Shaksgam Valley News: शक्सगाम घाटी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) का हिस्सा है.
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China-Pakistan Relations: भारत और चीन के बीच पिछले काफी समय से सीमा विवाद जारी है. अब शक्सगाम घाटी को लेकर दोनों देश आमने-सामने हैं. दरअसल चीन इस घाटी में कंस्ट्रक्शन करवा रहा है जिस पर भारत ने आपत्ति दर्ज कराई है. भारत ने चीन के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया है.
विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार (2 मई) को कहा कि शक्सगाम घाटी भारत का हिस्सा है. उन्होंने अपनी साप्ताहिक प्रेस वार्ता में कहा, 'हमने लगातार इसके प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त की है. हमने जमीनी स्तर पर तथ्यों को बदलने के अवैध प्रयासों के खिलाफ चीनी पक्ष के समक्ष अपना विरोध दर्ज कराया है.'
जायसवाल ने कहा, 'हम अपने हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं.'
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि नई दिल्ली ने 1963 के तथाकथित चीन-पाकिस्तान सीमा समझौते को कभी स्वीकार नहीं किया, जिसके माध्यम से इस्लामाबाद ने 'गैरकानूनी' रूप से इस क्षेत्र को बीजिंग को सौंपने का प्रयास किया था.
शक्सगाम घाटी कहां स्थित है?
शक्सगाम घाटी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) का हिस्सा है. भारत शक्सगाम घाटी को अपना हिस्सा मानता है.
शक्सगाम घाटी क्यों महत्वूर्ण है?
यह चीन के झिंजियांग प्रांत (Xinjiang province) और पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करती है, जो इसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है.
भारत के लिए चिंता
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक घाटी में, विशेष रूप से अघिल दर्रे के पास, सड़क बनाने के चीन की हालिया कोशिशि, भारत की सुरक्षा के लिए चिंताएं बढ़ाते हैं. क्योंकि यह दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर के निकट है.
1963 का चीन पाकिस्तान समझौता
1963 में पाकिस्तान ने 5000 वर्ग किलोमीटर में फैली शक्सगाम घाटी चीन को सौंप दी थी.
पूर्वी लद्दाख में काराकोरम पर्वत श्रृंखला (दर्रे) के उत्तर में, यह घाटी चीन के झिंजियांग प्रांत को पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और गिलगित बाल्टिस्तान से जोड़ती है. यह क्षेत्र अत्यंत दुर्गम है.
भारत 1963 के समझौते को स्वीकार नहीं करता है.
क्यों हुआ यह समझौता?
इस समझौते के पीछे दरअसल सीमा विवाद है. 1959 में, पाकिस्तान इस बात से चिंतित हो गया कि चीनी मानचित्रों में पाकिस्तान के क्षेत्रों को चीन में दिखाया गया है. 1961 में अयूब खान ने चीन को एक औपचारिक नोट भेजा, लेकिन कोई जवाब नहीं आया.
पाकिस्तान ने चीन को संयुक्त राष्ट्र में सीट देने के लिए मतदान किया जिसके बाद चीन ने जनवरी 1962 में विवादित मानचित्र वापस ले लिए और मार्च में सीमा वार्ता में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की. समझौते में शामिल होने के लिए चीनियों की इच्छा का पाकिस्तान के लोगों ने स्वागत किया.
दोनों के बीच आधिकारिक तौर पर बातचीत 13 अक्टूबर 1962 को शुरू हुई और इसके परिणामस्वरूप 2 मार्च 1963 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इस पर चीनियों की ओर से विदेश मंत्री चेन यी और पाकिस्तानी की ओर से जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए.