन सुपरसोनिक विमान पर काम कर रहे हैं. आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर परेशानी क्या है. दरअसल दिक्कत की वजह सोनिक बूम है जिसे दूर करने की कोशिश की जा रही है.

X-59: दिल्‍ली से न्‍यूयॉर्क अब दूर नहीं! 15-16 नहीं सिर्फ 10 घंटे लगेंगे, तूफान से भी तेज उड़ेगा यह प्‍लेन

What is X-59:  वैसे तो फाइटर प्लेन ही सुपरसोनिक स्पीड से उड़ते है. दरअसल उन लड़ाकू विमानों को बेहद कम समय में अपने टारगेट पर पहुंचना होता है. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि क्या पैसेंजर प्लेन को भी सुपरसोनिक स्पीड से उड़ाया जा सकता है. अब आपके मन में उठे सवाल का जवाब भी है. पैसेंजर प्लेन को सुपरसोनिक स्पीड से उड़ाया जा सकता है. लेकिन सोनिक बूम परेशानी की वजह बनता है. सोनिक बूम में तरंगें इतनी शक्तिशाली होती हैं कि उसकी वजह से जमीन पर खड़ी इमारतों के नुकसान होने का खतरा बना रहता है. इन सबके बीच नासा ने एक्स-59 को पेश किया है. इससे उम्मीद जगी है कि आने वाले समय में पैसेंजर प्लेन भी सुपरसोनिक स्पीड से उड़ाये जा सकते हैं.

घट जाएगा समय

अगर व्यवहारिक तौर पर यह सफल हुआ तो नई दिल्ली से न्यूयॉर्क की दूरी आप 10 घंटे से कम समय में तय कर सकेंगे. अभी इतनी ही दूरी तय करने में 15 घंटे पांच मिनट लग जाते हैं. अगर फ्लाइट नॉन स्टॉप हो तो यह समय घट कर 14 घंटे 25 मिनट हो जाता है. सामान्य तौर पर पैसेंजर प्लेन को 33 हजार से 42 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ाया जाता है. हालांकि कुछ देश अब 51 हजार फीट की ऊंचाई पर भी विमान उड़ा रहे हैं. हालांकि कॉनकार्ड अपवाद है. इस विमान को 60 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ाते हैं.

एक्स- 59 की खासियत

साउंड की स्पीड से 1.4 गुणा अधिक स्पीड है. 
1488 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम है. 
55 हजार फीट की ऊंचाई पर यह उड़ान भरती है. 

एक्स-59 उड़ान भरने के लिए तैयार

एक्स-59 इस साल के अंत तक उड़ान भरने में सक्षम होगा. खास बात यह है कि इसकी डिजाइन में इस तरह से बदलाव किया गया है ताकि सोनिक बूम का खतरा कम हो. इसे नासा और लॉकहीड मार्टिन ने मिलकर बनाया है. इसका मकसद है कि आने वाले समय में कमर्शियल विमानों को भी इसी रफ्तार से उड़ाया जाए. यह नेक्स्ट जनरेशन का एयरक्रॉफ्ट होगा क्योंकि इससे पहले टुपालेव यानी टीयू-144 को 31 दिसंबर 1968 को उड़ाया गया था और 2 मार्च 1969 को कॉनकॉर्ड ने उड़ान भरी थी.

क्या होता है सोनिक बूम

सुपरसोनिक विमान हवा की रफ्तार से अधिक स्पीड में उड़ान भरते हैं. यह एयर डेंसिटी पर निर्भर करता है. सी लेवल पर इसकी स्पीड 1224 किमी प्रति घंटे होती है. अगर किसी विमान की स्पीड इससे कम है तो उसे सबसोनिक कहा जाता है. अगर बात एक्स-59 की करें तो सोनिक बूम से बचने के लिए इसके नोज को 30 मीटर लंबा और 9 मीटर चौड़ा रखा गया है. इसमें पतले नोज का इस्तेमाल और यह जहाज की पूरी लंबाई का एक तिहाई है. एक्स-59 को डिजाइन करने वाले इंजीनियर का कहना है इससे सोनिक बूम में कमी आएगी.

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