Eric Garcetti On Quad and India: अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने क्वाड की तुलना एक कार से करते हुए कहा कि भारत उसकी ड्राइविंग सीट पर है और अमेरिका बगल में बैठा है. QUAD चार देशों का समूह है जिसमें भारत और US के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं.
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QUAD Alliance News: दुनिया की इकलौती महाशक्ति का दंभ भरने वाले अमेरिका को सबसे ज्यादा खतरा किसी से है, तो वो है चीन. करीब 17 साल पहले अमेरिका इसी चीन को नाराज करने का जोखिम तक नहीं उठाना चाहता था. उसे ईरान और नॉर्थ कोरिया के न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर बीजिंग का साथ जो चाहिए था. अमेरिका ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह से कहा कि वह अपने जापानी समकक्ष शिंजो आबे पर QUAD के लिए ज्यादा जोर न डालें. तब अमेरिका की दलील थी कि QUAD से न तो रूसी खुश हैं, न ही चीनी. QUAD कहीं ठंडे बस्ते में चला गया. यह बात उस दौर में विदेश सचिव रहे श्याम सरन ने रविवार (04 फरवरी 2024) को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) में बता रहे थे. लगभग एक दशक बाद, 2017 में उसी चीन के डर से अमेरिका ने QUAD को फिर से जिंदा किया. ड्रैगन की बढ़ती ताकत से सहमा अमेरिका अब भारत की ताकत का लोहा मान रहा है.
QUAD अगर एक कार है तो भारत उसकी ड्राइविंग सीट पर है और अमेरिका बगल वाली सीट पर बैठा है. QUAD में भारत की भूमिका को अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने इन्हीं शब्दों में बयान किया है. वह भी रविवार को JLF में आए थे. गार्सेटी ने QUAD को एक तरह की 'डिनर पार्टी' भी करार दिया. अमेरिका का QUAD और उसमें भी भारत को इतनी अहमियत देना चीन के लिए सीधा संदेश है. राजनीतिक झंझावात में उलझे पाकिस्तान के लिए तो और मुसीबत है. अमेरिका पहले से ही उससे नाराज है और चीन अब बहुत ज्यादा शह देने में मूड में नहीं.
'भारत तय करे, QUAD को क्या करना है'
JLF के 17वें एडिशन में बोलते हुए गार्सेटी ने कहा, 'भारत काफी हद तक Quad की ड्राइवर्स सीट पर है... शायद अमेरिका अगली सीट पर, करेक्टिव स्टीयरिंग व्हील के रूप में. जापान शुरू से ही बढ़िया नेविगेटर रहा है. ऑस्ट्रेलिया कार में पीछे बैठा है और बड़ा उत्साह है, पूछ रहा है कि सबके पास खाने-पीने को है न, और हम कहां जा रहे हैं.' QUAD पर चर्चा में गार्सेटी और सरन के अलावा ऑस्ट्रेलियाई राजदूत फिलिप ग्रीन, जर्मन एम्बेसडर फिलिप एकरमैन समेत कई डिप्लोमेट्स, पूर्व डिप्लोमेट्स और पत्रकार मौजूद रहे.
गार्सेटी ने इस मौके पर कहा कि भारत QUAD की दिशा तय कर सकता है. उन्होंने कहा कि 'यह बहुत अच्छा समय है और हमें ये अलग-अलग भूमिकाएं पसंद आ रही हैं... कुछ मायनों में, यह भारत के ऊपर है कि वह सबसे ज्यादा ताकत के साथ तय करे कि QUAD के साथ हम क्या करना चाहते हैं.'
दबदबा बढ़ा रहा चीन, QUAD का दायरा भी बढ़ेगा?
अमेरिकी राजदूत ने इशारा किया कि कई और देश QUAD का हिस्सा बनना चाहते हैं. उन्होंने QUAD की तुलना पार्टी से करते हुए कहा, 'द्विपक्षीय संबंध हमेशा उलझे हुए रहते हैं, लेकिन जब यह सब कुछ डायरेक्ट हो तो दोनों देश एक-दूसरे से थोड़ा ऊब जाते हैं... यह एक डिनर पार्टी की तरह है. तीन लोगों को बुलाइए तो और मामला और दिलचस्प हो जाता है. चार लोग आ गए तो लीजिए, आपकी पार्टी तैयार है. जब दूसरे लोग भी पार्टी में आना चाहते हैं... तो आपको समझ आ जाता है कि आपके पास कुछ खास है.'
इसमें कोई शक नहीं कि इंडो पैसिफिक से लेकर अफ्रीका तक, तमाम देश या तो चीन से उकता चुके हैं या उससे निपटने की तैयारी कर रहे हैं. चीन को ध्यान में रखकर हाल के सालों में तमाम रणनीतिक और सैन्य गठबंधन बने हैं, QUAD उनमें से एक है. ऐसे दौर में जब संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों की प्रासंगिकता खत्म हो चली है, QUAD बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. हालांकि, पूर्व ऑस्ट्रेलियाई पीएम मैल्कम टर्नबुल की बात भी गौर करने लायक है. उन्होंने जयपुर में पैनल डिस्कशन के दौरान कहा कि QUAD काफी कुछ वैसा है कि चार लोग एक बिस्तर पर सोए हैं मगर उनके सपने अलग-अलग हैं.
अमेरिका ने झटका दिया तो क्या करेगा पाकिस्तान
चीन को QUAD से खतरे का अंदाजा है, तभी वह अपनी गोलबंदी में जुटा है. पाकिस्तान पहले से ही उसके इशारों पर नाच रहा है. रूस और ईरान को साथ लाकर उसने QUAD के जैसा ग्रुप बनाने की कोशिश की. चीन को पाकिस्तान की जरूरत उसकी लोकेशन के चलते है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) से पाकिस्तान को जो उम्मीदें थीं, वे पूरी नहीं हुईं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डांवाडोल स्थिति में है. ऊपर से इस्लामाबाद अब अमेरिका के बाद अफगानिस्तान में भी उलझा हुआ है.
पाकिस्तान को न सिर्फ चीन, बल्कि ईरान, रूस, मध्य एशियाई पड़ोसियों और कुछ हद तक भारत के साथ भी सामंजस्य बिठाने की जरूरत है. इतना तो तय है कि पाकिस्तान अभी चीन का पिछलग्गू बना रहेगा, लेकिन अमेरिका के आंख दिखाने पर उसे रुख भी बदलना पड़ेगा. पाकिस्तान काफी हद तक अमेरिका की सैन्य और आर्थिक मदद पर निर्भर है. अमेरिका के लिए चीन से निपटना प्राथमिकता है और वह QUAD में भारत का साइड-किक बनने को राजी है. ऐसे में पाकिस्तान को अमेरिका से नरम रुख की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए.