DNA Analysis: क्या राहुल गांधी का पीएम मोदी को नया हिटलर कहना सही है? जानिए दोनों की कार्यशैली के बड़े अंतर
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DNA Analysis: क्या राहुल गांधी का पीएम मोदी को नया हिटलर कहना सही है? जानिए दोनों की कार्यशैली के बड़े अंतर

Adolf Hitler and Narendra Modi: कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को नया हिटलर बताया है. इस आरोप में कितना दम है, यह समझने के लिए आज आपको दोनों की कार्यशैली के बारे में जानना चाहिए. 

DNA Analysis: क्या राहुल गांधी का पीएम मोदी को नया हिटलर कहना सही है? जानिए दोनों की कार्यशैली के बड़े अंतर

Difference between Adolf Hitler and Narendra Modi: राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को लेकर कई तीखे बयान दिए. उन्होंने कहा कि जर्मनी का तानाशाह हिटलर (Adolf Hitler) भी चुनाव जीत जाता था. उसके पास पूरे संस्थान थे. Paramilitary थी, पूरा का पूरा ढांचा था. उन्होंने ये भी कहा कि आज अगर उन्हें भी पूरा का पूरा ढांचा दे दिया जाए तो वो बता सकते हैं कि चुनाव कैसे जीता जाता है. राहुल गांधी एक तरह से हिटलर से मोदी की तुलना करते हैं. लेकिन क्या उनका ये तर्क सही है?

क्या आप जानते हैं हिटलर का इतिहास?

राहुल गांधी ने शायद हिटलर पर अच्छे से Home Work नहीं किया. लेकिन हम आपको बताते हैं कि हिटलर (Adolf Hitler) पूर्ण बहुमत से चुनाव जीत कर चांसलर नहीं बना था. ये बात सब जानते हैं कि 1914 से 1919 तक चले पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की हार हुई थी, जिसके बाद Treaty of Versailles के तहत जर्मनी को भारी भरकम रकम चुकानी थी. ये रकम उन देशों को चुकानी थी, जो पहले विश्व युद्ध में विजयी हुए थे. जैसे फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका.

ये रकम चुकाने के लिए जर्मनी ने बड़े पैमाने पर अपनी करेंसी छापने का काम शुरू किया. लेकिन इसका नुकसान ये हुआ कि जर्मनी में महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई. और लोगों में सरकार के खिलाफ असंतोष बढ़ने लगा. वर्ष 1929 में जब अमेरिका में The Great Depression आया यानी ऐतिहासिक मंदी की शुरुआत हुई तो इससे पूरी दुनिया प्रभावित हुई. इसके चलते जर्मनी में भी बेरोजगारी दर ऐतिहासिक रूप से बढ़ गई.

बहुमत न होने पर भी बन गया चांसलर

इस आर्थिक संकट और लोगों में बढ़ती नाराज़गी के बीच Adolf Hitler की पार्टी काफी लोकप्रिय हुई क्योंकि ये पार्टी तब महंगाई और बेरोज़गारी के मुद्दे को उठा रही थी. इसके बाद जब जर्मनी में 1932 में आम चुनाव हुए तो हिटलर की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. हालांकि हिटलर के पास तब बहुमत नहीं था. जब कोई भी नेता पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाया तो जर्मनी के राष्ट्रपति Paul Von Hindenburg ने हिटलर को देश का चांसलर नियुक्त कर दिया. इसके कुछ ही समय बाद 27 फरवरी 1933 को जर्मनी की संसद में आग लगने की एक घटना हुई.

इस घटना के लिए तब एक डच Communist नेता को दोषी पाया गया और उसे मौत की सजा दी गई. इसी के बाद पूरे जर्मनी में Communist नेताओं, पार्टियों और Trade Unions पर हिटलर ने कार्रवाई शुरू कर दी. आग लगने की घटना के बाद एक नया इमरजेंसी कानून लाया गया, जिसके तहत पुलिस किसी को भी गिरफ्तार कर सकती थी. अखबारों पर प्रतिबंध लगा दिए और पत्रकारों की भी आवाज दबा दी गई.

खुद को सुप्रीम लीडर घोषित कर दिया

2 अगस्त 1934 को जब जर्मनी के तत्कालीन राष्ट्रपति Paul Von Hindenburg की मृत्यु हुई तो हिटलर ने जर्मनी के दो सबसे बड़े संवैधानिकों पदों का विलय कर दिया. एक पद था राष्ट्रपति का और दूसरा पद था चांसलर का. इन दोनों को मिला कर हिटलर (Adolf Hitler) ने एक नया पद बनाया, जिसे Fuhrer कहा गया. इसका अर्थ होता है सुप्रीम लीडर. हिटलर के सुप्रीम लीडर बनते ही उसने एक ऐसा कानून बनवाया, जिसके तहत सभी विरोधी पार्टियों को निष्क्रिय कर दिया गया. यानी पूरा जर्मनी एक सिंगल पार्टी स्टेट बन गया.

इसके बाद हिटलर ने जर्मनी के अलग अलग प्रांतों की चुनी हुई सभाओं को भंग कर दिया और राष्ट्रीय संसद को सारी शक्तियां दे दी. अब आप खुद सोचिए कि क्या हिटलर से प्रधानमंत्री मोदी की तुलना करना सही है?

भारत में 2 हजार से ज्यादा राजनीतिक दल

हिटलर के शासन में जर्मनी एक सिंगल पार्टी स्टेट था. लेकिन अब जब नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) देश के प्रधानमंत्री हैं, तब भारत में 8 राष्ट्रीय पार्टियां है, 54 क्षेत्रीय दल है और 2 हज़ार 796 गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं.  हिटलर ने जर्मनी के सभी प्रांतों की चुनी हुई सभाओं को भंग कर दिया था. जबकि प्रधानमंत्री मोदी के शासन काल में बीजेपी एक नहीं बल्कि कई राज्यों में चुनाव हारी है. जिसमें देश की राजधानी दिल्ली में पार्टी लगातार दो चुनाव हारी है, पंजाब में दो बार पार्टी चुनाव हार चुकी है. छत्तीसगढ़, तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान और झारखंड में भी बीजेपी चुनाव कर चुकी है.

सोचिए ये कैसी तानाशाही है, जिसमें बीजेपी चुनाव हार जाती है. अगर राहुल गांधी सही हैं तो इस हिसाब से तो बीजेपी को कोई चुनाव हारना ही नहीं चाहिए.

एक और बात. हिटलर बहुमत से जीतकर सत्ता में नहीं आया था. बल्कि बहुमत नहीं होने पर वहां के राष्ट्रपति ने विशेष परिस्थितियों में उसे चांसलर नियुक्त किया था. जबकि प्रधानमंत्री मोदी एक नहीं बल्कि दो दो बार पूर्ण बहुमत से चुन कर सत्ता में आए हैं.

देश को लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ा रहे पीएम मोदी

इनमें 2014 का लोक सभा चुनाव उन्होंने तब जीता था, जब देश में UPA की सरकार थी. जिसे गांधी परिवार द्वारा कंट्रोल किया जाता था. इसके अलावा हिटलर ने अपनी तानाशाही साबित करने के लिए राष्ट्रपति की सारी शक्तियां भी अपने हाथ में ले ली थीं. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) ने लोकतंत्र का सम्मान किया है. हाल ही में द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति नियुक्त हुई हैं और वो देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति हैं. अगर केन्द्र सरकार में तानाशाही होती तो क्या ये चुनाव होते. तब चुनाव नहीं होते बल्कि वो होता, जो एक समय जर्मनी में हुआ था.

हम यहां ये नहीं कह रहे कि भारत के लोकतंत्र में कमियां नहीं है. भारत के लोकतंत्र में जरूर कमियां होंगी और उनमें सुधार होना ही चाहिए. लेकिन लोकतंत्र में कमियों का मतलब तानाशाही नहीं होता. और ये बात कांग्रेस पार्टी को अब समझनी होगी.

(ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर)

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